अखबारों के एडिटर अब या तो नशे में काम करने लगे हैं या आंखे और दिमाग को स्विच ऑफ करके। खबर में टेक्स्ट की ग़लतियां होना आम बात हैं, मगर ख़बर की हेडलाइन में किसी जिंदा का अंतिम संस्कार होना दिखा दिया जाये तो भाई भगवान ही मालिक हैं ऐसे अखबारों और उनके एडिटर्स का। सामान्य खबरों में गलतियां होना तो ढंक जाता हैं। लेकिन ख़बर में यदि राज्य की मुख्यमंत्री के जीते जागते प्रेस सलाहकार का अंतिम संस्कार होना छाप दिया जाए तो गजब की बात हैं। विश्वास नहीं होता मगर यह सोलह आने सत्य घटना हैं और ऐसा नहीं कि किसी छोटे-मोटे अखबार में ऐसा हुआ हो। राजस्थान के बड़े अखबारों में से एक में ऐसा हुआ है।
दरअसल हुआ यूं कि राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के प्रेस सलाहकार महेन्द्र भारद्वाज के पिता रामनारायण भारद्वाज का निधन शनिवार को जयपुर में हो गया और उनका अंतिम संस्कार रविवार को उनके पैत्रक गांव आंवा में हुआ। क्यूं कि सीएम के प्रेस सलाहकार के पिता ने निधन की खबर थी तो सभी मिडिया के लोग पहुंचे हर चैनल पर खबर भी चली। सोमवार को सभी अखबारों में भी खबर छपी। उन्ही में से एक समाचार पत्र दैनिक नवज्योती में भी देवली डेडलाईन से खबर थी। खबर के टेक्स्ट की ग़लती तो थी ही मगर जब खबर की हैडलाईन पर नज़र गई तो ग़लतियों की सभी हदें पार हो गईं।
खबर की हैडलाईन थी ‘सीएम के प्रेस सलाहकार भारद्वाज का अंतिम संस्कार’ जिन लोगों ने पूरी खबर पढ़ी उन्हे तो माजरा समझ आ गया मगर जो लोग सिर्फ हैडलाईन्स पढ़ कर ही काम चलाते हैं उन्हे तो अब भी यही पता है कि भाई सीएम से मिडिया सलाहकार का अंतिम संस्कार हो गया।
आखिर इतनी बड़ी गलती हुई तो हुई कैसे, ये समझ पाना बड़ा कठिन हैं। यदि प्रेस रिपोर्टर द्वारा खबर की हैडलाईन अपने यहां से गलत भी लिख कर भेज दी गई तो क्या डेस्क पर जाकर वह चैक नहीं होती? क्या चैक करने के बावजूद डेस्क वालों ने ग़लती सुधारने की जहमत नहीं उठाई? कल को यदि रिपोर्टर कोई अनर्गल शब्द ही खबर में लिख कर भेज दे तो क्या वो भी बिना जांचे जस का तस छाप दिया जायेगा? अगर ऐसा ही हैं तो भई डेस्क, पेज सेटर, ऐडिटर आदि की आवश्यकता ही क्या है? सवाल तो अखबार और उसकी विश्वसनियता पर ही उठता है।
भड़ास को भेजे गए पत्र पर आधारित।