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सुख-दुख

मिस्टर ट्रम्प! पत्रकारिता के नियम हमारे हैं, आपके नहीं

अमेरिका फर्स्ट क्यों है… क्यों वह दुनिया का चौधरी कहलाता है और आर्थिक सम्पन्नता के मामले में भी अमेरिका तमाम मंदी के बावजूद सर्वोच्च क्यों बना हुआ है..? इन सवालों के जवाब ट्रम्पकाल की शुरुआत में ही बड़ी आसानी से खोजे जा सकते हैं… लोकतंत्र की खूबसूरती दमदार विपक्ष के रूप में ही देखने को मिलती है और अमेरिकी समाज ने बता दिया कि वह तंग दिल नहीं, बल्कि खुली सोच का हिमायती है… अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रम्प  ने अपनी शपथ में मेक इन अमेरिका के नारे के साथ बाय अमेरिकन-हायर अमेरिकन की बात कही है… उनके शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार जहां 60 डेमोक्रेटिक सांसदों ने किया तो जाने-माने हॉलीवुड अभिनेता रॉबर्ट डी नीरो  ने भी खुलेआम खिलाफत की…

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अमेरिका फर्स्ट क्यों है… क्यों वह दुनिया का चौधरी कहलाता है और आर्थिक सम्पन्नता के मामले में भी अमेरिका तमाम मंदी के बावजूद सर्वोच्च क्यों बना हुआ है..? इन सवालों के जवाब ट्रम्पकाल की शुरुआत में ही बड़ी आसानी से खोजे जा सकते हैं… लोकतंत्र की खूबसूरती दमदार विपक्ष के रूप में ही देखने को मिलती है और अमेरिकी समाज ने बता दिया कि वह तंग दिल नहीं, बल्कि खुली सोच का हिमायती है… अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रम्प  ने अपनी शपथ में मेक इन अमेरिका के नारे के साथ बाय अमेरिकन-हायर अमेरिकन की बात कही है… उनके शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार जहां 60 डेमोक्रेटिक सांसदों ने किया तो जाने-माने हॉलीवुड अभिनेता रॉबर्ट डी नीरो  ने भी खुलेआम खिलाफत की…

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जनता ने भी सड़कों पर उतरकर ट्रम्प का विरोध किया… मगर देश में किसी ने भी इन विरोधियों को देशद्रोही करार नहीं दिया… पक्ष और विपक्ष एक साथ नजर आए… न किसी तरह की झड़प, न कोई विवाद और न ही आमने-सामने की कटूता नजर आई… भारत में किसी फिल्म कलाकार या मीडिया द्वारा भी अगर कोई बात कह दी जाती है तो उसको लेकर बखेड़ा खड़ा हो जाता है और पाकिस्तान चले जाने की धमकी के साथ फिल्मों के बहिष्कार का सिलसिला शुरू हो जाता है… मगर ट्रम्प की खिलाफत करने वाले रॉबर्ट डी नीरो के लिए इस तरह की कोई बात अमेरिका में सुनाई नहीं दी… यहां तक कि वहां के जाने-माने मीडिया समूह ने भी डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ भाषण की आलोचना करने से कोई परहेज नहीं किया… न्यूयॉर्क पोस्ट ने तो रंगमिजाजी के लिए चर्चित ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद देश में एक नए माफिया युग की शुरुआत कहा, तो द न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा कि उनके ऐसे भाषण की उम्मीद किसी को नहीं थी…

ऐसा लगा मानों वे अमेरिका की नहीं किसी और ही देश की बात कर रहे थे… कुल मिलाकर बात समझने की यह है कि जब अमेरिका के राष्ट्रपति को वहां का एक आम या खास आदमी इस तरह लतिया सकता है तो हमारे देश में मुद्दों और तर्कों की बात कहने-सुनने की सहिष्णुता कहां चली गई..? देशद्रोही करार देने से लेकर पाकिस्तान चले जाने की बात बड़ी आसानी से विरोध करने वालों के लिए कह दी जाती है… उल्लेखनीय है कि डोनाल्ड ट्रम्प अपनी विवादित बातों और ट्वीट के लिए चर्चित रहे हैं और उनका मीडिया के साथ भी जमकर पंगा चल रहा है… यहां सलाम करना चाहिए अमेरिका के मीडिया को, जिसने डोनाल्ड ट्रम्प को शपथ लेने से पहले ही आइना दिखाते हुए एक कड़ा और मौजू पत्र लिखा… अमेरिका के साथ-साथ दुनियाभर के मीडियाकर्मियों को यह पत्र पढऩा चाहिए… क्योंकि मौजूदा वक्त में दुनियाभर का मीडिया ऐसी परिस्थितियों का सामना कर रहा है… अमेरिकन प्रेस कोर का यह पत्र दुनियाभर में अब चर्चित हो रहा है… एनडी टीवी के जाने-माने एंकर रवीश कुमार ने इसी पत्र के आधार पर एक बेहतरीन प्राइम टाइम भी 19 जनवरी को प्रस्तुत किया था, उसे भी यूट्यूब पर जाकर देखा जाना चाहिए… अमेरिकी राष्ट्रपति को लिखे इस पत्र का मजमून इस प्रकार है…

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श्रीमान् नवनिर्वाचित राष्ट्रपति

आपके कार्यकाल के शुरू होने के अंतिम दिनों में हमने अभी ही साफ कर देना सही समझा कि हम आपके प्रशासन और अमेरिकी प्रेस के रिश्तों को कैसे देखते हैं. हम मानते हैं कि दोनों के रिश्तों में तनाव है. रिपोर्ट बताती है कि आपके प्रेस सचिव व्हाईट हाउस से मीडिया के दफ्तरों को बंद करने की सोच रहे हैं. आपने ख़ुद को कवर करने से कई न्यूज़ संगठनों को बैन किया है. आपने ट्विटर पर नाम लेकर पत्रकारों पर ताने कसे हैं, धमकाया है. अपने समर्थकों को भी ऐसा करने के लिए कहा है. आपने एक रिपोर्टर का यह कहकर मज़ाक उड़ाया है कि उसकी बातें इसलिए अच्छी नहीं लगी कि वह विकलांग है. हमारा संविधान प्रेस की आज़ादी का संरक्षक है. उसमें कहीं नहीं लिखा है कि राष्ट्रपति कब प्रेस कांफ्रेंस करें और प्रेस का सम्मान करें. प्रेस से संबंध रखने के नियम आपके होंगे. हमारा भी यही अधिकार है क्योंकि टीवी और अखबार में वो जगह हमारी है जहां आप प्रभावित करने का प्रयास करेंगे. वहां आप नहीं, हम तय करते हैं कि पाठक, श्रोता या दर्शक के लिए क्या अच्छा रहेगा. अपने प्रशासन तक रिपोर्टर की पहुंच समाप्त कर ग़लती करेंगे.

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हम सूचना हासिल करने के तरह तरह के रास्ते खोजने में माहिर हैं. आपने अपने अभियान के दौरान जिन न्यूज़ संगठनों को बैन किया था उनकी कई रिपोर्ट बेहतरीन रही है. हम इस चुनौती को स्वीकार करते हैं. पत्रकारिता के नियम हमारे हैं, आपके नहीं हैं. हम चाहें तो आपके अधिकारियों से ऑफ द रिकॉर्ड बात करें या न करें. हम चाहें तो ऑफ द रिकॉर्ड ब्रीफिंग में आयें न आयें. अगर आप यह सोचते हैं कि रिपोर्टर को चुप करा देने या भगा देने से स्टोरी नहीं मिलेगी तो ग़लत हैं. हम आपका पक्ष लेने का प्रयास करेंगे. लेकिन हम सच्चाई को तोडऩे मरोडऩे वालों को जगह नहीं देंगे. वे जब भी ऐसा करेंगे हम उन्हें भगा देंगे. यह हमारा अधिकार है. हम आपके झूठ को नहीं दोहरायेंगे. आपकी बात छापेंगे लेकिन सच्चाई का पता करेंगे. आप और आपका स्टाफ व्हाइट हाउस में बैठा रहे, लेकिन अमेरिकी सरकार काफी फैली हुई है.

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हम सरकार के चारों तरफ अपने रिपोर्टर तैनात कर देंगे. आपकी एजेंसियों में घुसा देंगे और नौकरशाहों से ख़बरें निकाल लायेंगे. हो सकता है कि आप अपने प्रशासनिक इमारत से आने वाली खबरों को रोक लें लेकिन हम आपकी नीतियों की समीक्षा करके दिखा देंगे. हम अपने लिए पहले से कहीं ज्यादा ऊंचे मानक कायम करेंगे. हम आपको इसका श्रेय देते हैं कि आपने मीडिया की गिरती साख को उभारा है. हमारे लिए भी यह जागने का समय है. हमें भी भरोसा हासिल करना होगा. हम इसे सही, साहसिक रिपोर्टिंग से हासिल कर लेंगे. अपनी गलतियों को मानेंगे और पेशेवर नैतिकता का पालन करेंगे. ज़्यादा से ज़्यादा आप आठ साल ही राष्ट्रपति के पद पर रह सकते हैं लेकिन हम तो तब से हैं जब से अमेरिकी गणतंत्र की स्थापना हुई है. इस महान लोकतंत्र में हमारी भूमिका हर दौर में सराही गई है. तलाशी गई है. आपने हमें मजबूर किया है कि हम अपने बारे में फिर से यह बुनियादी सवाल करें कि हम कौन हैं. हम किसलिए यहां हैं. हम आपके आभारी हैं. अपने कार्यकाल के आरंभ का लुत्फ उठाइये…

कोलम्बिया जर्नलिज्म रिव्यू ने अमेरिकन प्रेस कोर के इस पत्र को प्रकाशित किया है… यहां ये भी महत्वपूर्ण है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपना पद छोडऩे के 48 घंटे पहले व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए अंग्रेजी में एक वाक्य कहा… You are not supposed to be sycophants, you are supposed to be skeptics.यानि पत्रकारों को संदेहवादी या प्रश्नवादी होना चाहिए… श्री ओबामा ने  स्पष्ट कहा कि अमेरिका को पत्रकारों की जरूरत है… लोकतंत्र को पत्रकारों की जरूरत है… इसके विपरित अमेरिका के नए राष्ट्रपति ट्रम्प मीडिया के समक्ष इस तरह पेश आए जैसे उसका काम उनके कथनों को टाइप करना है, प्रश्न करना नहीं… अमेरिका में आम जनता के साथ-साथ प्रेस के संवैधानिक अधिकार भारत की तुलना में कई ज्यादा और बेहतर है… प्रेस की स्वतंत्रता की सूची में दुनिया के 180 देशों में से अमेरिका का स्थान 41वां है… पहले, दूसरे और तीसरे स्थानों पर फीनलैंड, नीदरलैंड और न्यूजीलैंड आते हैं… दुनिया के चौधरी यानि अमेरिकी राष्ट्रपति को आइना दिखाने वाले अमेरिकी पत्रकारों के संगठन अमेरिकन प्रेस कोर को वाकई लाख सलाम… जिसने भारत सहित दुनियाभर के मीडिया का माथा ऊँचा कर दिया…

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राजेश ज्वेल
[email protected]

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