अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
चुनाव आयुक्त का चयन करने वाले लोगों में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस नहीं होंगे बल्कि उनकी जगह एक कैबिनेट मंत्री होगा, ऐसा विधेयक पेश हुआ है. चुनाव आयोग भी लोकतंत्र के उन्हीं चार मजबूत खंभों में से एक कार्यपालिका का बेहद अहम हिस्सा है, जिनसे जुड़ी किसी भी अहम संस्था में होने वाला कोई बदलाव करने पर कोई भी सरकार सवालों के घेरे में आ जाती है.
लेकिन मोदी सरकार में जिस तरह ED निष्पक्ष है, सीबीआई निष्पक्ष है, उसी तरह चुनाव आयोग भी निष्पक्ष है. कैबिनेट मंत्री अगर मोदी सरकार का है तो वह भी तो निष्पक्ष, ईमानदार, और राष्ट्रवादी होगा ही क्योंकि उसे कैबिनेट मंत्री भी तो मोदी जी ने ही बनाया है.
विपक्ष वाले इसमें लोकतंत्र को खतरा देख रहे हैं और सोशल मीडिया पर फैला रहे हैं कि नियम कानून बदलकर बरसों तक ED वाले मिश्रा जी को बनाए रखने पर पूछे सवालों के कारण मोदी जी जरूर चीफ जस्टिस से नाखुश होंगे. इसलिए उनकी जगह कैबिनेट मंत्री को ले आए.
पता नहीं विपक्ष कब समझेगा कि मोदी जी अगर चुनाव आयुक्त की चयन प्रक्रिया को बदलना चाहते हैं तो बदलने दीजिए. इसी में राष्ट्र हित है और इसी से लोकतंत्र भी मजबूत होगा.
आइए देखते हैं कि लोकतंत्र के चार खंभे क्या हैं तथा इनमें शामिल कौन-कौन सी संस्थाएं मोदी जी के सपनों का लोकतंत्र बनाने में अपना क्या योगदान दे रही हैं.
1- विधायिका यानी संसद
संसद में मोदी सरकार के पास प्रचंड बहुमत है. इसलिए मणिपुर, अदानी या कोई भी मुद्दा हो, मोदी जी की जवाबदेही विपक्ष के बस की बात नहीं रही. यहां फिलहाल कोई चर्चा हो, कोई बिल पारित कराना हो, मोदी जी के लिए चुटकियों का खेल है. उनके सामने सब बेबस हैं. इसलिए यह कहा जा सकता है कि यहां मोदी जी के सपनों का लोकतंत्र कायम हो चुका है.
2- न्यायपालिका यानी सुप्रीम कोर्ट
लगता है कि चीफ जस्टिस अपने मोदी जी के मन की बात नहीं सुनते. मन की बात वह वाली, जो रेडियो पर आती है और पूरा देश सुनता है. आप क्या समझे, मोदी जी चीफ जस्टिस पर कोई दबाव डालेंगे? हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट के किसी निर्णय से कभी कभार मोदी जी का मूड ऑफ़ हो जाता हो. लेकिन मोदी जी लोकतंत्र की रक्षा की शपथ लेकर ही पीएम बने हैं इसलिए वह अपनी छोड़कर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के मन की बात ही सुन रहे हैं.
3- कार्यपालिका यानी ED, CBI, गृह मंत्रालय, चुनाव आयोग आदि
ED – इसके प्रमुख मिश्रा जी को सारे पुराने नियम कानूनों में बदलाव करके मोदी जी कई बरसों से लोकतंत्र मजबूत करने के लिए खास रखे हुए हैं. विपक्ष उनसे इस पर सवाल पूछ रहा है लेकिन जो सवाल पूछता है, मिश्रा जी की ED उसी से सवाल पूछने उसके घर पहुंच जाती है. ऐसा हम नहीं विपक्षी नेता दावा कर रहे हैं. हम तो यह मानते हैं कि मिश्रा जी भी मोदी जी के सपनों का लोकतंत्र बनाने के लिए ही कुर्सी से फेविकोल का जोड़ लगाकर इस तरह लंबे अरसे से चिपकाए गए हैं.
सीबीआई- विपक्ष वाले इसे मोदी जी का तोता कहते हैं. बताइए भला, यह भी कोई बात हुई ? मोदी जी के सपनों का लोकतंत्र बनाने के लिए अगर सीबीआई प्रमुख अपने पीएम की नहीं सुनेंगे तो क्या विपक्ष के कहने पर चलेंगे. सीबीआई प्रमुख पर कोई राष्ट्रभक्त ही बैठे, मोदी जी तो बस यह ध्यान रखते होंगे. उसके बाद सीबीआई प्रमुख राष्ट्र हित में खुदबखुद काम करते हैं और ED की तरह विपक्ष के भ्रष्टाचार को निशाने पर रखते हैं. सत्ता पक्ष तो पहले राष्ट्रवादी सर्टिफिकेट लेकर घूम रहा है, उसकी जांच में क्या निकलेगा भला?
गृह मंत्रालय- यह तो अपने मोटा भाई के पास है. मोटा भाई के पास पहले गुजरात का गृह मंत्रालय था तो देश के गृह मंत्रालय के कोप और अदालत ने उन्हें कांग्रेस राज में तड़ीपार कर रखा था. इसलिए तब लोकतंत्र भी खतरे में आ गया था. अब जबकि मोदी जी ने राष्ट्र का सिंहासन संभाल रखा है तो मोटा भाई ने देश का गृह मंत्रालय बखूबी संभाल रखा है. अब लोकतंत्र भी बच गया है और अब तक मोटा भाई पर लगा तड़ीपार का धब्बा भी मिट चुका है.
चुनाव आयोग –
चुनाव सर पर हैं. जनता तो मोदी के मन की बात सुनकर झूम रही है. चुनाव आयुक्त अगर निष्पक्ष चुनाव कराएंगे तो देश के बच्चे बच्चे की पसंद बन चुके मोदी जी ही आएंगे. विपक्ष हालांकि यह चिल्लाता है कि ईवीएम घोटाला है पर मोदी सरकार अपनी जांच में पहले ही इसे गलत बता चुकी है.
चुनाव निष्पक्ष हों और मोदी जी के देखे लोकतंत्र के सपने के मुताबिक हों, इसके लिए ही चुनाव आयुक्त के चयन करने वाले लोगों में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को हटाकर कैबिनेट मंत्री को लाने का बदलाव भी तो लाया जा रहा है.
4- मीडिया
टीवी चैनल और अखबार – ये तो बेचारे गऊ हैं. ये इतने भले हैं कि मोदी जी की कोई कमी न तो खुद देख सकते हैं, न जनता को देखने देते हैं. मोदी जी के खिलाफ एक शब्द बोलना तो दूर इनके कुछ एंकर तो ऐसे हैं कि विपक्ष के नेता भी जब मोदी जी को कुछ बुरा बोलते हैं तो ये पूरी ताकत से चिल्ला चिल्ला कर उसकी आवाज भी दबा देते हैं. कुल मिलाकर ये तो मोदी जी के मन की बात का ही टेलीकास्ट कर रहे होते हैं हर समय.
लोकतंत्र को बचाने के लिए मोदी जी का हाथ मजबूत करने में सबसे ज्यादा योगदान इन्हीं का मानिए. कुछ लोग इन्हें चाटुकार, दलाल आदि विशेषणों से नवाजते हैं लेकिन इन्होंने अपनी खाल बहुत मोटी कर ली है इसलिए न तो इन्हें ऐसे घटिया विशेषणों से अब शर्म आती है और न ही चुल्लू भर पानी में अब इन्हें कोई डुबो सकता है.
इंटरनेट / सोशल मीडिया – यहां तो मोदी जी की आई टी सेल ने गदर ही काट रखा है. चुन चुन कर गद्दारों को निशाना बनाना हो या गाली गलौज से विपक्षियों को डराना हो, अथवा वॉट्सएप यूनिवर्सिटी का कोर्स बच्चे बच्चे को रटाना हो, या विपक्षी नेताओं पर बेसिर पैर के अभद्र किस्से कहानियां गढ़ना हो, उनकी छवि ध्वस्त करनी हो उन्हें मजाक का पात्र बनाना हो, हर काम में इन्हें मास्टरी हासिल है.
बाकी रही सही कसर मोदी सरकार कर देती है, जिसके दबाव में कोई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मोदी जी की मन की बात को ही आगे बढ़ाता है और मोदी विरोधियों की राष्ट्र विरोधी पोस्ट और प्रोफ़ाइल पर कड़ी निगरानी रखता है.
इतनी कोशिशें भी अगर आपको कम लग रही हों तो जान लीजिए कि मोदी सरकार एक डिजिटल विधेयक भी ले आई है सदन में. मोदी जी के सपनों का लोकतंत्र बनाने में कोई कसर न रह जाए, इसलिए ऐसा किया गया होगा.
मुझे नहीं लगता कि मोदी खुद ऐसा कर रहे हैं. बल्कि ये सब कुछ जो हो रहा है, इसके पीछे संघ है. संघ जानता है कि लोकतंत्र हाईजैक करके ही हिन्दू राष्ट्र बनाया जा सकता है. एक बार उसके मनमुताबिक बदलाव हो गए तो फिर मोदी की जगह वर्ण व्यवस्था के हिसाब से योगी या राजनाथ भी लाए जा सकते हैं. संघ के सपनों के हिंदू राष्ट्र में मोदी तानाशाह बनकर उभरेंगे, ऐसा मुझे नहीं लगता.