भोजपुरी भाषा -संस्कृति का तमाशा बनाने वालों के गाल पर जोरदार तमाचा मारती मनोज भावुक की तीन कविताएं… मनोज भावुक रूप-श्रृंगार और जीवन-दर्शन की बात करने वाले महज़ भावुक ग़ज़लकार ही नहीं, वरन समाज की विसंगतियों, विद्रूपताओं और भाषा-संस्कृति पर हो रहे अत्याचार पर तिलमिलाकर आग का राग भी सुनाने का काम करते हैं। पेश हैं भोजपुरी को हेय दृष्टि से देखने वालों और भोजपुरी भाषा-संस्कृति का तमाशा बनाने वालों के गाल पर जोरदार तमाचा रसीद करती मनोज भावुक की तीन कविताएँ…
1-
मालिक बहुत मानते हैं
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मै भोजपुरी चैनल में एंकर हूँ।
तुम्हें भोजपुरी आती है ?
नहीं…
पर मालिक बहुत मानते हैं।
मै राग-रंग की एंकर हूँ।
तुम्हें गीत-संगीत का ज्ञान है ?
बिलकुल नहीं..
पर मालिक बहुत मानते हैं।
मै असमियां हूँ, एक भोजपुरी चैनल की हेड…
तब तो तुम्हें सिर्फ दिखाई देता होगा, सुनाई तो नहीं।
हाँ, भोजपुरी का इक दीवाना कहता भी है कि ‘स्क्रीन पर भोजपुरी भाषा का बलात्कार होता है”
पर मुझे फर्क नहीं पड़ता।
क्योंकि, मालिक बहुत मानते हैं।
मुझे और भी तो बहुत कुछ आता है
तभी तो मालिक बहुत मानते हैं।
क्या इसीलिए तुम्हें भोजपुरी को डंसने की छूट है ?
क्या कहूँ,
मालिक बहुत मानते हैं।
अरे डायन भी एक घर छोड़ देती है।
तुम भोजपुरी की रोटी खाती हो, उसे तो…
नहीं, मै मालिक का खाती हूँ…. दूसरे के हुनर की बदौलत
या अपने दूसरे हुनर की बदौलत।
तभी तो..
मालिक बहुत मानते हैं।
सही है,
जब तक भोजपुरी वाले भी तुम्हे मालिक की तरह मानेगें नहीं
या तुम्हारे मुँह में गंगा जल विसर्जित नहीं करेंगे,
तब तक तुम भी मानोगी नहीं…
व्यवस्था भी नहीं बदलेगी
और यह भी सही है, आग भरे जिगर वाले प्यारे मालिको !
जिस थाली में जीमते हो, उसी में छेद करने वालों को चाहोगे
तो तुम्हारे कार्पोरेट का जहाज डूब ही तो जायेगा।
इन बिल्लियों का क्या ?..
कहीं और जाकर दूध पी लेगीं
कहीं और जाकर पोसुआ बन जायेगीं
कहीं और जाकर किसी बांग्ला या उर्दू का बलात्कार करेंगी
क्योंकि ऐसी बिल्लियों को तो हर मालिक बहुत मानता है….
देखना तो ये है,
कि जिस डाल पर बैठे हो उसी को काटने वाले कालिदासो तुम कब मानते हो ?
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2-
संस्कृति
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एक ओर
कुकुरमुत्ता नियर फइलल
भकचोन्हर गीतकारन के बिआइल
कैसेटन में
लंगटे होके नाचत बिया
भोजपुरिया संस्कृति।
(……जइसे ऊ कवनो
कोठावाली के बेटी होखे…
भा कवनो मजबूर लइकी के
गटर में फेंकल
नाजायज औलाद होखे।)
दोसरा ओरे,
लोकरागिनी के किताब में कैद भइल
भोजपुरिया संस्कृति के दुलहिन के
चाटत बिआ दीमक
सूंघत बा तेलचट्टा
आ काटत बा मूस।
एह दूनू का बीचे
भोजपुरी के भ्रम में
हिन्दी के सड़ल-खिचड़ी चीखत
आ भोजपुरिये के जरल भात खात
मोंछ पर ताव देत
‘मस्त-मस्त ‘ करत
ठाढ़ बा, भोजपुरिया जवान
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3-
भोजपुरी के दुर्भाग्य
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राउर चिट्ठी पढ़ के
मन बहुत खुश भइल।
रउरा जापान में वैज्ञानिक बानी।
जापान जाइयो के ,
रउरा भोजपुरी याद बा ?
लोग त दिल्ली जाते
भोजपुरी भुला जाला !
रउरा वैज्ञानिक बानी,
माडर्न टेक्नोलाजी के विद्वान
तबो रउरा भोजपुरी याद बा ???
लोग त चपरासी बनते
भोजपुरी भुला जाला ।
पता ना लोग
अपना माई-बाप के
के तरे याद राखत होई?
परिचय-
मनोज भावुक
प्रकाशित पुस्तक – तस्वीरी जिंदगी के (ग़ज़ल-संग्रह ) और चलनी में पानी (कविता – संग्रह )
पहले युगांडा और लन्दन में इंजिनियर। अब मीडिया / टीवी चैनल और फिल्मों में सक्रिय
संपर्क – [email protected] , 09971955234
B. K. Parmar
April 26, 2019 at 12:00 am
भोजपुरी संस्कृति के संयोजन के दृष्टिकोण से बहुत हीं सुन्दर साहित्य, कवच बा।