गोरखपुर। मजीठिया वेज बोर्ड के लिये आवाज उठाने पर एचएमवीएल कंपनी के हिन्दुस्तान गोरखपुर यूनिट से देहरादून ट्रांसफर किये गये सुरेंद्र बहादुर सिंह ने वहां के उप श्रमायुक्त के माफी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। उन्होंने न माफी मांगी है न कंपनी ज्वाइन की है। इस बात की पुष्टी उन्होंने स्वयं की है। बीते दो दिनों से अफवाहों का बाजार गरम था कि सुरेंद्र ने माफी मांगकर अखबार ज्वाइन कर लिया है।
वेज बोर्ड की मांग करने पर 16 सितम्बर की डेट में सुरेंद्र को देहरादून ज्वाइन करने का फरमान पत्र उनके घर भेज दिया गया। सुरेंद्र 21 सितम्बर तक दफ्तर में काम करते रहे लेकिन उन्हें तबादले के बारे में नहीं बताया गया। इसके बाद सुरेंद्र छुट्टी पर चले गये। इस बीच उन्होंने मानवाधिकार आयोग और एसएसपी गोरखपुर से कंपनी के उत्पीड़न की भी शिकायत की थी। इस बात से कंपनी का एचआर प्रबन्धन काफी नाराज था।
वापस लौटकर जब वह 07 अक्टूबर को कंपनी के गोरखपुर यूनिट में काम करने गये तो उन्हें जान से मारने की धमकी देते हुये बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इस संबंध में पुलिस में शिकायत की जा चुकी है लेकिन पुलिस ने कोई एक्शन नहीं लिया।
इस बीच सुरेंद्र ने ट्रांसफर को गैर कानूनी करार देते हुये राज्य के श्रम आयुक्त से गोरखपुर यूनिट में ही ज्वाइन कराने की मांग की। जब राज्य की पुलिस और श्रम विभाग ने नहीं सुना तो उनके पास देहरादून जाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। लेकिन तबीयत और आर्थिक हालात ने धोखा दे दिया और वे समय पर देहरादून नहीं पहुंच सके।
दीपावली के बाद जब वह ज्वाइन करने पहुंचे तो उनसे केवल दफ्तर के चक्कर लगवाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे स्थानीय डीएलसी से मिले। डीएलसी ने माफी मांगकर ज्वाइन करने की सलाह दी जिसे सुरेंद्र ने ठुकरा दिया। सुरेंद्र ने कहा है कि वह कोई भी कीमत चुकाएंगे लेकिन माफी मांगकर ज्वाइन नहीं करेंगे। हम सुरेंद्र के इस जज्बे को सलाम करते हैं। मेरी अपील है कि सभी सुरेंद्र भाई का हौसला बढ़ाएं।
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वेद प्रकाश पाठक “मजीठिया क्रांतिकारी”
स्वतंत्र पत्रकार, कवि, सोशल मीडिया एक्टिविस्ट
संयोजक-हेलमेट सम्मान अभियान गोरखपुर 2016
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मंगेश विश्वासराव
November 12, 2016 at 9:48 am
ऐसे होते हैं पत्रकार…सलाम. लडते रहो भाई. देर लगेगी. मग कानून पर भरोसा रखो. जीत अपनी ही होगी. मै भी लड रहा हूं.
मंगेश विश्वासराव
November 12, 2016 at 9:50 am
बाकी लोग क्या कर रहे हैं. चूडीयां भर रखीं हैं क्या सोलों ने