नंदकिशोर नौटियाल नहीं रहे। उन्होंने अपने गृह प्रदेश उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में आखिरी सांस ली। पत्रकारिता को अपने जीवन के साठ बरस देने वाले पीढ़ी के महापुरुष को नमन।
बहुत कम लोग जानते हैं कि 1946 के नौसेना विद्रोह के समर्थन में उन्हें जेल जाना पड़ा। 1948 में पत्रकारिता से इश्क किया। नवभारत साप्ताहिक (मुंबई) से इस प्रेम पथ पर बढ़े। गोवा मुक्ति संग्राम और पृथक हिमालयी राज्य और उत्तराखंड आंदोलन से भी जुड़े।
कई पत्र- पत्रिकाओं से होते हुए 1962 में मुंबई में साप्ताहिक हिंदी ब्लिट्ज से जुड़े। दस साल सहायक संपादक रहने के बाद 1973 में संपादक बने।
उन्होंने ब्लिट्ज़ संस्थान को सामाजिक-सांस्कृतिक दुनिया से जोड़ने की पहल की। ब्लिट्ज नेशनल फोरम के महासचिव रहे। नंदकिशोर नौटियाल के संपादन में ब्लिट्ज़ को लोगों ने इस हद प्यार किया कि आपातकाल में जयपुर विश्वविद्यालय के छात्रों ने ‘नौटियाल ब्रिगेड’ की स्थापना की। वाइस चांसलर को नौटियाल को जयपुर बुलाना पड़ा।
हिंदी ब्लिटज में छपी एक रिपोर्ट को साक्ष्य मानते हुए अदालत ने सागर विश्वविद्यालय के छात्रों को एक आपराधिक मामले में बरी किया। जनहित की इस नीति पर चलते हुए हिंदी ब्लिट़्ज की प्रसार संख्या साढ़े तीन लाख पहुंच गई। यह रिकार्ड नौटियाल के संपादकत्व में स्थापित हुआ था। 1992 में ब्लिट्ज़ से अवकाश के बाद उन्होंने नूतन सवेरा साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू किया। उन्होंने विश्व हिंदी सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
लेखक मुकुंद मित्र वरिष्ठ पत्रकार हैं.