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अंग्रेजी अखबार दी हिंदू ने रुक्मिणी श्रीनिवासन को बनाया है ‘नेशनल डाटा एडिटर’, क्या ये पद हिंदी अखबारों में है?

एनडीटीवी पर प्राइम टाइम का रीटेलीकास्ट देख रहा था। इसमें रुक्मिणी श्रीनिवासन, जो कि अंग्रेजी दैनिक हिंदू में नेशनल डाटा एडिटर हैं, ने बताया कि बलात्कार की अधिकांश खबरें प्रायोजित और उन मां-बाप द्वारा दर्ज कराई जाती हैं जिनकी बेटियों ने घर से भागकर शादी कर ली है। वे अपनी बेटियों को वापस ले आते हैं और लड़के विरुद्घ रिपोर्ट दर्ज कराते हैं तथा फिर कुछ दिनों बाद उसकी पैरवी बंद कर देते हैं। रुक्मिणी ने छह महीने में अपनी यह रिपोर्ट तैयार की है। यह रिपोर्ट आँखें खोलने वाली है। खासकर उनके लिए जो बस टीवी में सुनकर और अखबारों में पढ़कर बायस्ड होकर निष्कर्ष निकालते हैं।

<p>एनडीटीवी पर प्राइम टाइम का रीटेलीकास्ट देख रहा था। इसमें रुक्मिणी श्रीनिवासन, जो कि अंग्रेजी दैनिक हिंदू में नेशनल डाटा एडिटर हैं, ने बताया कि बलात्कार की अधिकांश खबरें प्रायोजित और उन मां-बाप द्वारा दर्ज कराई जाती हैं जिनकी बेटियों ने घर से भागकर शादी कर ली है। वे अपनी बेटियों को वापस ले आते हैं और लड़के विरुद्घ रिपोर्ट दर्ज कराते हैं तथा फिर कुछ दिनों बाद उसकी पैरवी बंद कर देते हैं। रुक्मिणी ने छह महीने में अपनी यह रिपोर्ट तैयार की है। यह रिपोर्ट आँखें खोलने वाली है। खासकर उनके लिए जो बस टीवी में सुनकर और अखबारों में पढ़कर बायस्ड होकर निष्कर्ष निकालते हैं।</p>

एनडीटीवी पर प्राइम टाइम का रीटेलीकास्ट देख रहा था। इसमें रुक्मिणी श्रीनिवासन, जो कि अंग्रेजी दैनिक हिंदू में नेशनल डाटा एडिटर हैं, ने बताया कि बलात्कार की अधिकांश खबरें प्रायोजित और उन मां-बाप द्वारा दर्ज कराई जाती हैं जिनकी बेटियों ने घर से भागकर शादी कर ली है। वे अपनी बेटियों को वापस ले आते हैं और लड़के विरुद्घ रिपोर्ट दर्ज कराते हैं तथा फिर कुछ दिनों बाद उसकी पैरवी बंद कर देते हैं। रुक्मिणी ने छह महीने में अपनी यह रिपोर्ट तैयार की है। यह रिपोर्ट आँखें खोलने वाली है। खासकर उनके लिए जो बस टीवी में सुनकर और अखबारों में पढ़कर बायस्ड होकर निष्कर्ष निकालते हैं।

हर रिपोर्ट एक दूरगामी साहित्य बन सकती है बशर्ते उस पर मेहनत की जाए और उसे छापने वाला मीडिया संस्थान उसके लिए खर्च करे। नेशनल डाटा एडिटर बनना गर्व की बात है कि अब वह रिपोर्टर वह रिपोर्ट दे सकेगा जो वाकई हकीकत होगी। पर इसके लिए धैर्य, साहस और संयम चाहिए। कहने को तो फेसबुकिया साहित्य की बाढ़ है पर यह वैसा ही साहित्य है जैसा कि अपने मोबाइल द्वारा खींची गई फोटो या सेल्फी। कलाएं समय मांगती हैं, मेहनत मांगती हैं और धैर्य भी। अधीर लोग सब गुड़ गोबर किया करते हैं। जैसे कि फेसबुक पर कुछ भी लिख देने वाले लोग।

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वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल के फेसबुक वॉल से.

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