Om Thanvi : मुद्दत बाद आज दूरदर्शन के कार्यक्रम में गया। चुनाव के नतीजों पर चर्चा थी। बीच में पहले भी कई बार बुलावा आया, पर मना करता रहा। आज तो और चैनलों पर भी जाना था। फिर भी अधिक इसरार पर हो आया। जाकर कहा तो वही जो सोचता हूँ! बहरहाल, पता चला कि कोई सरकारी निर्णय बुलाने न-बुलाने को लेकर नहीं रहा, कोई अधिकारी समाचार प्रभाग में आईं जो अपने किसी लाभ के लिए नई सरकार को इस तरह खुश करने की जुगत में थीं कि भाजपा या नरेंद्र मोदी के आलोचकों को वहां न फटकने दें!
Om Thanvi : रजत शर्मा की अदालत को इक्कीस साल हो गए, उन्हें बधाई। उनके जलसे के वक्त बाहर था, अभी उसकी रेकार्डिंग देखने को मिली चैनल पर। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, नेता-अभिनेता सब नामी लोग थे। मजेदार अदालत होती है, आयोजन भी मनोरंजक था। रजत शर्मा अच्छा बोले। दिल से। नरेंद्र मोदी भी, जो बहुत सहज और ईमानदार थे: बोले चुनाव के दौर में हुई बातचीत उनके लिए बहुत मददगार रही। बहरहाल, रजत ने सबको याद किया, मगर अपने कार्यक्रम की तीसरी अहम कड़ी जजों का जिक्र करना शायद भूल गए। आप जानते हैं वहां जनता सामने होती है और इधर ‘वकील’ और ‘मुजरिम’ के बाद तीसरा बड़ा पात्र ‘जज’ होता है, जो बेचारा घंटे भर से ज्यादा की जिरह सुनते-सुनते कान खुजाने लगता है। आठ-दस बार मैं ही ‘जज’ की नाटकीय भूमिका कर आया हूँ – अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल, शरद यादव, लालू प्रसाद यादव, फ़ारुख़ अब्दुल्ला, शत्रुघ्न सिन्हा … सिन्हा ने तो मेरे ‘फैसले’ (कि अब नेतागीरी में अभिनेता का अंदाज छोड़ो!) की तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत से दोस्ताना शिकायत कर डाली थी! जो हो, हिंदी टीवी संसार में मनोरंजन भरी गुफ्तगू के इस लम्बे और बेहद सफल सिलसिले की रजत शर्मा को बधाई! मैंने महज ‘लंबी अवधि’ के कार्यक्रम और उसकी ‘सफलता’ की बधाई दी है। सफलता में क्या शक जो पूरा चैनल ही खड़ा हो गया। बाकी रजत शर्मा की राजनीति, रणनीति क्या रहती है हम सब जानते हैं। चैनल के ‘योगदान’ पर मैं पहले लिख चुका हूँ। अब वहां जाता भी नहीं हूँ। अदालत के लिए मनोरंजन शब्द एकाधिक बार जान-बूझ कर लिखा है। पीछे की बात नरेंद्र मोदी की टिप्पणी में ही उजागर है। मनोरंजन के साथ इस ‘खेल’ के लिए भी अदालत को जब-तब देखता हूँ – भले अब वहां जाने से सदा इनकार करता हूँ और करता रहूँगा। खासकर अपने मित्र ख़ुर्शीद अनवर पर चैनल की गैर-जिम्मेदार भूमिका देखने के बाद मन और भी क्षुब्ध रहा है। फिर भी कार्यक्रम देखा तो बधाई दे दी, इसे बस अपनी दरियादिली समझिए। जज के नाते तो कभी फिक्स नहीं अनुभव किया। कभी फैसले से खेल बिगाड़ भी आया। बाकी फिक्सिंग या प्रयोजन विशेष में स्वैच्छिक प्रस्तुति को देखकर ही समझा जा सकता है। जज कौन हो यह भी तो आखिर वही तय करते हैं। जजी में कोई दखल नहीं होता। पर जज तय तो वही करते हैं। कभी-कभी “मुजरिम” भी कर लेता है। हरियाणा के एक मुख्यमंत्री अपनी पसंद का जज चंडीगढ़ से लिवा लाए थे, यह मैं निजी तौर पर जानता हूँ – मुख्यमंत्रीजी ने खुद बताया था।
वरिष्ठ पत्रकार और जनसत्ता अखबार के संपादक ओम थानवी के फेसबुक वॉल से.
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Comments on “दूरदर्शन ने फिर से ओम थानवी को बुलाना शुरू कर दिया”
Jab itana purvagrah darshayenge to faida kya hai bulane ka. ek patrakar ko, bhale hi usaka jhukav kisi bhi party ki taraf ho, kam se kam paricharcha ke douran nishpaksh kona chayige.