दिल्ली में ‘आप’ सरकार को न कुचला गया तो बीस वर्षों तक भाजपा यहां सत्ता में न आ पाएगी!

Om Thanvi : दिल्ली में आप सरकार के दो वर्षों के कामकाज पर हिंदुस्तान टाइम्स में छपा वृहद सर्वे बताता है कि लोग मानते हैं राजधानी में भ्रष्टाचार घटा है और शिक्षा, चिकित्सा, जल-आपूर्ति और बिजली-प्रबंध के क्षेत्रों में बेहतर काम हुआ है। और, दिल्ली सरकार की यह छवि दो वर्षों तक नजीब जंग की अजीब हरकतों के बावजूद बनी है, जिन्होंने केंद्र सरकार की गोद में बैठकर निर्वाचित शासन के काम में भरसक रोड़े अपनाए।

…सुलह होगी पंकजजी, यहां नहीं तो वहां : ओम थानवी

Om Thanvi : परसों की ही बात है। आइआइसी मेन के लाउंज में सुपरवाइजर की मेज के गिर्द हम दोनों अगल-बगल आ खड़े हुए थे। करीब, मगर अबोले। बगल वाले शख्स पंकज सिंह थे। नामवर सिंहजी के सालगिरह समारोह के दिन से हमारी तकरार थी। बहरहाल, परसों हम आमने-सामने होकर भी अपने-अपने घरों को चले गए। पर मुझे वहाँ से निकलते ही लगा कि यहीं अगली दफा हम लोग शायद गले मिल रहे होंगे। क्षणिक तकरार कोई जीवन भर का झगड़ा होती है? आज मैं इलाहाबाद आया। वे पीछे दुनिया छोड़ गए। लगता है अब वहीं मिलेंगे। आज नहीं तो कल।

कृष्‍णनाथ जी नहीं रहे…

‘नए जीवन दर्शन की संभावना’ एक बार पढि़ए तब समझ आएगा वे कितना पढ़ते थे, कितने मौलिक थे, कितने विराट थे…

Om Thanvi : दिल्ली में उतरते ही फोन पर रंजना कुमारी का संदेश मिला कि कृष्णनाथजी नहीं रहे। मेरे लिए सदमे से कम नहीं यह खबर। कृष्णनाथजी सुलझे हुए समाजवादी विचारक और अर्थशास्त्र के विद्वान ही नहीं थे, अनूठे यायावर और गद्यकार थे। लद्दाख में राग-विराग, स्पीति में बारिश, हिमाल यात्रा, पृथ्वी परिक्रमा आदि उनके यात्रावृत्त हिंदी साहित्य की अनमोल कृतियाँ हैं। वे राममनोहर लोहिया के सहयोगी थे। उन्होंने ‘कल्पना’ ‘जन’ और ‘मैनकाइंड’ का संपादन भी किया।

Om जी के पास के.के. बिड़ला पुरस्‍कार देने वाले को चुनने की सुविधा नहीं थी!

Abhishek Srivastava : जिस तरह Om जी के पास के.के. बिड़ला पुरस्‍कार देने वाले को चुनने की सुविधा नहीं थी, उसी तरह Uday जी को मुख्‍य अतिथि चुनने की सुविधा नहीं थी या काशीनाथ सिंह को भारत भारती लेते वक्‍त उत्‍तर प्रदेश की मनपसंद सरकार चुनने की सुविधा नहीं थी। जिस तरह ओमजी ने पुरस्‍कार कल्‍याण सिंह के हाथों नहीं बल्कि राज्‍यपाल के हाथों से लिया है, ठीक वैसे ही नरेश सक्‍सेना ने रमण सिंह से नहीं बल्कि एक जनप्रतिनिधि से हाथ मिलाया था और नामवरजी ने नरेंद्र मोदी के साथ नहीं बल्कि लोकतंत्र में चुने गए एक प्रधानमंत्री के साथ ज्ञानपीठ का मंच साझा किया था।

कल्याण के हाथों पुरस्कार लेने का विरोध करने वालों को ओम थानवी ने दुश्मन करार दिया

Om Thanvi : दुश्मनों के पेट में फिर बल पड़ गए। कहते हैं, महाकवि बिहारी के नाम पर दिया जाने वाला केके बिड़ला फाउंडेशन का पुरस्कार मैंने कल्याण सिंह के हाथों क्यों ले लिया? अगर मुझे चुनाव की सुविधा होती तो आयोजकों से कहता किसी लेखक के हाथों दिलवाइए। इसके बावजूद, सच्चाई यह है कि पुरस्कार मैंने कल्याण सिंह के हाथों नहीं, राज्यपाल के हाथों लिया है; राज्यपाल जो संविधान की सत्ता का प्रतीक होता है, संविधान का प्रतिनिधि और कार्यपालक होने के नाते। राजभवन कल्याण सिंह या भाजपा की मिल्कियत नहीं है।

कल्याण सिंह के हाथों पुरस्कार लेने पर ओम थानवी सोशल मीडिया पर घिरे

Neelabh Ashk : मत छेड़ फ़साना कि ये बात दूर तलक जायेगी. ओम तो गुनहगार है ही, हिन्दी के ढेरों लोग किसी न किसी मौक़े पर और किसी न किसी मात्रा में गुनहगार हैं. इस हमाम में बहुत-से नंगे हैं. पुरस्कार पाने वाले की पात्रता के साथ पुरस्कार देने वाली की पात्रता भी देखी जानी चाहिए। ऐसी मेरी मान्यता है. मैंने साहित्य अकादेमी का पुरस्कार लौटा दिया था. मेरी मार्क्स की पढ़ाई ने मुझे पहला सबक़ यह दिया था कि कर्म विचार से प्रेरित होते हैं. 55 साल बाद तुम चाहते हो मैं इस सीख को झुठला दूं. ओम की कथनी और करनी में इतना फ़र्क़ इसलिए है कि सभ्यता के सफ़र में इन्सान ने पर्दे जैसी चीज़ ईजाद की है. ईशोपनिषद में लिखा है कि सत्य का मुख सोने के ढक्कन के नीचे छुपा है. तुम सत्य को उघाड़ने की बजाय उस पर एक और सोने का ढक्कन रख रहे हो. ये ओम के विचार ही हैं जो उसे पुरस्कार>बिड़ला>राज्यपाल>कल्याण सिंह की तरफ़ ले गये. मैं बहुत पहले से यह जानता था. मुझे कोई अचम्भा नहीं हुआ. मैं ओम की कशकोल में छदाम भी न दूं. और अगर यह मज़ाक़ है तो उम्दा है, पर हिन्दी के पद-प्रतिष्ठा-पुरस्कार-सम्मान-लोभी जगत पर इसका कोई असर नहीं होगा.

ओम जी की युवा चपलता उन्‍हें रि‍टायर होने भी नहीं देगी

Rahul Pandey :  मैं कभी जनसत्‍ता में नहीं छपा। बल्‍कि शायद मैं कहीं नहीं छपा। तो अगर कोई ये सोचे कि आेम जी का मेरा परि‍चय कुछ छपने छपाने को लेकर हुआ तो उसे नि‍राशा ही हाथ लगेगी। मुरादाबाद में एक दि‍न मैने ओम जी की वॉल पर कुछ सीक्‍योरि‍टी ब्रीचेस देखे तो बेलौस उन्‍हें मैसेज कर दि‍या। तुरंत उनका जवाब भी आया, चीजें शायद ठीक की गईं या नहीं, याद नहीं, लेकि‍न हमारी डि‍जि‍टल दोस्‍ती तो ठीक ठाक शुरू हो गई।

चार दिनों बाद यानी 31 जुलाई से ओम थानवी जनसत्ता के संपादक पद से अवकाश ले लेंगे

इंडियन एक्सप्रेस इसलिए नहीं पढ़ा जाता रहा है कि उसमें ढूंढ़-ढूंढ़ कर स्टोरी लाई जाती थीं बल्कि उसकी प्रतिष्ठा इसलिए थी क्योंकि उसका चरित्र व्यवस्था विरोधी (एंटी इस्टैबलिशमेंट) रहा है। बाद में एक्सप्रेस ने तो खैर अपना चरित्र बदला भी मगर जनसत्ता दृढ़ रहा। प्रभाष जी के बाद भी जनसत्ता का यह चरित्र यथावत बना रहा तो यकीनन इसका श्रेय ओम थानवी को जाता है। प्रभाष जोशी बड़ा नाम था इसलिए उनके वक्त तक जनसत्ता में काम कर रहे दक्षिणपंथी पत्रकार खुलकर सामने नहीं आए थे मगर ओम थानवी के समय ऐसे तत्व खुलकर अपने दांव चलने लगे थे इसके बावजूद जनसत्ता का चरित्र नहीं बदला। ऊपर से प्रबंधन ने ओम थानवी को वह स्वायत्तता भी नहीं दी जैसी कि प्रभाष जी के वक्त तक संपादक को प्राप्त थी।

अभिनेत्री रह चुकीं मंत्री ने सीधे सवाल को महिला-मुद्दा बनाकर स्टूडियो में मौजूद ‘जनता’ को ‘आजतक’ के खिलाफ भड़काया

Om Thanvi : सीधे सवाल पर ड्रामा जवाब से भागती ईरानी का, उलटा आरोप पत्रकार पर! अशोक सिंघल ने आजतक पर स्मृति ईरानी से पूछा कि मोदी ने आपको क्या खूबी देख कर (केबिनेट) मंत्री बनाया। स्मृति का हुनर देखिए कि जिस सवाल पर पहले कोई हैरान नहीं हुआ था, जवाब देने की जगह अभिनेत्री रह चुकीं मंत्री ने उस सवाल को महिला-मुद्दा बनाकर स्टूडियो में मौजूद ‘जनता’ के बीच कुछ इस अंदाज से उछाला कि लोग भड़क गए, इतना कि मंच पर पत्रकार पर हमला तक करने जा पहुंचे। तब मंत्री ने उठकर पत्रकार को बचाने जाने का उपक्रम भी प्रदर्शित किया! गौर करने की बात है कि आमंत्रित की गई भीड़ ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगा रही थी।

एक साल की नाकामियों को उपलब्धियों में बदला जा सकता है!

डीएनए अखबार में प्रकाशित मंजुल का कार्टून

Om Thanvi :  महंगे और सुनियोजित प्रचार से जैसे चुनाव जीता जा सकता है, वैसे ही एक साल की नाकामियों को उपलब्धियों में क्यों नहीं बदला जा सकता? पूरे एक सप्ताह से टीवी और बाकी मीडिया में हम जो गाजे-बाजे सुन-देख रहे हैं, वे अभी एक सप्ताह और चलेंगे – तब तक जब तक जनता का दिमाग साफ (ब्रेन-वाश) न हो जाय या उसके कान पक न जाएं! मथुरा में तो रैलियों की शुरुआत भर हुई है।

दूरदर्शन ने फिर से ओम थानवी को बुलाना शुरू कर दिया

Om Thanvi : मुद्दत बाद आज दूरदर्शन के कार्यक्रम में गया। चुनाव के नतीजों पर चर्चा थी। बीच में पहले भी कई बार बुलावा आया, पर मना करता रहा। आज तो और चैनलों पर भी जाना था। फिर भी अधिक इसरार पर हो आया। जाकर कहा तो वही जो सोचता हूँ! बहरहाल, पता चला कि कोई सरकारी निर्णय बुलाने न-बुलाने को लेकर नहीं रहा, कोई अधिकारी समाचार प्रभाग में आईं जो अपने किसी लाभ के लिए नई सरकार को इस तरह खुश करने की जुगत में थीं कि भाजपा या नरेंद्र मोदी के आलोचकों को वहां न फटकने दें!

बीएचयू में संघ की शाखा और मुसलमानों के प्रति नफरत के बीज

Om Thanvi : प्रो. तुलसीराम की आत्मकथा के दूसरे भाग ‘मणिकर्णिका’ की बात मैंने परसों की थी। उस किताब में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के दिनों का एक प्रसंग इस तरह हैः