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सुख-दुख

चाँद कैसे बना? चांद पर जाकर क्या करेंगे हम?

अजीत साही-

क्या आप जानते हैं चाँद कैसे बना? Origin of moon गूगल कीजिए. वैज्ञानिकों में सबसे प्रचलित थ्योरी ये है…

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आज से करोड़ों साल पहले जब पृथ्वी नई बनी थी और तेज़ी से घूम रही थी तो मंगल ग्रह की साइज़ का एक घूमता हुआ गोला पृथ्वी से आकर टकरा गया. इस ज़बर्दस्त एक्सीडेंट से पृथ्वी और उस गोले के कई टुकड़े हवा में उछल गए. अंतरिक्ष में घूमते वो टुकड़े कालांतर में आपस में जुड़ने लगे और जुड़ते जुड़ते चंद्रमा बन गए.

क्या आप ये भी जानते हैं कि जब पृथ्वी नई बनी थी तो अपनी धुरी पर बहुत तेज़ घूमती थी? ऐसा भी टाइम था जब एक दिन में सिर्फ़ छह घंटे होते थे. दरअसल पृथ्वी की स्पीड वक़्त के साथ धीरे होती जा रही है. एक वो भी वक़्त आएगा जब पृथ्वी की स्पीड एकदम धीमे होकर रुक जाएगी.

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वक़्त तो वो भी आएगा जब सूरज मद्धिम पड़ कर फुंक जाएगा. अरबों साल बाद.

लेकिन वो सब होने से पहले पृथ्वी पर से मानव क्या संभवतः हर जीव ख़त्म हो चुका होगा.

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बाक़ी अभी आप मज़े ले लें चाँद तक पहुँचने के.



ध्रुव गुप्त-

चंद्रयान-3 के सफल प्रक्षेपण / लांचिंग के लिए इसरो के सभी वैज्ञानिकों को बधाई। हमें पूरा विश्वास है कि चार साल पहले चंद्रयान-2 की गलती से सबक लेकर इस बार इसका लैंडर भी चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने में सक्षम होगा। हमारे वैज्ञानिक सक्षम हैं और भविष्य में वे चांद ही नहीं, कई-कई और ग्रहों और उपग्रहों तक पहुंच सकते हैं। सवाल बस यह है कि चांद पर पहुंचकर हम हासिल क्या करेंगे ? यह संतोष कि चांद पर पहुंचने वाले हम विश्व के चौथे देश बन गए ? या यह दम्भ कि हमारी इस सफलता से हमारे दुश्मन मुल्क़ जलकर खाक़ हो जाएंगे ? अगर नहीं तो यह जानकर कि चांद के किसी कोने में पानी का भंडार है, हमें क्या मिलेगा ?

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क्या हम टंकियों और बोतलों में भरकर उसे पृथ्वी पर लाएंगे ? तब चांद के एक बोतल पानी की क़ीमत इतनी होगी कि हमारे-आपके जैसे लोगों के घर बिक जायं। वहां खनिजों और गैसों के भंडार का पता भी मिल जाय तो उन्हें पृथ्वी पर लाने में जितना खर्च लगेगा उतने में हम पृथ्वी पर ही खनिजों के कई-कई भंडार खोज निकालेंगे। वह पृथ्वी हो अथवा चांद, प्रकृति से खेलने के नतीजें कितने ख़तरनाक हो सकते हैं, यह हम सब अपनी दुनिया में देख और महसूस कर रहे हैं।

हमारी पृथ्वी से सुन्दर कोई ग्रह या उपग्रह इस पूरे ब्रह्माण्ड में होगा, इसकी संभावना नहीं दिखती। यहां प्रकृति का अथाह सौन्दर्य भी है, विविधताओं से भरा जीवन भी और जीवन के पैदा तथा विकसित होने की सर्वाधिक अनुकूल परिस्थितियां भी। ब्रह्माण्ड के किस ग्रह-उपग्रह पर होगी ऐसी सोंधी मिट्टी, ऐसी ताजा हवा, ऐसी मनोहारी हरियाली, ऐसी उछलती-कूदती नदियां, ऐसी हरी-भरी या बर्फ से आच्छादित पर्वत श्रृंखलायें, ऐसे रंग-विरंगे फूल, इतने खूबसूरत वन और पशु-पक्षियों का इतना विविध संसार ? चांद को बेवज़ह छेड़ने से बेहतर होगा कि हम तेजी से विनाश की ओर बढ़ती हुई अपनी पृथ्वी की उम्र थोड़ी और बढ़ाने का जतन करें। उसके जंगल और वृक्ष उसे वापस लौटाकर। उसकी जहरीली होती हवा में थोड़ा प्राण फूंककर। उसकी नदियों को अविरल और निर्मल बनाकर। यह पृथ्वी बचेगी तो हम बचेंगे और हमारी आनेवाली पीढ़ियां बचेंगी।

क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम अपनी पृथ्वी की चिंता करें और चांद को उसके हाल पर छोड़ दें ! चांद हमारे बगैर ज्यादा सौम्य, शीतल, निर्मल और खूबसूरत है। उसे वैज्ञानिकों और राजनेताओं के हवाले करने के बजाय दुनिया भर के प्रेमियों और कवियों-शायरों के लिए छोड़ दिया जाय।

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3 Comments

3 Comments

  1. किशन

    July 15, 2023 at 8:39 am

    लेखक छोटी सोच वाले कूपमण्डूक हैं ।

  2. umendra singh

    July 15, 2023 at 2:55 pm

    अजीत शाही जी और ध्रुव जी, आप जैसे मूर्ख थोड़ा लिखना जानते हैं, मतलब हिंदी टाइपिंग तो जो मर्जी आई वही बोलेंगे, अरे महा मूर्खों चांद पर पानी मिला तो क्या कोई बाल्टी ले जाने वाले वहा वैज्ञानिक, अरे कूप मंडूक, जल मिला मतलब जीवन के नए रहस्य खुले, तुम दोनो की बुद्धि सुबह दिन रात तीन टाईम रोटी सब्जी से ऊपर प्रतीत नहीं होती,

    अरे अजीत जी मूर्खों के महा मंडलेश्वर, तुमको पता होता की वहां जाकर करेंगे क्या तो 10 हजारी पत्रकार बन घूम रहे होते, इसरो के वैज्ञानिक न होते।
    उमेंद्र सिंह

  3. Karan

    July 22, 2023 at 9:39 pm

    सीधी बात है भारत की सफलता और वैश्विक स्तर पर बढ़ता महत्व इनको पचता नहीं है इन्हें समझ नहीं आता की विरोध केसे करे
    तो क्यों न इस पर ही रो लिया जाए

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