Ram Janm Pathak : मुरादाबाद जाने के लिए निकला। रात के बारह बज रहे थे। आटों को हाथ दिया। आनंद विहार जाना था। घुसते ही आशंका हुई। तभी बगल में बैठे दो युवकों ने मेरी गरदन कस ली। बोले- निकाल साले जो कुछ हो। मैंने कहा- तीन-चार हजार होंगे, दफ्तर में मोबाइल बैन आई थी, बड़ी मुश्किल से निकाला था। गरदन कसती जा रही थी, चाकू लहराता जा रहा था। मैंने कहा- ले लो, चाकू मत मारना।
पहले उन लोगों नें मेरी साली की दी हुई घड़ी खोली। फिर जेब के सारे पैसे खंगाले। वे परचूनी दो हजार की नोट ले गए, जिसे आज मैंने दप्तर में लाइन लेकर निकाला था। मोबाइल ले गए। मोबाइल मांग रहे थे, मैंने झूठ बोला कि नहीं है। एक युवक गुस्सा हो गया-बोला झूठ बोलता है। मतलब कि लुटेरे को भी झूठ पसंद नहीं है। samsung ke mobile ले गए। उसमें बहुत सारे रिकार्ड थे, पता नहीं क्या करेगे साले?
फिर कहीं संजय मार्केट के पास फेंक कर चले गए। फिर पुलिस आई और फिर सीमा विवाद। दिल्ली और नोएडा। दिल्ली पुलिस 45 मिनट बाद आ गई। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। मुझे रात में नहीं निकलना चाहिए था। मैं लड़की नहीं हूं, फिर भी मुझे रात को नहीं निकलना चाहिए था। बदमाशों से मैं घिघिया रहा था-मुझे मुरादाबाद जाना है, सौ रुपये छोड़ दो। उन्होंने सिर्फ तीस रुपए छोड़े। गनीमत रही कि लैपटाप वाले बैग समेत मुझे सड़क पर फेंका।
मोबाइल ले गए। लैपटाप क्यों छोड़ा? शायद उन्हें लैपटाप चलाना नहीं आता होगा। एक बात और समझ नहीं आई कि वे जिसे लूटते हैं, उन्हें भीड़ के सामने क्यों फेंकते हैं? दिल्ली पुलिस के दो नजवान मुझे मेरे घर छोड़ गए हैं। नोयडा पुलिस चौकी (हरिदर्शन पर तहरीर दे दी है, एक ऊंघते हुए दरोगा जी ने कहा। सवेरे आना-दरोगा जी को सारी बात बताना।)
मैंने कम से दो बदमाशों को पहचान लिया है। देखता हूं, सवेरे क्या होता है…लुटेरों तुम्हारी शुक्रिया, लैपटाप समेत मुझे सड़क पर फेका….. मेरे पास मोबाइल नहीं हैं। पोस्टपेड था, पता नहीं क्या करेंगे साले।
जनसत्ता अखबार में कार्यरत पत्रकार राम जनम पाठक की एफबी वॉल से.