दिल्ली : ट्रैफिक पुलिसकर्मी उमेश तिवारी, पत्रकार प्रत्यूषजी का नाम लेकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे। यह दबाव उन्हें इसलिए बनाना पड़ रहा था क्योंकि वे एक काले रंग का शीशा लगाकर जा रही गाड़ी का चालान नहीं करना चाहते थे। यह घटना 22 अगस्त की है, जब लोदी रोड़ स्थित आईएसआई में एक सज्जन से मिलने के लिए दोपहर में अपने एक परिचित के साथ जा रहा था।
मित्र ने भूलवश लाल बत्ती से यू टर्न ले लिया और दिल्ली ट्रेफिक पुलिस ने एक सौ रुपए का चालान कर दिया। यहां तक सबकुछ ठीक था। हमारा चालान हो गया था, इतने में काले रंग का शीशा लगाए एक गाड़ी आई। ट्रैफिक पुलिसकर्मी जिनका नाम उमेश तिवारी था, ने उस गाड़ी को हाथ देकर रुकवाया। ना जाने गाड़ी के मालिक और उमेश तिवारीजी में क्या बात हुई? तिवारीजी ने गाड़ी मालिक से हाथ मिलाकर उस गाड़ी का चालान नहीं किया। यह बात मुझे अच्छी नहीं लगी।
जब उमेश तिवारीजी से मैने पूछा कि उस गाड़ी को क्यों छोड़ा? इस पर तिवारीजी का कहना था कि उस गाड़ी का शीशा काला नहीं है। तिवारीजी से बहस किए बिना मैने गाड़ी की तस्वीर अपने कैमरे से उतार ली। यह देखकर तिवारीजी फौरन भागते हुए गाड़ी वाले के पास गए और उसे कुछ कहा। जिसके बाद वह चालान कटाने के लिए गाड़ी से उतर कर नीचे आ गया। न जाने किस मजबूरी में या विवशता में तिवारीजी ने गाड़ी वाले का चालान तो करवा दिया लेकिन इस घटना से वे बेहद आहत हुए और मुझे और मेरे साथ जो परिचित थे, उन्हें पत्रकारिता का ज्ञान देने लगे। इस ज्ञान में बीच-बीच में वे धमकी का अंश भी डालते थे। मसलन नवभारत टाइम्स के कोई बड़़े संपादक उनके रिश्तेदार हैं। यह भी बताया कि वे बिहार से ताल्लूक रखते हैं और सारी मीडिया में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग भरे हुए हैं।
इतना ही नहीं- इन साहेब ने कहा कि उमेश तिवारी नाम है मेरा, परशुराम के कूल से बिलांग करता हूं। इज्जत पर बात आ गई ना तो काट कर रख दूंगा। जब वे ये सब कह रहे थे तो उन्हें अनुमान नहीं रहा होगा कि मेरे परिचित का कैमरा रिकॉर्ड मोड़ पर है। वे कहते-कहते ये भी कह गए कि इस तरह की हरकत ब्लैक मेलर करते हैं। इस पूरी कहानी में हमारी गलती इतनी भर थी कि हमने उस आदमी का चालान उनके हाथ करवा दिया था, जिसे वे अपने हाथों बाइज्जत बरी कर चुके थे।
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युवा पत्रकार आशीष कुमार अंशु की रिपोर्ट. संपर्क: [email protected]