दिलीप दत्ता
वाराणसी। जिनके शब्द सिर्फ बोलते नहीं, अंदर तक झकझोर जाते हैं, उन्हीं प्रेमचंद के उपन्यास पर बनी फिल्म ‘बाजार-ए-हुस्न’ में बनारस दिख रहा है. फिल्म में पूरा का पूरा बनारस मौजूद है. कभी दालमण्डी और बनारस की गलियों की शक्ल में, कभी घाटों पर तो कभी बनारस के बााजारों में. विजन कारपोरेशन लिमिटेड के बैनर तले इस फिल्म की शुरुआत और अंत दोनों ही बनारस में होता दिखता है। फिल्म में जाने-माने अभिनेता ओमपुरी अपने पूरे रंग में दिखते हैं. फिल्म में महत्वपूर्ण किरदार निभा रहे अभिनेता यशपाल शर्मा और अभिनेत्री रशमी घोष का अभिनय भी काबिले तारीफ है.
फिल्म में बीसवीं सदी का बनारस दिखता है. फिल्म की नायिका सुमन जिसका विवाह आर्थिक और सामाजिक मजबूरियों के चलते ऐसे घर में हो जाता है, जहां के हालात उसके मन की स्थितियों से परे है. फिल्म में नायिका का आत्मसंघर्ष ही अंतत: काम आता है। उसकी बेचैनी और तलाश उसे विधवा आश्रम में सेवा कार्य करने से लेकर अंतत: बच्चों को पढ़ाने तक के काम में ले जाती है. मूल रूप से फिल्म स्त्री मन के विभन्न रंगों से रूबरू कराती हुई उसके संघर्ष को बेहतरीन ढंग से चित्रित कर रही है.
जाने माने निर्देशक अजय मेहरा के कसावट भरे निर्देशन ने दृश्यों के तारतम्यता को बनाये रखा है. वहीं मशहूर संगीतकार खय्याम के बोलो में ढले फिल्म के गीत भी कर्णप्रिय है. फिल्म के प्रोडयूसर ए.के.मिश्रा हैं. प्रेमचंद ने अपने इस उपन्यास की रचना मूल रूप से उर्दू में ‘बाजार-ए-हुस्न’ के नाम से किया था. लेकिन इसका प्रकाशन कलकत्ता में सेवा-सदन के नाम से 1919 में हुआ, जब कि 1924 में इसका प्रकाशन लाहौर में हुआ. फिल्म के बारे में जानकारी देते हुए विजन कारपोरेशन लिमिटेड के निदेशक दिलीप दत्ता बताते है- हमारी कोशिश सिनेमा और साहित्य के बीच एक सेतु बनाने की है. जाने-माने हिन्दी-उर्दू कथाकार मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास बाजार-ए-हुस्न यानि सेवा सदन के जरिए हमने एक पहल की है, हम आगे भी ऐसी कोशिश जारी रखेंगे.
बनारस से भाष्कर गुहा नियोगी की रिपोर्ट. संपर्क– 09415354828