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सियासत

तो अब प्रियंका गांधी के सहारे राहुल मजबूत होंगे?

कांग्रेस अब बदलाव की तैयारी में है। अपने 131वें स्थापना दिवस से पहले कांग्रेस प्रियंका गांदी को पार्टी में पद पर लाकर राहुल गांधी को मजबूत करने की कोशिश कर सकती है। इससे पार्टी से युवा तो जुडेंगे ही, महिलाएं भी मजबूती से जुड़ेगी। जो, कि बीते दस साल में पार्टी से दूर होते गए हैं। मगर, ऐसा नहीं हुआ, तो फिर कांग्रेस की दशा और दिशा किधर जा रही होगी, यह सबसे बड़ा सवाल है। मतलब साफ है कि नियुक्ति करे तो भी और नहीं करे तो भी, कांग्रेस फिलहाल सवालों के घेरे में है। वैसे, राजनीति अपने आप में एक सवाल के अलावा और है ही क्या?

<p><span style="font-size: 12pt;">कांग्रेस अब बदलाव की तैयारी में है। अपने 131वें स्थापना दिवस से पहले कांग्रेस प्रियंका गांदी को पार्टी में पद पर लाकर राहुल गांधी को मजबूत करने की कोशिश कर सकती है। इससे पार्टी से युवा तो जुडेंगे ही, महिलाएं भी मजबूती से जुड़ेगी। जो, कि बीते दस साल में पार्टी से दूर होते गए हैं। मगर, ऐसा नहीं हुआ, तो फिर कांग्रेस की दशा और दिशा किधर जा रही होगी, यह सबसे बड़ा सवाल है। मतलब साफ है कि नियुक्ति करे तो भी और नहीं करे तो भी, कांग्रेस फिलहाल सवालों के घेरे में है। वैसे, राजनीति अपने आप में एक सवाल के अलावा और है ही क्या?</span></p>

कांग्रेस अब बदलाव की तैयारी में है। अपने 131वें स्थापना दिवस से पहले कांग्रेस प्रियंका गांदी को पार्टी में पद पर लाकर राहुल गांधी को मजबूत करने की कोशिश कर सकती है। इससे पार्टी से युवा तो जुडेंगे ही, महिलाएं भी मजबूती से जुड़ेगी। जो, कि बीते दस साल में पार्टी से दूर होते गए हैं। मगर, ऐसा नहीं हुआ, तो फिर कांग्रेस की दशा और दिशा किधर जा रही होगी, यह सबसे बड़ा सवाल है। मतलब साफ है कि नियुक्ति करे तो भी और नहीं करे तो भी, कांग्रेस फिलहाल सवालों के घेरे में है। वैसे, राजनीति अपने आप में एक सवाल के अलावा और है ही क्या?

निरंजन परिहार

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कांग्रेस के भीतर अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा और देश की राजनीति ने कोई बहुत बड़ी करवट नहीं ली, तो आनेवाले साल से पहले, मतलब 31 दिसंबर 2016 से पहले राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष और प्रियंका गांधी पार्टी की महासचिव होगी। सोनिया गांधी ने इसके लिए अपनी हामी दे दी है और अब सिर्फ वक्त का इंतजार है। नोटबंदी के बाद राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता की परख हो चुकी है और पार्टी के भीतर जो हालात हैं, उनको देखकर साफ लगने लगा है कि राहुल और प्रियंका के सामूहिक नेतृत्व में ही कांग्रेस को आसानी से आगे बढ़ाया जा सकता है। जो नेता कांग्रेस की नीतियां तय करते हैं, उनमें से एक वरिष्ठतम नेता की मानें, तो पार्टी ने इसकी मानसिक तैयारी कर ली है। बहुत संभव है कि सोमवार यानी 26 दिसंबर के बाद इस बारे में कभी भी अधिकारिक ऐलान किया जा सकता है। यह भी हो सकता है कि राहुल गांधी फिलहाल उपाध्यक्ष के रूप में ही अध्यक्ष के सारे अधिकारों का उपयोग करने के लिए अधिकृत कर दिए जाएं और सोनिया गांधी पार्टी की सर्वेसर्वा बनी रहे। 28 दिसंबर को कांग्रेस का स्थापना दिवस है और बहुत संभव है, उसी दिन कांग्रेस देश को यह नई खबर दे दे। 

दरअसल, कांग्रेस की कमान पूरी तरह राहुल और प्रियंका के हाथ सोंपने की मंशा के पीछे पार्टी की मान्यता यह है कि कांग्रेस को इससे बहुत बड़ा फायदा होगा। सबसे पहली बात तो, युवा मतदाता, जो कि पिछले एक दशक में पार्टी से दूर हो चुका है, वह कांग्रेस से फिर से जुड़ेगा। और इससे भी बड़ा फायदा होगा, प्रियंका गांधी के पार्टी में ताकतवर होने से। माना जा रहा है कि प्रियंका के पार्टी में पद पर आने से महिलाओं को जोड़ने का जो काम सोनिया गांधी अब तक नहीं कर सकीं, वह काम बहुत आसानी से हो सकता है। प्रियंका की युवा वर्ग में तो अपील है ही, महिलाएं भी बड़ी संख्या में उन्हें पसंद करती है, जो कि कांग्रेस से फिर से जुड़ेंगी। दरअसल, इंदिरा गांधी के बाद महिलाओं को अपने से जोड़ने के काम में कांग्रेस कभी बहुत सफल नहीं रही। लेकिन वह काम प्रियंका के जरिए आसानी से हो सकता है, क्योंकि देश की जनता उनमें इंदिरा गांधी की छवि देखती है। पार्टी का एक धड़ा नता है कि राहुल गांधी को अभी भी नेतृत्व की अपनी योग्यता को साबित करना बाकी है। मगर, प्रियंका गांधी के पार्टी में पद पर आने के बाद यह काम आसानी से हो सकता है, क्योंकि तब राहुल गांधी अकेले नहीं होंगे। इस पूरी प्रकिया में, जहां तक सोनिया गांधी का सवाल है, उन्हीं के मार्गदर्शन में राहुल और प्रियंका पार्टी को नई दिशा देंगे। 

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कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता की मानें, तो प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव नियुक्त किए जाने के बारे में फैसला लगभग हो चुका है। दिल्ली के 10 जनपथ की दीवारों के दायरों का हाल जाननेवाले एक वरिष्ठ नेता की राय में देश के वर्तमान राजनीतिक हालात में कांग्रेस की हालत देखकर खुद प्रियंका गांधी भी पार्टी में अपनी नई भूमिका के लिए मन बना चुकी है। वैसे, इससे पहले भी प्रियंका को कांग्रेस  संगठन में बड़ी जिम्मेदारी देने की पेशकश तीन बार की गईं थी। लेकिन हर बार वे इसे टालती रहीं। और, राजनीतिक रूप से सक्रिय रहने के लिए प्रियंका गांधी सोनिया गांधी के चुनाव क्षेत्र रायबरेली और राहुल गांधी की संसदीय सीट अमेठी तक ही खुद को सीमित रखे हुए रहीं। मगर, हाल ही में पंजाब और यूपी चुनाव में प्रचार के लिए प्रियंका के जिम्मेदारी लेने की हामी भरते ही कांग्रेस को लगा कि उन्हें पार्टी में पद पर आने का फिर से प्रस्ताव दिया जाना चाहिए। बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में प्रियंका को भी लगने लगा है कि उनको कोई तो फैसला घोषित करना ही पड़ेगा। इसीलिए उत्तरप्रदेश, पंजाब, गोवा और फिर गुजरात जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें कोई फसला लेना ही होगा। यह सही अवसर है और खबर है कि सोनिया गांधी ने खुद उन्हें मनाया है। 

राहुल गांधी की उपाध्यक्ष से पदोन्नति के बारे में अंदर की खबर यह है कि फिलहाल उन्हें पार्टी अध्यक्ष के तौर पर पदोन्नति देने के मामले में कांग्रेस में मतभेद है। पार्टी नेताओं का एक बड़ा धड़ा यह मानता है कि 131 साल पुरानी किसी पार्टी के सर्वेसर्वा के रूप में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्रिक राष्ट्र में जो नेतृत्व परिपक्वता किसी नेता में होनी चाहिए, वह राहुल गांधी में हैं तो सही, लेकिन अब तक उभर कर सामने नहीं आ पाई है। इसलिए फिलहाल अध्यक्ष पद तो सोनिया गांधी ही सम्हाले। लेकिन पार्टी में युवा वर्ग के नेता मानते हैं कि राहुल गांधी सफलतम अध्यक्ष साबित होंगे। उनके अध्यक्ष बनने से देश का युवा वर्ग पार्टी से जुड़ेगा। महिलाओं का मामला प्रियंका गांधी सम्हाल ही लेंगी। सो, सहारा भी मिल जाएगा।   

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आनेवाली 28 दिसंबर को कांग्रेस की स्थापना के 131 साल पूरे हो रहे हैं। देश भर में हर गां इकाई तक कांग्रेस का उत्सव मनेगा और पार्टी नए सिरे से नई ताकत के साथ देश भर में अपना बिगुल फूंकेगी। लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व की तस्वीर में अगर कुछ भी नहीं बदला, तो इस उत्सव का कोई असर नहीं होगा। इसीलिए तस्वीर में ये दो नए फोटो फिट करने के बारे में निर्णय हुआ माना जा रहा है। खबर है कि 28 दिसंबर से पहले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों की ही नियुक्तियों का ऐलान किया जा सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि 131 साल बाद कांग्रेस फिर से नई उर्जा से समाहित होकर मैदान में उतरेगी। हर पार्टी खुद को मजबूत करने और लंबे चलने के लिए जो कोशिशें करती है, वहीं कांग्रेस भी कर रही है। तस्वीर साफ है कि प्रियंका को साथ लाकर राहुल को मजबूत करने की यह कोशिश है। लेकिन यह भी तय है कि ऐसा हुआ, तो कांग्रेस और कांग्रेसियों पर एक बार फिर वंशवाद को नमन करने के आरोप भी लगेंगे, जिनका किसी भी स्तर पर जवाब देना किसी के लिए भी कोई आसान खेल नहीं होगा ! और अगर बिना नियुक्ति हुए कांग्रेस में सब कुछ वैसा ही चलता रहा, जैसा कि फिलहाल चल रहा है, तो पार्टी का विकास कैसे होगा, युवा कैसे जुड़ेंगे, महिलाएं कैसे कांग्रेस के नजदीक आएंगी और संगठन की तस्वीर कैसे बदलेगी, ये सबसे बड़े सवाल हैं !

निरंजन परिहार
राजनीतिक विश्लेषक
[email protected]
09821226894

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