आदरणीय संपादक, भड़ास4मीडिया
विषय- पब्लिक ऐप के अत्याचार के संबंध में
पब्लिक ऐप में शुरुआत से काम कर रहा हूं। ₹50 प्रति खबर का भुगतान देने की बात कहकर जॉइनिंग कराई गई थी। फिर ₹50 खबर न देकर व्यू के आधार पर ₹25 से ₹55 का पेमेंट देना शुरू किया गया। फिर भी सब कुछ सही चलता रहा। चूंकि 3 से 5 खबरें प्रतिदिन लगाकर औसतन 6 से 7 हज़ार रुपए प्रति माह कमा कर जीवन यापन करता रहा।
फिर अचानक विज्ञापन आ गया और सब कुछ डांवाडोल हो गया। विज्ञापन ने मनोरोगी बना दिया। विज्ञापन को लेकर दिन रात प्रताड़ित किया जाता है। विज्ञापन का टारगेट पूरा न कर पाने से हमारी दैनिक खबरों का टारगेट घटा कर एक कर दिया गया है जिसका औसत भुगतान ₹40 मिलता है, महीने का ₹1200 रुपये मात्र। एक खबर का भुगतान मिलता है, अन्य खबरों का भुगतान नहीं मिलता है। एक खबर पर विज्ञापन का मासिक टारगेट ₹3000 था।
खबर का टारगेट एक रखा और अब विज्ञापन का मासिक टारगेट ₹50000 (पचास हजार रुपए महीना) कर दिया गया है जिसका स्क्रीन शॉट भेज रहा हूं।
कंपनी के मार्केटिंग व अन्य ग्रुपों में लगातार धमकी भरे मैसेज आते रहते हैं जिससे मानसिक रूप से बीमार हो गया हूं। अन्य जिलों में विज्ञापन न देने, समय से उपस्थिति न दर्ज करने, खबरें समय से न भेजने आदि मामलों को लेकर किए गए जुर्माने के मेसेज हमारे जिले के ग्रुप में शेयर किए जाते हैं, जिससे लगातार मानसिक प्रताड़ना का सामना कर रहा हूं। 3 वर्षों से अधिक समय से पब्लिक ऐप में काम कर रहा हूं। ऐप पर खबरों से होने वाली आय लगभग खत्म होने से आर्थिक संकट आ गया है।
पत्रकारिता का यह प्रारुप पहली बार देख रहा हूं
पब्लिक ऐप के वरिष्ठ कर्मचारियों द्वारा ब्यूटी पार्लर, हेयर सैलून, आटोमोबाइल एजेंसी, विद्यालय, अधिकारी, नेता, रेडीमेड गारमेण्टस, त्योहारों पर मंदिरों के पुजारियों आदि से विज्ञापन लाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। लगभग 14 वर्ष में कई मीडिया संस्थानों में काम किया पर ऐसा कभी नहीं देखा।
मैं पब्लिक ऐप के खिलाफ आवाज भी नहीं उठा सकता हूं क्योंकि पत्रकारिता के लिए जीते हुए आय का कोई अन्य जरिया नहीं बना पाया। इस आस में हूं कि विज्ञापन रूपी शनि पब्लिक ऐप के रिपोर्टर की कुंडली से जल्द हट जाएगा। खबरें भेज रहे हैं पूर्ण मनोयोग से।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.