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राजस्थान में भाजपा को ‘लाल डायरी’ और नये ‘संवैधानिक प्रचारक’ ईडी के आरोपों का सहारा

संजय कुमार सिंह

राजस्थान में चुनाव है। भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार कर रहे हैं लेकिन रैलियों में उनके भाषण की खबर पहले पन्ने पर अक्सर सिंगल कॉलम में ही छप पा रही है। आज नवभारत टाइम्स में डबल कॉलम की खबर है, पीएम बोले लाल डायरी खुलने से हवाइयां उड़ीं। ऐसी ही खबर 23 जुलाई को भी थी। तब अमर उजाला ने लिखा था, इस बार का राजस्थान विधानसभा चुनाव इस लाल डायरी के इर्द-गिर्द ही घूमने वाला है। भाजपा नेताओं के आरोपों के जवाब में तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, ‘पीएम को लाल डायरी की बजाय लाल टमाटर और लाल सिलेंडर पर बात करनी चाहिए। लाल डायरी जैसा कुछ भी नहीं है। आने वाले समय में उनको लाल डायरी दिखा दी जाएगी।’

इसकी शुरुआत राजस्थान सरकार के उस समय के मंत्री राजेंद्र गुढ़ा के आरोपों से हुई थी। बाद में अशोक गहलोत ने गुढ़ा को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया। मंत्री पद से हटाए जाने के बाद गुढ़ा ने मीडिया से कहा कि मुझे सच बोलने की सजा मिली है। गुढ़ा ने स्पीकर के सामने एक लाल डायरी लहराई थी और कहा था कि इसमें कांग्रेस के नेताओं के काले कारनामे की पूरी जानकारी है। तब स्पीकर सीपी जोशी ने मार्शलों को बुलाकर उन्हें बाहर करवा दिया।

अमर उजाला की इस खबर के अनुसार, राजनीति में राजेंद्र सिंह गुढ़ा का उदय 2008 में हुआ था। बसपा के टिकट पर कांग्रेस के विजेंद्र सिंह और भाजपा के मदनलाल सैनी के खिलाफ चुनाव लड़कर करीब 8 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। चुनाव जीतने के बाद गुढ़ा ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। इसके बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने गुढ़ा को उनकी सीट उदयपुरवाटी से चुनावी मैदान में उतार दिया, लेकिन उस वक्त गुढ़ा चुनाव हार गये। इस कारण 2018 में कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया। इसके बाद गुढ़ा ने फिर बसपा का दामन थाम लिया। बसपा ने इस बार गुढ़ा को उदयपुरवाटी सीट से टिकट दिया। इस बार इनका मुकाबला भाजपा के उम्मीदवार शुभकरण चौधरी और कांग्रेस के भगवान राम सैनी से था। इस त्रिकोणीय चुनाव में गुढ़ा ने जीत हासिल की।

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जीतने के बाद मंत्री पद के लिए गुढ़ा फिर बसपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गये। गहलोत सरकार ने राज्यमंत्री बना दिया। लेकिन गहलोत-पायलट विवाद में उन्होंने जमकर पायलट गुट का साथ दिया। जिसके कारण वो गहलोत के विरोधी बनते चले गए। और मंत्री पद से बर्खास्त हुए। उन्हीं के आरोपों की लाल डायरी का जिक्र प्रधानमंत्री अब भी कर रहे हैं। राजेंद्र सिंह गुढ़ा इस बार चुनाव लड़ रहे हैं कि नहीं और लड़ रहे हैं तो किस पार्टी से या नहीं लड़ रहे हैं तो किसका समर्थन कर रहे हैं यह सब मुझे उनका नाम गूगल करने पर पता नहीं चला। इससे लगता है कि राजस्थान की राजनीति में अब उनका बहुत महत्व नहीं है। हालांकि मैं गलत हो सकता हूं। नौ सितंबर 2023 की एक खबर के साथ उन्होंने शिव सेना ज्वाइन कर ली है।     

इसके अलावा, प्रधानमंत्री ने जो आरोप लगाये हैं और जो खबरें छपी हैं उनमें कुछ खास नहीं है। उनका जिक्र मैं यहां करता रहा हूं। ऐसे में प्रचारकों की पार्टी के पास अपना प्रचार करने के लिए कुछ है नहीं तो हेडलाइन मैनेजमेंट चल रहा है। इसके तहत आज टनल में फंसे मजदूरों की खबर है। अमर उजाला की खबर का शीर्षक है, कामयाबी चंद कदम दूर, बड़ी बाधा न आई तो कल निकल सकते हैं मजदूर। इसके अलावा तथ्य यही है कि 10 दिन से फंसे मजदूरों को निकालने की दिशा में अभी तक कुछ ठोस नहीं हुआ है। इतना समय निकल जाने के बाद ऊपर से सुराख बनाकर निकालने के उपाय करने में काफी देर हो चुकी है और दुनिया भर में बदनामी होने के बाद सरकार को चिन्ता राजस्थान चुनाव में वोट की है तो कल फोटो जारी कर बदनामी से बचने की कोशिश की गई है। मीडिया ने भी उसे प्रमुखता से छापा है। यही नहीं, ईडी ने नेशनल हेरल्ड की संपत्ति जब्त की तो कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करने वाली इस खबर को कई अखबारों ने भरपूर प्राथमिकता दी है।

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राजस्थान चुनाव के बारे में यह जानी हुई बात है कि कांग्रेस की सरकार ने अच्छा काम किया है और भाजपा के पास चुनाव जीतने के लिए कुछ है नहीं। तो ई़डी के जरिये कांग्रेस को बदनाम करने की अंतिम कोशिश की जा रह है और यही छत्तीसगढ़ में महादेव ऐप्प के सहारे हुआ था। मामला टाइमिंग और अखबारों में झूठ या आरोप या अपुष्ट खबर फैला दिये जाने का है। छत्तीसगढ़ चुनाव से पहले भी ऐसा ही हुआ था। 2014 के चुनाव से पहले के दावों को या करें तो साफ है कि यही रणनीति है। सारा मामला आरोपों के प्रचार और संबंधित खबरों का था। आज भी टाइम्स ऑफ इंडिया में खबर है, प्रधानमंत्री ने कहा, गहलौत सरकार ने प्रतिबंधित पीएफआई की रैली कोटा में होने दी। कहने की जरूरत नहीं है कि केंद्र सरकार ने अगर पीएफआई पर प्रतिबंध लगाया है और राजस्थान सरकार उससे सहमत नहीं है, उसे इसकी जरूरत नहीं लगती है तो वह उसके लोकतांत्रिक अधिकारों के तहत रैली होने देगी। यह भाजपा नेताओं द्वारा तमाम बलात्कारियों अपराधियों का साथ लेने जैसा गलत नहीं है, राजधर्म निभाना है। लोकतंत्र को बने रहने देना है।  

वैसे भी, केंद्र सरकार ने जिस हलाल प्रमाणीकरण को प्रतिबंधित नहीं किया है या जिसे अनुमति दे रखी है उसे उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया है। तो राज्य सरकारें केंद्र से अलग काम कर सकती हैं पर चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने ऐसा किया है, उसपर केंद्र सरकार ने राजधर्म नहीं निभाया है और अगर इसकी चर्चा हो या इसे प्रचार मिले तो भाजपा का उद्देश्य पूरा होगा कि वह मुसलमानों के खिलाफ है। यह राजनीति का स्तर है या इस समय इस तरह से चुनाव प्रचार चल रहा है और इसमें राजस्थान में पूर्व में हुए एक दर्जी की हत्या के मामले को राजनीतिक रंग देना, उसका चुनावी लाभ उठाने की कोशिश सब कुछ किसी से छिपा नहीं है।   द टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर आज एक खबर छापी है, राजस्थान चुनाव की मांग : हिन्दुओं की सरकार हो। यह खबर भिन्न चुनाव क्षेत्रों में मतदाताओं सेबात करके लिखी गई है।   

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दिलचस्प यह है कि पार्टी चुनाव जीतने के लिए यह सब कर रही है तो यह उसकी राजनीति या रणनीति हो सकती है। मीडिया क्यों साथ दे रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने भाजपा की खबर के साथ कांग्रेस की खबर उतने ही बड़े शीर्षक से छाप कर संतुलन बनाने की कोशिश की है। लेकिन मुझे लगता है कि कल राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को पनौती कहा। यह प्रधानमंत्री के बारे में है इसलिए तो महत्वपूर्ण है ही, राहुल गांधी ने कहा है, जो अभी तक ऐसा नहीं कहते थे, इसलिये भी महत्वपूर्ण है। इसकी आलोचना हो रही है सो अलग। लेकिन मेरा मानना है कि यह बराबरी में आना है और सही हो या गलत, संतुलन बनाना ही था तो इसे साथ रखा जाना चाहिये था।

कहने की जरूरत नहीं है कि राहुल गांधी के ऐसा कहने का समर्थन और विरोध दोनों हो रहा है। इसे प्रचारित किया जायेगा तो कांग्रेस के साथ भाजपा को भी फायदा मिलेगा। इसलिए इसे प्रकाशित प्रचारित किया जाना चाहिये था। शायद इसीलिए यह इंडियन एक्सप्रेस और अमर उजाला में पहले पन्ने पर है लेकिन चूंकि प्रधानमंत्री के खिलाफ है और सामान्य निर्देश प्रधानमंत्री के खिलाफ खबरें नहीं छापने का है (या होगा) इसलिए वह खबर नहीं छपी। चाहे कितनी की अनूठी, नई या राहुल गांधी का नुकसान करने वाली हो। निर्देश देकर काम करवाने का यह नुकसान है हालांकि अभी यह मुद्दा नहीं है। अमर उजाला में शीर्षक है, पीएम पर राहुल के बिगड़े बोल, भाजपा ने कहा – माफी मांगें।  

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प्रधानमंत्री जब कांग्रेस के खिलाफ हवा-हवाई आरोप लगा रहे हैं और ऐसी खबरें प्रमुखता नहीं पा रही हैं तो कल दो काम हुए जो आज अखबारों में पहले पन्ने पर छाये हुए हैं। कांग्रेस का चुनाव प्रचार अखबारों के पहले पन्ने पर जगह नहीं पा रहा है सो अलग। यही नहीं, दिल्ली में  प्रदूषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की खबर भी दब गई है। अंग्रेजी के मेरे ज्यादातर अखबारों में आज टनल में फंसे मजदूरों की खबर लीड या उसके बराबर में है जबकि नवोदय टाइम्स और अमर उजाला में प्रदूषण और रैपिड रेल से संबंधित सुप्रीम कोर्ट से संबंधित खबर लीड है। यही नहीं, हिन्दुस्तान और नवभारत टाइम्स में भी प्रदूषण और रैपिड रेल से संबंधित खबरें लीड हैं।

राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को पनौती कहा यह इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर है। इसका शीर्षक है,  राहुल ने प्रधानमंत्री को विश्व कप की हार से जोड़ा, उन्हें पनौती कहा, भाजपा ने इसे अपमानजनक और उन्हें कुंठित कहा है। कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधानमंत्री कांग्रेस और उसके नेताओं के लिए इससे ज्यादा अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर चुके हैं। बदले में सुने भी हैं और प्रियंका गांधी कह चुकी हैं कि उन्होंने नेहरू गांधी परिवार को जो गालियां दी हैं उनपर तो किताब लिखी जा सकती है। ऐसे में भाजपा अगर राहुल गांधी को कुंठित (फ्रसट्रेटेड) कह रही है तो यह संभव है और ऐसा यूं ही नहीं है। उसके लिए भाजपा, उसकी ट्रोल सेना और खुद प्रधानमंत्री भी जिम्मेदार ठहराये जा सकते हैं। यह अलग बात है कि ‘फ्रसट्रेटेड’ राहुल गांधी ने यह भी कहा है, नरेन्द्र मोदी का काम आपका ध्यान बांटना है। और अदाणी का काम आपकी जेब काटना है। यह  टेलीग्राफ का आज का कोट है। पर ूसरे अखबारों में नहीं दिखा। 

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ऐसे माहौल में आज मैं दैनिक जागरण भी खरीद लाया। यहां ईडी द्वारा नेशनल हेरल्ड क संपत्ति जब्त किये जाने की खबर सोनिया गांधी और राहुल गांधी की फोटो के साथ लीड है। दिल्ली में प्रदूषण या पराली जलाने से संबंधित मामले में  सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी टॉप पर है। इसके अनुसार पराली जलाने वाले को न मिले एमएसपी। मुझे इस फैसले या सुझाव पर कुछ नहीं कहना है लेकिन इसका मतलब तो तभी होगा जब बाकी किसानों को एमएसपी मिले। पर भारत में तो वह भी टेढ़ी खीर है और उससे संबंधित खबरें कहां छपती हैं। दैनिक जागरण में टनल में फंसे मजदूरों की खबर फोटो के साथ नीचे है। नवभारत टाइम्स में टनल में फंसे मजदूरों की तस्वीर पहली बार दिखी टॉप की खबर है, हेरल्ड मामला उसके बराबर में और लीड नीचे है। शीर्षक इस प्रकार है, पराली के मु्द्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किसानों को विलेन बनाया जा रहा है। क्या आपको नहीं लगता है कि अखबारों में कांग्रेस का विरोध और भाजपा का समर्थन खुलेआम चल रहा है और यह सरकार जो कर रही है उससे अलग है।  

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