पहले लग रहा था, मजदूर आज निकले अब निकले
संजय कुमार सिंह
राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए मतदान कल पूरा हो गया। मतदान के दौरान प्रधानमंत्री ने लड़ाकू विमान तेजस से यात्रा की। अमर उजाला की खबर के अनुसार, तेजस …. आत्मनिर्भर भारत की क्षमताओं का अटूट विश्वास है। इसके साथ की कुछ दूसरी खबरों के शीर्षक हैं, पीएम मोदी ने लड़ाकू विमान में भरी उड़ान बोले – अद्भुत अनुभव। इन दो शीर्षक वाले लीड का उपशीर्षक है, पायलट की वर्दी में प्रधानमंत्री बोले – दुनिया में किसी से कम नहीं हम। सिंगल कॉलम की एक खबर का शीर्षक है, 37,468 करोड़ रुपये का आदेश मिला 87 तेजस के लिए। यह ऑर्डर भारत सरकार का ही है और इसलिए मुझे नहीं लगता कि यह बहुत बड़ी खबर है। इसलिए हो कि राफेल के साथ निजी क्षेत्र में जो विमान कारखाना लगना था उसकी चर्चा काफी समय से नहीं है तो अलग बात है। अभी वह मुद्दा नहीं है। 87 तेजस विमान के लिए ऑर्डर की खबर के नीचे अमर उजाला में एक और खबर है, सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस …. लोगों ने कहा – सफलता पचा नहीं पा रही है। इस खबर के अनुसार सफलता है, पीएम मोदी फाइटर जेट पर उड़ान भरने वाले पहले पीएम बन गये हैं।
आज के अखबारों से लग रहा है कि मतदान खत्म होते ही सुंरग में फंसे मजदूरों का मामला ठंडा पड़ गया। मतदान दिन त यह प्रचारित किया गया कि मजदूर कभी भी निकल सकते हैं। ऐसा लगने लगा था कि मतदान के दिन तो जरूर निकल जायेंगे और कहीं ऐसा न हो कि इधर मतदान हो रहा हो और उधर टीवी पर प्रचारक दिखायें कि मजदूर कैसे सुरक्षित निकल रहे हैं और इसे सारे दिन चलाया जा सकता था। पर ऐसा नहीं हो पाया। इसे संयोग मानिये या दुर्भाग्य, आज कई अखबारों में लीड है। ऑगर मशीन टूटी … ब्लेड पाइप में फंसे, श्रमिकों का इंतजार और बढ़ा। उपशीर्षक है, उत्तरकाशी : वर्टिकल ड्रिलिंग व मैनुअली खोदाई की तैयारी में जुटे विशेषज्ञ। इसके साथ की एक खबर का शीर्षक है, सुरंग के मुहाने पर रिसने लगा पानी, नई मुसीबत (अमर उजाला)। अब आप समझ सकते हैं कि मतदान से पहले छप रही खबरों से लग रहा था कि मजदूर अब निकले और आज निकले। कल मतदान होते ही आज के अखबार कह रहे हैं कि अभी समय लगेगा कितना यह तय नहीं है।
आइये, आज के अखबारों के शीर्षक देख लें। आज यह बर खबर पहले पन्ने पर या उससे पहले के अधपन्ने पर है।
1. हिन्दुस्तान टाइम्स
टनल बचावर्मी दो वैकल्पिक योजनाओं पर विचार कर रहे हैं।
2. टाइम्स ऑफ इंडिया
ऑगर के ब्लेड मलबे में फंसने से टनल बचाव अभियान को झटका
3. इंडियन ए्क्सप्रेस
टनल बचाव को झटका ड्रिल टूटी , अभियान रुका
4. द टेलीग्राफ
‘युद्ध जैसी’ स्थिति वैकल्पिक योजना नहीं
फ्लैग शीर्षक है, मशीन की खराबी ने अभियान को फिर रोक दिया
टेलीग्राफ में नई दिल्ली डेटलाइन से जीएस मुदुर की खबर इस प्रकार है, उत्तरकाशी सुरंग बचाव प्रयास को एक अधिकारी ने “युद्ध जैसी” स्थिति के रूप में वर्णित किया है। शनिवार को इस कोशिश के 14 दिन पूरे हो गये और अभी तक किसी भी बैकअप उपाय के तहत कोई ड्रिलिंग शुरू नहीं की गई है और फंसे हुए 41 मजदूरों को मुक्त करने की समय सीमा तय नहीं है। सुरंग के 57 मीटर ढहे हिस्से के माध्यम से बनाए गए क्षैतिज चैनल से श्रमिकों तक पहुंचने के ड्रिलिंग प्रयास 49 मीटर पर रुके हुए हैं। अधिकारियों ने कहा कि बैकअप के लिए पहाड़ी के ऊपर से नीचे की ओर 86 मीटर के ऊर्ध्वाधर चैनल की ड्रिलिंग अभी शुरू होनी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की एजेंसी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य सैयद अता हसनैन ने कहा, “ऑपरेशन तकनीकी रूप से अधिक जटिल होता जा रहा है… हमने बचाव प्रयास के लिए कभी कोई समय सीमा नहीं दी है। हम अप्रत्याशित माहौल में काम कर रहे हैं। युद्ध जैसी स्थिति में हैं। युद्ध जैसी स्थिति में हम यह नहीं पूछते कि ऑपरेशन कब ख़त्म होगा।”
एक खबर तो क्रिसमस तक यानी महीने भर की भी है। मैं नहीं कहता कि अखबार वाले जानबूझ कर पहले अलग तरह की खबर छाप रहे थे और अब मतदान होते ही स्थिति बदल गई। वे वही छाप रहे हैं जो उन्हें बताया जा रहा है। समस्या सिर्फ यह है कि वे सवाल नहीं करते और उनके दिमाग में भी सवाल नहीं हैं। जो खबरें छप रही हैं उन्हीं के भरोसे मैंने लिखा था कि एक तरफ मतदान चल रहा होगा और दूसरी तरफ टीवी पर मजदूरों के सुरक्षित निकलने की खबर आ रही होगी। इसी में मैंने लिखा था कि अगर मतदान के दिन भी नहीं निकले जो समझिये वाकई मुश्किल में हैं। आज की खबरों से उनका मुश्किल में होना साफ है। स्थिति यह है कि खोदे जा चुके सुरंग में छत धंसने या मलबा गिरने से 66 मीटर जगस वापस भर गई थी। उसे पूरी तरह निकालने का काम 14 दिन में नहीं हुआ। रास्ता बनाने का काम भी पूरी नहीं हो पाया। मशीन कई बार टूटी, टूटती रही 10 दिन बाद खबर छपी कि फासला 10-14 मीटर रह गया और स्थिति यह आई कि मशीन फिर टूट गई और अब तय हुआ है कि दूसरे उपाय किये जाएंगे।
पहले चार प्लान फेल हो चुके हैं बाद में पीएमओ की सलाह पर पांच प्लान एक साथ चलने की खबर थी और यह भी कहा गया था कि सब एक साथ चल रहे हैं जो पहले कामयाब रहे। अब उनकी चर्चा नहीं है। बताने वाले बतायेंगे नहीं, अखबार वाले पूछेंगे नहीं और प्रधानमंत्री की हवाई यात्रा ने मामले को तेजस की ओर मोड़ दिया। अखबार यह भी बता रहे हैं कि लोग प्रधानमंत्री की इस सफलता को पचा नहीं पा रहे हैं। इसपर यह बताना जरूरी लग रहा है कि जब मैं जनसत्ता में था तो एक साल वायुसेना के स्थापना दिवस कार्यक्रम में करीब हफ्ते भर उत्तर पूर्व में रहा था। वायु सेना की योग्यता क्षमता का प्रदर्शन हुआ और हमें उसकी रिपोर्ट करनी थी। हमलोग हवाई पट्टी पर रहते थे और विमान हवा में तरह-तरह के करतब दिखाते थे, जो आम एयर शो से अलग विशेष था। उसी समय एक अधिकारी ने पूछा कि कुछ खास देखना चाहते हैं तो बताइये। तब मैंने सोचा था कि विमान में होउंगा तभी तो पता चलेगा कि क्या कैसे होता है और बाहर जो हो रहा होता है वह अंदर कैसा लगता है आदि आदि।
इस तरह मैंने तब कहा था कि मुझे विमान में बैठकर देखना है और तब वही जवाब मिला था जिसकी उम्मीद थी। उसके बाद तो मैंने कॉकपिट में यात्रा की, को पायलट की सीट पर बैठ कर की और क्या नहीं किया। इतना सब कर चुका हूं कि इस उम्र में वायु सेना के विमान से संबंधित कोई इच्छा बाकी नहीं है। और खबर के रूप में यह पढ़ना पड़ रहा है कि कांग्रेस के लोग प्रधानमंत्री की सफलता पचा नहीं पा रहे हैं। मुझे लगता है खबर लिखने वाले को प्रधानमंत्री की सफलता का मतलब ही नहीं पता है। पर वह अलग मामला है क्योंकि टाइम्स ऑफ इंडिया ने पहले पन्ने फोटो के साथ लिखा है, लड़ाकू विमान में लड़ने वाले पहले प्रधानमंत्री। यहां मुद्दा यह भी है कि रक्षा मंत्री ने यह सफलता हासिल करने की कोशिश की या नहीं? नहीं तो क्यों और की तो क्या हुआ? दूसरे, अगर मुझे खबर लिखने के लिए लड़ाकू विमान में यात्रा नहीं करने दिया गया तो प्रधानमंत्री को फोटो खिंचाने के लिए करने दिया जाना ठीक है? और हो भी तो क्या जरूरत थी?
कुल मिलाकर, आज की खबरों में सरकार और संघ परिवार का हेडलाइन मैनेजमेंट साफ दिख रहा है। सुरंग में फंसे 41 मजदूरों की चिन्ता अखबार वालों को अपनी जानकारी के लिए भी नहीं है। और उनके मन में यह सवाल नहीं है कि बाकी के उपायों का क्या हुआ। जो मशीन बार-बार टूट रही थी उससे कामयाबी नहीं मिलेगी यह पूर्वानुमान क्यों नहीं था। ऐसी स्थिति में एक साथ सभी उपायों पर काम किये जाने के सामान्य सिद्धांत का क्या हुआ और अखबारों की खबरों से उन सवालों का भी जवाब नहीं मिलता है जो एक पाठक के रूप में मैं जानना चाहता हूं। रिपोर्ट करने वाले जानना-बताना भी नहीं चाहते और रक्षा मंत्रालय ने एचएएल को विमान का ऑर्डर दिया इसे सबसे बड़ी खबर मानते हैं तो पत्रकारिता का कितना विकास हुआ है यह भी समझने वाली बात है। इसका पता नवोदय टाइम्स में छपी इस फोटो से भी चलता है।
सोशल मीडिया पर यह तस्वीर डीप फेक के जमाने में घूम रही थी। सरकार और खासकर प्रधानमंत्री डीप फेक पर चिन्ता जता चुके हैं। पर अभी तक कोई फौरी उपाय जानकारी में नहीं है जिससे तय हो कि फोटो असली है या फर्जी। आप जानते हैं कि फर्जी खबरों की जांच भी फर्जी होती है और पीआईबी भी फर्जी खबरों की जांच करता है लेकिन सरकारी फोटो के बारे में यह नियम नहीं बना है कि इस आईडी या इस हैंडल से ही जारी फोटो को असली माना जाये। पर वह अलग मुद्दा है। हुआ यह कि सोशल मीडिया पर छाई यह तस्वीर मुझे फर्जी लग रही है। नवोदय टाइम्स ने भी यह नहीं बताया है कि फोटो फर्जी है या असली। अखबार ने छापा है तो यह असली ही होगा पर सवाल यह है कि क्या फाइटर विमान का पायलट (या यात्री) बादलों से ऊपर कॉकपिट खोलकर विमान उड़ाता है। जहां तक तकनीक की बात है कॉक पिट को विमान के हवा में रहते खोलने पर भी नहीं खुलना चाहिये और यह वैसे ही है कि सीटबेल्ट नहीं लगाने पर टूं-टूं की आवाज आती है। आमतौर पर ऐसा नहीं किया जाता है और फोटो खिंचाने के लिए किया गया तो बताया जाना चाहिये कि इससे कौन सी देश सेवा हुई जो प्रधानमंत्री राजस्थान चुनाव के लिए मतदान के दौरान कर रहे थे। किसे क्या सीख दे रहे थे या क्या अनुकरणीय है। क्या यह ध्यान बांटने के लिए नहीं है। जो राहुल गांधी कहते हैं। और कांग्रेस के परेशान होने की खबर इसीलिए नहीं है?
अखबार ने लिखा है कि हवा में प्रधानमंत्री फोटोग्राफर का अभिनंदन कर रहे हैं। यह तो कोई भी कह-समझ सकता है। लेकिन सोशल मीडिया पर कटाक्ष के रूप में जो चिन्ता चल रही है उसका जवाब या निदान तो बिल्कुल नहीं है। हवा में प्रधानमंत्री को फोटोग्राफर मिला यह अगर संयोग था तो फोटोग्राफर कौन था? वह किस अभियान पर था और हवा में प्रधानमंत्री के इतने करीब कैसे आ गया। अगर फोटो खींचने के लिए ही था तो कौन सी खबर है और क्या बताया जा रहा है तथा अखबार में इतनी प्रमुखता क्यों? प्रधानमंत्री की फोटो है इसलिए प्रमुखता तो दी ही जा सकती है। वह मुद्दा नहीं है। पर सवाल है कि सोशल मीडिया पर जो सवाल थे उनका जवाब नहीं मिला तो पाठक को क्या फायदा हुआ? यह सब इसलिए कि विमान का नाम तेजस है और इसी नाम से कंगना रनौत की फिल्म आई है। 09 नवंबर की एबीपीलाइव की एक खबर का शीर्षक है, बॉक्स ऑफिस पर ‘सुपर फ्लॉप’ हुई कंगना रनौत की तेजस।
जब खबरों को ऐसे दिशा दी जाएगी या आदेश माना जायेगा तो राजस्थान में मतदान कितना हुआ और कैसा रहा यह पहले पन्ने की खबर कहां रह जाएगी? वैसे भी, पहले पन्ने पर विज्ञापन की सीमा तो है नहीं। खबर की जगह विज्ञापन को महत्व दिया जाए तो क्या बुराई है। ठीक है कि लोकतंत्र ने चाय वाले को प्रधानमंत्री बना दिया पर चाय वाले ने देश राजनीति ही नहीं पत्रकारिता को भी बदल दिया है और पत्रकार अब वाचडॉग भूमिका में कम प्रचारक की भूमिका में ज्यादा नजर आते हैं और सरकार ऐसी है कि एक वाचडॉग जमानत मिलने पर भी जेल से रिहा नहीं हो पाता है और दूसरा छह दिन में सुप्रीम कोर्ट से जमानत पा जाता है।