एक प्राइवेट कंपनी एक नया प्रोजेक्ट शुरू करती है. पूरे देश में इंटरनेट और मोबाइल सर्विस के सस्ते प्लान लाती है, अरबों का निवेश करती है. उसके अपने कंपटीटर हैं. ‘जियो’ मुकेश अंबानी अब टेलीसर्विस किंग बनना चाहते हैं. ‘कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी’ (CSR) के तहत बातें छौंकी जाती हैं, लेकिन हर कंपनी का एक ही मकसद है, मैक्सिमम मुनाफा पीटना. फिर बाजार के इस खेल में प्रधानमंत्री किस तरह फिट होते हैं? अपने मुनाफे के लिए कोई उनकी तस्वीर का इस्तेमाल कैसे कर सकता है?
क्या भारत की निर्वाचित सरकार और रिलायंस नाम की एक कंपनी, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं? वैसे सरकार एक बिल ला रही है, जिसके मुताबिक अगर सेलिब्रिटी अपने विज्ञापनों में झूठे दावे करेंगे तो वे भी कानूनी कार्रवाई के पात्र होंगे. रिलायंस का जियो अपने दावे पर खरा नहीं उतरा तो क्या केंद्र सरकार अपने प्रधानमंत्री के खिलाफ केस करेगी?
कुछ लोग इसे ‘डिजिटल इंडिया’ के हवाले से जायज ठहराना चाहेंगे. लेकिन फिर एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया जैसी कंपनियों ने किसकी भैंस खोल ली है? उनके भावी 4जी प्लान ‘डिजिटल भारत’ के सपने के उलट हैं क्या? फिर मोदी खुलकर विज्ञापन बाजार में आ जाएं और हर तरह की कंपनियों का विज्ञापन करें. बल्कि महंगाई का जमाना है, हर कंपनी के प्रचार के लिए उनसे एक निश्चित मेहनताना लें. फिल्मी सितारों की तरह. कल को मैं जांघिया का धंधा शुरू करूं और इसे देश की किसी स्वास्थ्य योजना से जोड़कर पेश करूं तो क्या मुझे मोदी की तस्वीर से प्रचार करने की इजाजत होगी?
Pushp Sharma
(Senior Journalist)