दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी आप पार्टी, दोनों ही रोज़-रोज़ कीचड़ में धंसते चले जा रहे हैं। अब उनके एक मंत्री रहे साथी, कपिल मिश्रा ने ही उन पर दो करोड़ रु. की रिश्वत लेने का आरोप लगा दिया है। यह आरोप अपने आप में विचित्र है। एक अन्य मंत्री, सत्येंद्र जैन, अपने मुख्यमंत्री को रिश्वत क्यों देगा? जैन पर आरोप लगाया गया है कि उसने मुख्यमंत्री के रिश्तेदार का 50 करोड़ का मामला हल करवाया है। इस बात से अंदाज़ लगाया जा सकता है कि रिश्वत का जो पैसा अरविंद के रिश्तेदार ने जैन को दिया होगा, उसका एक हिस्सा जैन ने अरविंद को दे दिया।
यदि यह मिश्रा की आंखों के सामने ही हुआ तो मिश्रा ने तत्काल ही भांडाफोड़ क्यों नहीं किया? मंत्री पद से हटते ही उन्होंने मुंह खोला, इससे उनकी बात पर भरोसा कम होता है। इसके अलावा राजनीति में करोड़ों का लेन-देन तो रोजमर्रा की बात है। कौन प्रधानमंत्री और कौन मुख्यमंत्री ऐसा है, जो सीना ठोक कर कहे सके कि वह अपने मंत्रियों से नियमित ‘चौथ’ वसूल नहीं करता है? यदि आपको रिश्वत नहीं खाना है, यदि आपको सत्यवादी हरिश्चंद्र बने रहना है, यदि आपको पारदर्शी जीवन जीना है तो आप राजनीति में जाते ही क्यों हैं?
भर्तृहरि ने हजार साल पहले जो कहा था, वह आज भी सच है कि राजनीति एक वेश्या की तरह है, जिसके अनेक रुप होते हैं। वह एक साथ सच और झूठ, मधुर और कठोर बोलती है। वहां नित्य धन बरसता है और वह नित्य पानी की तरह बहता है। इस काजल की कोठरी में से आज तक कोई बेदाग निकला हो तो उसका नाम बताइए। भर्तृहरि ने हजार साल पहले जो कहा था, वह आज भी सच है कि राजनीति एक वेश्या की तरह है, जिसके अनेक रुप होते हैं। वह एक साथ सच और झूठ, मधुर और कठोर बोलती है। वहां नित्य धन बरसता है और वह नित्य पानी की तरह बहता है।
भला, दो करोड़ रु. क्या हैं? मच्छर भी नहीं। मक्खी भी नहीं। किसी मुख्यमंत्री पर 2 करोड़ रु. लेने का आरोप लगाना तो उसका सरासर अपमान है। क्या आप कहना यह चाहते हैं कि वह आदमी पिस्तौल से मक्ख्यिां मार रहा है? वहां करोड़ों का वारा-न्यारा रोज़ होता है। पता नहीं, नेता लोग इस वारे-न्यारे पर पर्दा क्यों डाले रहते हैं?
यदि पार्टी के भले के लिए, सरकार के भले के लिए, देश के भले के लिए वे किसी से पैसा ले रहे हैं तो उसे छिपाने की जरुरत क्या है? लेकिन होता यह है कि वे खुद भी इस अमानत में खयानत करते हैं। इसीलिए वे पर्दा डाले रहते हैं। पैसे खाने के लिए वे गैर-कानूनी और गलत काम करते रहते हैं। इसीलिए उन पर लगे आरोप चाहे सिद्ध न हों, लेकिन लोग उन पर विश्वास करने लगते हैं। केजरीवाल भी इसी गिरफ्त में आ जाए तो आश्चर्य क्या?
लेखक डा. वेद प्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.
Comments on “सत्येंद्र जैन अपने मुख्यमंत्री को रिश्वत क्यों देगा?”
He wasn’t giving the bribe to CM but his share for being an accomplish in the scam.