: आरटीई फोरम द्वारा 150 डेज काउंटडाउन नेशनल कैम्पेन की घोषणा : नई दिल्ली : आज आरटीई फोरम द्वारा प्रेस क्लब में एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया, जिसमें शिक्षा अधिकार कानून, 2009 के तहत हर बच्चे के लिए शिक्षा की दावेदारी पेश करते हुए 150 डेज काउंटडाउन राष्ट्रीय अभियान की घोषणा की गई। 1 नवंबर, 2014 से 31 मार्च, 2015 तक चलने वाले इस देशव्यापी अभियान के तहत आरटीई फोरम शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे सभी सहभागियों को एक मंच पर लाने के साथ-साथ व्यापक जनगोलबंदी का प्रयास करेगा ताकि इस कानून को जमीनी स्तर पर लागू करने की संवैधानिक प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए सरकार को जवाबदेह बनाया जा सके। कांट्रैक्चुअल शिक्षकों के नियमितीकरण एवं प्रशिक्षण के लिए 31 मार्च, 2015 की समय-सीमा निर्धारित की गयी थी ताकि सरकारी स्कूलों की हालत में गुणात्मक सुधार लाया जा सके। लेकिन, अभी तक इस दिशा में कोई प्रयास नहीं दिखता।
आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक, अम्बरीष राय ने अभियान की घोषणा करते हुए कहा कि देश में अभी भी 1.2 मिलियन नियमित एंव प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी है जबकि तकरीबन 10 फीसदी स्कूल में सिर्फ एक शिक्षक है। मानव विकास एवं संसाधन मंत्रालय के हाल के आंकड़ों के मुताबिक स्कूल के दायरे से बाहर रह गये बच्चों में 12.6 फीसदी की कमी आई है लेकिन अभी भी लाखों बच्चे स्कूल से बाहर हैं और यह हर बच्चे को शिक्षा मुहैया कराने का वायदा करने वाले शिक्षा के मौलिक अधिकार की आत्मा के खिलाफ है। इसके अलावे अनियमित शिक्षकों की भर्ती पर आरटीई के तहत रोक के बावजूद देश भर के विभिन्न राज्यों में कम वेतन के साथ ठेके के आधार पर अतिथि शिक्षकों की भर्ती जारी है जो उनकी गरिमा एवं सामाजिक सुरक्षा को खतरे में डालने के साथ-साथ पढ़ाई की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
विभिन्न राज्यों में स्कूलों को बंद होना जारी है जो शिक्षा के क्षेत्र में पहले से सक्रिय निजी एवं कारपोरेट घरानों को बढ़ावा देगा। विगत दिनों राजस्थान में 17129 स्कूलों के विलय के साथ 4500 स्कूल बंद कर दिये गये हैं। इसी तरह से तेलंगान में 2000, पंजाब में 900, उत्तराखं डमें 1200 और उड़ीसा में 5000 स्कूलों को बंद करने की घोषणा हुई है। इसके अलावे राज्य द्वारा बगैर किसी नियमन एवं निगरानी के पनपते कम फीस वाले निजी एवं निजी-सार्वजनिक भागीदारी वाले स्कूल भी इस कानून के मूल मकसद के खिलाफ हैं। आज देश की जनता के समक्ष सरकारी स्कूलों एवं सार्वजनिक शिक्षा के ध्वस्त होते ढांचे को बचाना एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि इस अभियान के तहत आरटीई के उल्लंघन के मुताल्लिक देश के विभिन्न भागों से 10 लाख हस्ताक्षर इकट्ठे किये जाएंगे और त्वरित कार्यवाही के लिए उन्हें राष्ट्रीय एवं राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोगों को सौंपने के साथ-साथ प्रधानमंत्री महोदय को भी ज्ञापन सौंपा जाएगा।
प्रो. मुचकुंद दूबे, पूर्व विदेश सचिव एवं काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट के वर्तमान अध्यक्ष ने कहा कि कुछ बुनियादी कमियों के बावजूद शिक्षा अधिकार कानून भारत की शिक्षा नीति के इतिहास में एक बड़ी उपलब्धि थी जिसकी ये प्रमुख विशेषताएं हैं -1. भारतीय संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में राज्य द्वारा अनिवार्य एवं मुफ्त बुनियादी शिक्षा प्रदान करने की प्रतिबद्धताए 2. संसद द्वारा पारित अधिनियम के रूप में इस अधिकार को सुनिश्चित करने वाला कानून जो इसके उल्लंघन को कानूनी चुनौती देने का आधार मुहैया कराता है 3. इस कानून का समग्र दृष्टिकोण जिसके तहत बुनियदी ढांचे, शिक्षकों के प्रशिक्षण, हर बच्चे को स्कूल के दायरे में लाना और स्कूल प्रबंधन के लोकतंत्रीकरण व सुधार समेत अन्य प्रावधान, 4. कानून के क्रियान्वयन के लिए निर्धारित समय-सीमा जिसके तहत शिक्षकों के प्रशिक्षण व नियमितीकरण की समय सीमा 31 मार्च, 2015 एवं अन्य प्रावधानों को लागू करने की सीमा 31 मार्च 2013 थी। इस प्रकार इस कानून को 5 साल के भीतर लागू होना था।
लेकिन, कानून के वास्तविक अमल की हालत सच्चाई से कोसों दूर है। पिछली सरकार ने स्कूलों व शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों की मैपिंग, नये संस्थानों की स्थापना, अधिकारियों के प्रशिक्षण एवं सरकारी विभागों के आपसी संयोजन समेत इस दिशा में कुछ भी उल्लेखनीय काम नहीं किया। इसके अलावे कानून को लागू करने के लिए सरकार ने न तो अपेक्षित धनराशि मुहैया कराई और न ही दी गयी राशि को सही ढंग से खर्च किया जा सका। अंततः लगता है कि यह कानून सिर्फ चुनावी वोटों को हासिल करने का जरिया बन गया है। मौजूदा सरकार भी इस कानून के कार्यान्वयन पर मौन है और स्कूलों को बंद करने की कवायद जारी है। शायद सरकार सामाजिक जिम्मेदारियों के निर्वाह एवं मानव अधिकारों के अन्य उद्देश्यों को बढ़ावा देने वाली नीतियों से पल्ला झाड़ने के साथ-साथ स्कूली शिक्षा के महत्व को भी आत्मसात नहीं कर सकी है। प्रो़. दूबे ने कहा कि शिक्षा में निजी क्षेत्रों का बढ़ता दखल अच्छा संकेत नहीं है और वस्तुतः शिक्षा एक लोककल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी है।
प्रो. विनय कंठ, शिक्षाविद, पटना विश्वविद्यालय ने आरटीई फोरम के इस अभियान के साथ एकजुटता की अपील करते हुए कहा कि आज हम एक ऐसे चौराहे पर खड़े हैं जबकि शिक्षा के व्यापक उद्देश्यों के संदर्भ में आरटीई के स्वरूप पर बहस-मुबाहिसे की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इस कानून के दायरे को स्कूल पूर्व शिक्षा से लेकर उच्च माध्यमिक शिक्षा तक बढ़ाने एवं कौशलयुक्त शिक्षा को भी शैक्षिक पाठ्यक्रम में जगह देने की दिशा में बढ़ने की जरूरत है। इसके अलावे विभिन्न शिक्षा नीतियों एवं खुद बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र में दुहराये गये वायदे के मुताबिक शिक्षा पर जीडीपी के 6 फीसद बजटीय प्रावधान को पूरा करने की सख्त जरूरत है।
एनी नामाला, निदेशक, सीएसआइइ एवं राष्ट्रीय सलाहकार समिति की पूर्व सदस्य ने दलित, आदिवासी, विकलांग, अल्पसंख्यक समूहों समेत समाज के तमाम वंचित एवं हाशिये के समूहों के उचित समावेश पर जोर दिया और कहा कि शिक्षा अधिकार कानून के अमलीकरण में इस समावेशी दृष्टि को केंद्र में रखने की जरूरत है तभी हम देश में मौजूद गैरबराबरी एवं भेदभाव को खत्म कर पाएंगे। आर.सी. डबास, अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ के उपाध्यक्ष ने देश भर में शिक्षकों की खराब हालत की तरफ ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि कांट्रैक्चुअल शिक्षकों की भारी संख्या में भर्ती ने नियमित शिक्षकों को खतरे में डाल दिया है। उन्होंने कहा कि गुणवत्तापूर्ण रूप से प्रशिक्षित और लक्ष्य व कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध और प्रेरित शिक्षकों बगैर शिक्षा में गुणवत्ता के सवाल का समाधान असंभव है। इस अभियान के लिए पोस्टरों के विमोचन के साथ-साथ राज्य, जिला व राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न गतिविधियों का आयोजन करने की घोषणा भी की गयी।
प्रेस विज्ञप्ति
Vishnu prasad kaivartya
April 30, 2016 at 7:35 am
मेरी बेटी इस वर्ष कक्शा पहिली में थी।विद्यालय के शिक्शकों द्वारा आधार नं. और आई.डी. नं.के लिए लगातार परेशान किया जा रहा है।क्या यह RTE का उल्लंघन नहीं है?