Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

सारधा घोटाला : भारत के छह राज्यों में जाल, जनता को लूट कर यूं हो जाते हैं मालामाल

कोलकाता : सारधा ग्रुप की नींव वर्ष 2006 में रखी गयी थी. मां सारधा के नाम पर इसका नामकरण हुआ था. हर पोंजी स्कीम की तरह इसमें भी गगनचुंबी मुनाफे या रिटर्न का वादा किया गया था. राज्य भर में एजेंटों का बेहद मजबूत तंत्र तैयार करने के लिए एजेंटों को 25 से 40 फीसदी कमीशन दिया जाता था अर्थात यदि कोई एजेंट किसी ग्राहक से 100 रुपये लाता था तो उसे 25 से 40 रुपये मिल जाते थे. इससे एजेंटों का ऐसा व्यापक तंत्र तैयार हुआ कि बंगाल के घर-घर में उसकी पैठ हो गयी. रेगुलेटरी संस्थाओं की नजरों से बचने के लिए ग्रुप ने करीब 200 कंपनियों का समूह तैयार किया. शुरुआत में कंपनी ने सिक्योर्ड डिबेंचर तथा रेडीमेबल प्रीफरेंशियल बॉन्ड जारी करके पैसे उगाहे थे.

<p>कोलकाता : सारधा ग्रुप की नींव वर्ष 2006 में रखी गयी थी. मां सारधा के नाम पर इसका नामकरण हुआ था. हर पोंजी स्कीम की तरह इसमें भी गगनचुंबी मुनाफे या रिटर्न का वादा किया गया था. राज्य भर में एजेंटों का बेहद मजबूत तंत्र तैयार करने के लिए एजेंटों को 25 से 40 फीसदी कमीशन दिया जाता था अर्थात यदि कोई एजेंट किसी ग्राहक से 100 रुपये लाता था तो उसे 25 से 40 रुपये मिल जाते थे. इससे एजेंटों का ऐसा व्यापक तंत्र तैयार हुआ कि बंगाल के घर-घर में उसकी पैठ हो गयी. रेगुलेटरी संस्थाओं की नजरों से बचने के लिए ग्रुप ने करीब 200 कंपनियों का समूह तैयार किया. शुरुआत में कंपनी ने सिक्योर्ड डिबेंचर तथा रेडीमेबल प्रीफरेंशियल बॉन्ड जारी करके पैसे उगाहे थे.</p>

कोलकाता : सारधा ग्रुप की नींव वर्ष 2006 में रखी गयी थी. मां सारधा के नाम पर इसका नामकरण हुआ था. हर पोंजी स्कीम की तरह इसमें भी गगनचुंबी मुनाफे या रिटर्न का वादा किया गया था. राज्य भर में एजेंटों का बेहद मजबूत तंत्र तैयार करने के लिए एजेंटों को 25 से 40 फीसदी कमीशन दिया जाता था अर्थात यदि कोई एजेंट किसी ग्राहक से 100 रुपये लाता था तो उसे 25 से 40 रुपये मिल जाते थे. इससे एजेंटों का ऐसा व्यापक तंत्र तैयार हुआ कि बंगाल के घर-घर में उसकी पैठ हो गयी. रेगुलेटरी संस्थाओं की नजरों से बचने के लिए ग्रुप ने करीब 200 कंपनियों का समूह तैयार किया. शुरुआत में कंपनी ने सिक्योर्ड डिबेंचर तथा रेडीमेबल प्रीफरेंशियल बॉन्ड जारी करके पैसे उगाहे थे.

हालांकि कोई भी कंपनी बगैर उपयुक्त प्रॉसपेक्टस व बैलेंस शीट के 50 से अधिक लोगों से पूंजी उगाह नहीं सकती. उसके खातों की ऑडिटिंग जरूरी है और सेबी से इसके लिए अनुमति भी ली जानी चाहिए. वर्ष 2009 में सारधा ग्रुप पर सेबी की नजर पड़ी लेकिन ग्रुप ने 200 कंपनियों का जाल बना लिया था. इससे कंपनी के कारपोरेट ढांचे को एक जटिल बहु स्तरीय ओट मिल गयी. सेबी की जांच 2010 तक चली. कंपनी ने पूंजी उगाहने के लिए पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम व छत्तीसगढ़ में अपने तरीके को बदल दिया. उसने कलेक्टिव इनवेस्टमेंट स्कीम (सीआइएस) के जरिये पर्यटन पैकेज, यात्र व होटल बुकिंग, रियल इस्टेट, आधारभूत ढांचे के फिनांस व मोटरसाइकिल उत्पादन के नाम पर पैसे उगाहने शुरू किये. निवेशकों को उनके निवेश की प्रकृति के संबंध में जानकारी नहीं दी जाती थी.

Advertisement. Scroll to continue reading.

उन्हें बताया जाता था कि तय समय के बाद उन्हें उनके निवेश के लिए भारी मुनाफा हासिल होगा. सेबी ने 2011 में पश्चिम बंगाल सरकार को सारधा समूह के चिट फंड गतिविधियों के संबंध में बताया था. लिहाजा ग्रुप ने अपनी गतिविधियों में फिर बदलाव किया. इस बार उसने कई लिस्टेड कंपनियों के शेयर्स हासिल किये और उन्हें बेच कर उसके पैसों को कई खातों के जरिये हड़प लिया.

इन खातों की पहचान अभी भी पूर्ण रूप से नहीं हो सकी है. इधर समूह ने अपने फंड के एक बड़े हिस्से का निवेश दुबई, दक्षिण अफ्रीका और सिंगापुर में करना शुरू किया. 2012 में सेबी ने कंपनी को अपनी गतिविधियों को सेबी की फिर से अनुमति मिलने तक बंद करने के लिए कहा. लेकिन सारधा ग्रुप ने सेबी के इस निर्देश को नहीं माना और अपनी गतिविधियों को जारी रखा. वर्ष 2013 के अप्रैल महीने में समूह धराशायी हो गया.

Advertisement. Scroll to continue reading.

निवेशकों को लुभाने के लिए चमक-दमक का सहारा

कोलकाता : सारधा समूह ने निवेशकों को लुभाने व अपनी छवि चमकाने के लिए कई अभिनव कदम उठाये. अपने फंड को उसने कई ऐसे क्षेत्र में लगाया जिससे उसका नाम आम लोगों की जुबान पर चढ़ जाये. इसके लिए उसने बांग्ला फिल्म उद्योग में पैसे लगाये. उसने अभिनेत्री व तृणमूल सांसद शताब्दी राय को अपना ब्रांड एंबेसडर बनाया. बॉलीवुड एक्टर तथा तृणमूल के राज्यसभा सांसद मिथुन चक्रवर्ती को सारधा समूह की मीडिया इकाई का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया. सारधा समूह ने एक और तृणमूल सांसद कुणाल घोष को अपने मीडिया ग्रुप का मुख्य कार्यकारी अधिकारी बना दिया. कुणाल घोष के नेतृत्व में उसके मीडिया ग्रुप ने कई स्थानीय टेलीविजन चैनल, अखबार आदि का अधिग्रहण किया व कुछ की स्थापना की. 2013 तक उसके तहत 1500 पत्रकार थे. पांच भाषाओं में उसके पास आठ समाचार पत्र थे. जिनमें अंगरेजी में ‘सेवेन सिस्टर्स पोस्ट’ तथा ‘बंगाल पोस्ट’, बांग्ला भाषा में ‘सकालबेला ’ और ‘कलम’, हिंदी में ‘प्रभात वार्ता’, असमिया में ‘अजिर दैनिक बातुरी’, उर्दू में ‘आजाद हिंद’ तथा बांग्ला साप्ताहिक मैगजीन में ‘परमा’ शामिल है. उसने तारा न्यूज व चैनल 10 नामक बांग्ला न्यूज चैनल हासिल किये. तारा म्यूजिक व तारा बांग्ला नामक इंटरटेनमेंट चैनल भी उसने खरीद लिये. पंजाबी इंटरटेनमेंट चैनल ‘तारा पंजाबी’ भी उसके पास आ गया. इसके अलावा उसने ‘टीवी साउथ इस्ट एशिया’ भी हासिल किया. अपनी कारपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के तहत सारधा ग्रुप ने कोलकाता पुलिस को मोटरसाइकिल दान में दी थी. मोहन बागान और इस्ट बंगाल जैसी लोकप्रिय फुटबॉल टीमों में भी उसने निवेश किया. इसके अलावा कई स्थानीय राजनीतिक हस्तियों द्वारा आयोजित दुर्गा पूजा आयोजनों को भी उसने प्रायोजित किया.

Advertisement. Scroll to continue reading.

रसूख वालों का संरक्षण

अपनी गतिविधियों को चलाने के लिए सारधा समूह को विभिन्न राजनीतिक नेताओं द्वारा संरक्षण हासिल हुआ. आरोप है कि उसने कई सांसदों को वित्तीय लाभ पहुंचाया. तृणमूल सांसद कुणाल घोष को 16 लाख रुपये का मासिक वेतन दिया जाता था. तृणमूल सांसद सृंजय बोस पर ग्रुप के मीडिया ऑपरेशन में सीधे शामिल होने का आरोप है. खेल मंत्री मदन मित्र पर सुदीप्त सेन से अपने सहायक के जरिये या खुद लगातार पैसे झटकने का आरोप है. मदन मित्र को कई बार सार्वजनिक तौर पर सारधा समूह में पैसे लगाने की वकालत करते हुए देखा गया था. ममता बनर्जी की पेंटिंग खरीदने के लिए सुदीप्त सेन पर 1.84 करोड़ रुपये खर्च करने का आरोप है. ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने बाद में अधिसूचना जारी कर कहा था कि पब्लिक लाइब्रेरी में सारधा ग्रुप के समाचारपत्र होने चाहिए. सुदीप्त सेन पर असम के पूर्व कांग्रेस सांसद तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री मतंग सिंह की पत्नी मनोरंजना सिंह को करीब 25 करोड़ रुपये अदा करने का भी आरोप है जिससे एक टेलीविजन चैनल के शेयर ऊंची कीमतों पर खरीदे जा सकें. सारधा के कार्यक्रमों में गाहे बगाहे मंत्रियों, कलाकारों की भीड़ दिखाई देती थी. सारधा की छवि चमकाने के लिए इन्होंने बड़ी भूमिका निभायी थी.

Advertisement. Scroll to continue reading.

व्यक्तित्व का छलावा

सारधा समूह के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर सुदीप्त सेन के संबंध में इस बात की पुष्टि सभी करते हैं कि उसमें लाजवाब मार्केटिंग दक्षता है. वह बेहद मृदुभाषी होने के अलावा आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी है. उसके साथ काम करने वाले लोग उसे बेहद ओजस्वी वक्ता करार देते हैं. अपनी युवावस्था में उसे शंकरादित्य सेन के नाम से जाना जाता था. उसे बंगाल के नक्सल आंदोलन से भी जुड़ा बताया जाता है. 1990 के मध्य में उसने अपना नाम सुदीप्त सेन रख लिया. दक्षिण कोलकाता की जमीन की डीलिंग में भी उसका नाम सामने आया. वर्ष 2000 के करीब उसने एक अच्छा लैंड बैंक खड़ा कर लिया था. लोग उस पर सहज ही विश्वास कर लेते थे. तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने से पहले सारधा कंपनी के पास मात्र 400-500 करोड़ रुपये थे, लेकिन वर्ष 2011 में सत्ता परिवर्तन के बाद इसका प्रचार प्रसार जोरशोर से शुरू हुआ और दो वर्ष में ही कंपनी ने 2500 करोड़ रुपये से भी अधिक राशि वसूली.

Advertisement. Scroll to continue reading.

बड़ी गिरफ्तारी : मदन  मित्रा

प्रभार – राज्य के परिवहन व खेल मंत्री

Advertisement. Scroll to continue reading.

परिचय : तृणमूल कांग्रेस के जमीनी स्तर के नेताओं में तृणमूल कांग्रेस के सबसे विश्वसनीय नेता है. मुख्यमंत्री के काफी करीबी नेता और वह ममता बनर्जी के सबसे बड़े सहयोगी रहे हैं. वाममोरचा के जमाने से ही तृणमूल कांग्रेस के उत्थान में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है.

उम्र – 54 वर्ष

Advertisement. Scroll to continue reading.

शैक्षणकि योग्यता – स्नातक

विधानसभा क्षेत्र – कमरहट्टी, वर्ष 2011 में माकपा के नेता मानस मुखर्जी को 49758 वोट से इन्होंने पराजित  किया था.

Advertisement. Scroll to continue reading.

भूमिका – पार्टी में किसी प्रकार की समस्या आती है तो इसके समाधान के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पहली पसंद मदन मित्र ही होते रहे हैं.

आरोप – सारधा ग्रुप से प्रोटेक्शन मनी वसूली.

Advertisement. Scroll to continue reading.

सारधा के पतन की कहानी : जनवरी 2013 से हुई शुरुआत

सारधा कंपनी के बारे में पहले ही राज्य के कई वरिष्ठ नेताओं ने इसके खिलाफ आवाज उठायी थी. वर्ष 2009 में तृणमूल कांग्रेस के तत्कालीन सांसद सोमेन मित्र (अब कांग्रेस में), कांग्रेसी सांसद अबू हाशेम खान चौधरी व साधन पांडे ने पहली बार इसके खिलाफ आवाज उठायी थी, लेकिन सुदीप्त सेन की पहुंच और धन बल के जरिये इस आवाज को दबा दिया गया. जिन लोगों ने कभी इसके खिलाफ बोला था, वह भी धीरे-धीरे पीछे हटने लगे. यहां तक कि सेबी ने भी उस समय अपनी आंखें मूंद ली और पूरे घोटाले को जारी रहने दिया. उस समय तृणमूल कांग्रेस सत्ता में नहीं आयी थी. सत्ता में आने के बाद तृणमूल कांग्रेस के नेता जैसे सारधा कंपनी के एंबेसडर ही हो गये थे. सारधा के सभी कार्यक्रमों में मंत्रियों का हुजूम उमड़ता था, यहां तक कि कई कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भी पहुंची थीं. सारधा कंपनी के पतन की शुरुआत जनवरी 2013 से हुई. कंपनी में निवेशकों ने रुपया जमा करना बंद कर दिया और कंपनी का संचालन पहली बार प्रभावित होना शुरू हुआ. कंपनी में कैश फ्लो का सबसे पहला असर इसके मीडिया उद्योग पर पड़ा, क्योंकि इससे मीडिया के कार्य कर रहे कर्मचारियों का वेतन मिलना बंद हो गया. सुदीप्त सेन ने इस बात को दबाने की पूरी कोशिश की, लेकिन धीरे-धीरे कंपनी का सच सबके सामने आने लगा.  अप्रैल 2013 तक कंपनी की ऐसी अवस्था हो गयी कि सुदीप्त सेन को बंगाल छोड़ कर भागना पड़ा.

Advertisement. Scroll to continue reading.

सुदीप्त के पत्र से सनसनी

बंगाल से फरार होने के पहले छह अप्रैल 2013 को सुदीप्त सेन ने सीबीआइ के नाम पर 18 पेजों का एक पत्र लिखा, जिसमें उसने साफ तौर पर राज्य के कई नेताओं पर आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ पार्टी के कई नेता व मंत्री उस पर दबाव बना कर रुपये वसूल रहे हैं. तृणमूल कांग्रेस के सांसद कुणाल घोष ने उसे घाटे में चल रहे मीडिया उद्योग में रुपये लगाने का परामर्श दिया था और इस उद्योग में रुपये लगा कर उनको 1200 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.  इस पत्र को सीबीआइ को देने के बाद 10 अप्रैल को सुदीप्त सेन यहां से फरार हो गया और उसके बाद सारधा चिटफंड कंपनी में घोटाला मामले की सच्चई जग जाहिर हो गयी. इसके बाद पूरे पूर्वी भारत में बवाल सा मच गया. 17 अप्रैल को कंपनी के 600 से भी अधिक एजेंट इसके मुख्यालय पहुंचे तो वहां से कर्मचारी नदारद थे. इसके बाद वह सभी तृणमूल कांग्रेस के मुख्यालय पहुंचे और मामले की जांच कराने की मांग की. 18 अप्रैल को पुलिस ने सुदीप्त सेन के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया और 20 अप्रैल तक यह घटना देश की बड़ी घोटाले के मामलों में शामिल हो गयी. 23 अप्रैल को सारधा कंपनी के सीएमडी व मुख्य आरोपी सुदीप्त सेन, कंपनी की निदेशक देबयानी मुखर्जी व उसके ड्राइवर अरविंद सिंह चौहान को जम्मू व कश्मीर के सोनमर्ग से गिरफ्तार किया गया.

Advertisement. Scroll to continue reading.

आक्रोश रोकने के लिए कदम

सुदीप्त की गिरफ्तारी के दूसरे ही दिन 24 अप्रैल को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने निवेशकों की राशि वापस लौटाने के लिए आयोग का गठन किया. पूर्व न्यायाधीश श्यामल सेन को इस आयोग का दायित्व देकर जनता को यह बताने का प्रयास किया गया कि सरकार इस मामले पर पूरी तरह से गंभीर है. मुख्यमंत्री ने इसके लिए 500 करोड़ रुपये का राहत कोष इकट्ठा करने की घोषणा की. यह राशि वसूलने के लिए राज्य सरकार द्वारा तंबाकू उत्पादों की कीमत पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त कर लगाया गया और सीएम ने विवादित बयान देते हुए राज्य के लोगों को अधिक से अधिक धूम्रपान करने की सलाह दी, ताकि सरकार अधिक से अधिक राशि वसूल सके. लेकिन आयोग के सहारे लोगों का रुपया वापस करने के लिए आयोग का गठन करना भी एक छलावा साबित हुआ. राज्य सरकार का दावा है कि वह अब तक 4.5 लाख लोगों को रुपये वापस कर चुकी है. करीब 150 करोड़ रुपये दिये गये हैं. वास्तव में  3 लाख 73 हजार 982 निवेशकों को कुल 166.26 करोड़ रुपये राज्य सरकार की ओर से जारी किये गये. अभी भी निवेशकों के करीब 2833 करोड़ रुपये बकाया हैं. आयोग की समय सीमा समाप्त हो गई. लेकिन अभी भी अधिकांश निवेशकों को राशि उनकी नहीं मिल सकी है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

मीडिया में पहुंचा मामला

बंगाल में सारधा समेत अन्य चिट फंड कंपनियों के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ सबसे पहली आवाज तृणमूल कांग्रेस के अंदर से ही बुलंद हुई थी. तत्कालीन तृणमूल सांसद सोमेन मित्र ने 2009 में सबसे पहले चिटफंड घोटाले की ओर इशारा किया था. उनके बाद राज्य सरकार के मंत्री साधन पांडे व कांग्रेस सांसद अबु हाशेम खान चौधरी ने भी चिट फंड कंपनियों के अवैध व्यवसाय की ओर ध्यान आकर्षित कराया था. उसके बाद सितंबर 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिख कर राज्य में चिट फंड कंपनियों की बढ़ती संख्या के बारे में लिख कर सचेत किया गया था. प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में श्री मित्र ने सारधा ग्रुप का नाम तो नहीं लिया था, पर उन्होंने लिखा था कि नियामक प्रशासनिक तंत्र की कमी के कारण चिट फंड कंपनियां ग्रामीण व छोटे शहरों में लोगों को बड़े-बड़े प्रलोभन देकर धन संग्रह कर रही हैं. श्री मित्र के बाद सितंबर 2011 में ही मालदा के कांग्रेस सांसद अबु हाशेम खान चौधरी ने भी  प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर राज्य में पनप रही चिट फंड कंपनियों के बढ़ते अवैध व्यवसाय व उन्हें मिल रहे राजनीतिक संरक्षण के बारे में बताया था. इस दौरान विभिन्न मीडिया में इस मामले को लेकर तथ्यों का सामने आना शुरू हुआ. मामला जग जाहिर हो गया. (साभार- प्रभात खबर)

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. Lokenath Tiwary

    December 24, 2014 at 11:13 am

    Prabhat Khabar ki report hai

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement