यशवंत सिंह-
यूपी में आबकारी विभाग नोट छापने की मशीन है। जेब काटा जा रहा आम शराबी का। उसे कई तरह की चोट पड़ रही है।
-एमआरपी से ज़्यादा पैसे में शराब ख़रीदने को मजबूर होना पड़ता है।
-सरकारी दुकान से धोखे में नक़ली शराब ख़रीद कर जान माल दोनों का नुक़सान झेलता है।
-लूट और चोरी पर सवाल उठाने वाले आम पियक्कड़ आए दिन शराब दुकानदारों की बदतमीजी के शिकार होते हैं।
-आरोप तो यहाँ तक है कि कई डिस्टलरीज़ में भारी पैसा का लेनदेन कर कम तीव्रता की दारू सप्लाई की जा रही है।
उपरोक्त सब समस्याओं का निदान पूरे कारोबार के डिजिटलाइजेशन में था। इसकी प्रक्रिया जोरशोर से शुरू हुई। खबरें छपवाई गईं। विज्ञप्ति जारी कर खुद की पीठ ठोकने का काम हुआ। पर ज़मीन पर अब भी सब आधा अधूरा है।
देखें तबकी बातें-
आबकारी विभाग की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी। इसके तहत पूरा निर्माण, खरीद, ट्रांसपोर्ट बारकोड युक्त होगा। हर बॉटल बारकोड युक्त होगी। हर चरण पर स्कैनिंग और ट्रैकिंग होगी। इससे अवैध शराब पर लगाम लगेगी। 33 हजार पॉश मशीन लगेगी। टैंकर डीजी लॉक होंगे। पहले लेबल प्रिंटिंग डिस्टलरी कराती थीं। अब थर्ड पार्टी करेगी। 700 करोड़ रूपये के करीब इस पर खर्च आएगा।
कम्पनी से mou या एग्रीमेंट में यह सब करने का समय निर्धारित रहा होगा। आज तक किसी भी दुकान या सरकारी गाड़ी या टैंकर में जीपीएस नहीं लगा है… तो क्या टेंडर निरस्त हुआ?
ये सब बातें चार पाँच साल से हो रही है। ज़मीन पर हक़ीक़त ये है कि शराब दुकानों पर सीसीटीवी लगाने का काम तक दुकानदारों पर ही थोप दिया गया। शराब की बोतलों पर बार कोड स्कैन का काम हुआ नहीं। पीओएस मशीन दिखी नहीं। अपवादों की बात नहीं हो रही।
सितंबर 2020में ही epos मशीन, सीसीटीवी, जीपीएस प्रत्येक गाड़ी, टैंकर, हर दुकान पर लगनी थी. चार साल में क्या हुआ…
डिस्टिलरी में, चीनी मिलों में, फार्मेसी में जो भी cctv लगे हैं वह महेश गुप्ता (तत्कालीन कमिश्नर) के समय के लगे हैं।
अपने शहर देहात की शराब की दुकानों की पड़ताल कर आइये। सब कुछ बाबा आदम के जमाने का सिस्टम होगा। नगद लेनदेन पर पूरा सिस्टम चल रहा है। असली के नाम पर नक़ली दारू बेच दी जा रही।
आबकारी विभाग और शराब के कारोबार को आधुनिक / ट्रांसपैरेंट बनाने का काम कौन नहीं होने दे रहा है?
आबकारी विभाग के भ्रष्ट अफ़सर जो ऊपर से लगाकर नीचे तक पदस्थ हैं और जोंक की तरह शराब दुकानदारों का खून पी रहे और शराब दुकानदार आम शराबियों का खून पी रहे हैं। ये खेल चलता चला आ रहा है। संजय भूसरेड्डी जैसे ईमानदार कहे जाने वाले अफ़सर के राज में भी ये खेल खूब फलाफूला।
देखना है नए और ऊर्जावान आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल इस खेल को रोक पाते हैं या इसी का हिस्सा बनकर मदहोश हो जाते हैं!
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