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मजीठिया की लड़ाई : श्रम विभाग अवैध कमाई का सबसे बड़ा जरिया, सीधे कोर्ट जाएं

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मजीठिया न देना दैनिक भास्कर, जागरण के मालिकों के लिए गले का फंस बन सकता है। इन दोनों अखबारों के मालिक अपने अपने अखबारों के कारण ही खुद को देश का मसीहा समझते हैं। देश का कानून ये तोड़ मरोड़ देते हैं। प्रदेश व देश की सरकारें इनके आगे जी हजूरी करती हैं। लेकिन अब देखना होगा कि अखबार का दम इनका कब तक रक्षा कवच बना रहता है क्योंकि जनवरी में मानहानि के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है। कारपोरेट को मानहानि के मामले में सिर्फ जेल होती है। अब देखना होगा कि सहाराश्री के समान क्या अग्रवाल व गुप्ता श्री का भी हाल होता है या फिर मोदी सरकार अखबार वालों को कानून से खेलने की छूट देकर चुप्पी साध लेती है। मोदी सरकार पत्रकारों को मजीठिया दिलवाने के मामले में बेहद कमजोर सरकार साबित हुई है। मालिकों को सिर्फ नोटिस दिलवाने से आगे कुछ नहीं कर पाई।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मजीठिया न देना दैनिक भास्कर, जागरण के मालिकों के लिए गले का फंस बन सकता है। इन दोनों अखबारों के मालिक अपने अपने अखबारों के कारण ही खुद को देश का मसीहा समझते हैं। देश का कानून ये तोड़ मरोड़ देते हैं। प्रदेश व देश की सरकारें इनके आगे जी हजूरी करती हैं। लेकिन अब देखना होगा कि अखबार का दम इनका कब तक रक्षा कवच बना रहता है क्योंकि जनवरी में मानहानि के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है। कारपोरेट को मानहानि के मामले में सिर्फ जेल होती है। अब देखना होगा कि सहाराश्री के समान क्या अग्रवाल व गुप्ता श्री का भी हाल होता है या फिर मोदी सरकार अखबार वालों को कानून से खेलने की छूट देकर चुप्पी साध लेती है। मोदी सरकार पत्रकारों को मजीठिया दिलवाने के मामले में बेहद कमजोर सरकार साबित हुई है। मालिकों को सिर्फ नोटिस दिलवाने से आगे कुछ नहीं कर पाई।

आश्चर्य तो तब होता है जब श्रम विभाग वाले अखबारों को मजीठिया वेज बोर्ड देने की नोटिस भेजता है तो अखबार प्रबंधन दो टूक लिखकर दे देता है कि यहां सभी को मजीठिया दिया जा रहा है, जो शिकायतें मिल रही हैं, वो झूठी हैं। श्रम विभाग इसके बाद समाचार पत्र संस्थानों से दोबारा यह पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाता कि किनको किनको मजीठिया मिल रहा है, कृप्या उनके नाम और एकांउट नंबर दें। पिछले माह किसे कितना मिला, किसका क्या पद था, ये बताएं। ये सब श्रम विभाग वाले नहीं पूछते। कई बार श्रम विभाग वाले पूछते कुछ हैं और जवाब कुछ और मिलता है। उधर, समाचार पत्र के मालिक यह भी कह देते है कि यहां कोई मजीठिया वेतनमान लेना ही नहीं चाहता। कल को ये लोग लिखकर दे देंगे कि उनके यहां कोई पत्रकार सेलरी ही नहीं लेना चाहता। मजदूर मजदूरी के लिए ही काम करता है। पर ये मालिक ऐसे ऐसे कुतर्क गढ़ देते हैं कि हंसी आती है। श्रम विभाग को इनके खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए।

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दरअसल श्रम विभाग अवैध कमाई का सबसे बड़ा जरिया है। कोई भी निजी संस्थान श्रम कानूनों का पूरी तरह पालन नहीं कर पाता। इसलिए हर महीने इनका बड़ी कंपनियां, छोटी कंपनियां और दुकानों से वसूली बंधी होती है। इस वसूली पर प्रेस की नजर ना पड़े, इसलिए उनसे दूरी बनाकर रखते हैं। एक कपड़े के व्यापारी ने बताया कि लेबर इंस्पेक्टर पहली बार आया तो 50 गलती निकाला। जैसे किस दिन संस्थान बंद रहता है, दीवाल पर यह नहीं लिखा है। 14 साल से कम वाले बाल मजदूर संस्थान में एक भी नहीं है, इसकी घोषणा नहीं है। दीवार का रंग अलग नहीं है, श्रमिकों का रजिस्टर मेंटेन नहीं है आदि-आदि। अंत में बात यह तय हुई कि हर तीन महीने में एक-एक हजार आकर लेते जाना और कुछ मत पूछना, ना ही केस कोर्ट में लगाना। बस यही हाल हर संस्थान में है। और श्रम विभाग में यह पैसा नीचे से लेकर ऊपर तक बंटता है इसलिए शिकायत पर कोई सुनवाई नहीं करता। नौकरी से निकालने की कोई शिकायत लेबर आफिस में किया तो शिकायतकर्ता की परेशानी और आफिस की बल्ले-बल्ले होती है। शिकायत के बाद अधिकारी कंपनी के महाप्रबंधक को फोन लगाकर इस बात की बोली लगाता है कि आप पैसा दे दो, मैं शिकायत को ठंडे बस्ते में डाल दूंगा या हल्का केस बनाऊंगा। फिर पेशी पर पेशी। अंत में श्रमिक नहीं माना तो बोल देते हैं कि हमने शासन को भेज दिया है। अब ऊपर स्तर से निर्णय होगा कि कोर्ट लगाएंगे या कुछ और करेंगे। इसलिए बेहतर होता है कि हर विवाद स्वयं कोर्ट में जाकर लड़ें। महज कुछ पैसों के चक्कर में लेबर आफिस के भ्रष्ट अधिकारी जिंदगी भर चक्कर लगवा देते हैं। हां वेतन भुगतान के मामले में जल्द कार्यवाही जरूर करते है। वह भी पैसा वसूली के कारण।

एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित. पत्र लेखक ने अपना नाम न प्रकाशित करने का अनुरोध किया है.

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0 Comments

  1. manmohan shrivastav

    December 7, 2014 at 10:33 am

    सही बात,न जाने कब मोदी सरकार मीडियाकर्मियों के शोषण से वाकिफ होगी

  2. Ping

    December 7, 2014 at 11:11 am

    JAAGO PATRKAAR BHAIYON JAAGO because abhi nahin to kabhi nahin
    (Now or never)

  3. ek karmchaaree

    December 7, 2014 at 12:33 pm

    Sahee kahaa mitra, Maine bhee rti dala thaa galat jaajankaaree dee lebar office akhbaar Ke maalikon se mila a huva hai.. Baharhaal 2 janvaree Ke baad suchnaa magoongaa.5

  4. rexpress

    December 7, 2014 at 3:38 pm

    ranchi express main bhi mijathiya nahi diya ja raha hai

  5. mini

    December 8, 2014 at 5:57 am

    आम आदमी का तो हर जगह ही शोषण होता है… वैसे भी कलयुग मै तो बेईमानो का ही बोलबाला है.

  6. rashmi

    December 11, 2014 at 3:43 pm

    modi saab ko ye samjhna chahiye ki khabar na to gupta likhega aur na hi agrawal. Khabar to pattarakar hi likhega…aur mahul bhinwahi banayega… yahan har din jagran mai mahol bad se badtar ho rahe hain…kam karne walon ke liye narak si jagah ho rahi hai…

  7. girish

    December 13, 2014 at 6:48 am

    [quote name=”rashmi”]modi saab ko ye samjhna chahiye ki khabar na to gupta likhega aur na hi agrawal. Khabar to pattarakar hi likhega…aur mahul bhinwahi banayega… yahan har din jagran mai mahol bad se badtar ho rahe hain…kam karne walon ke liye narak si jagah ho rahi hai…[/quote]
    Very True Rashmi.

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