शिप्रा ने अचानक मुझे फोन किया- मैंने शंकराचार्य से दीक्षा ले ली है और उन्होंने कहा है तुम्हें इसी जन्म में मोक्ष मिल जाएगा. तुम्हारा अगला जन्म नहीं होगा. मैं सुनती रही और झिड़ककर कहा कि कि ऐसी ऊटपटांग बाते मुझे मत सुनाओ. पर मन माना नहीं. दिन भर रोती रही. पता नहीं कैसी बातें करती है शिप्रा. मेरे पति वरिष्ठ पत्रकार अनंत मित्तल ने समझाया कि तुमने उसका अगला जनम देखा है क्या, जो दुखी हुए जा रही हो. पर मन तो मन है. शिप्रा उन दिनों नरसिंहपुर की डीजे यानी डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन्स जज थी. मेरी सगी बहन. मुझसे सवा साल छोटी, लिहाजा जमकर लड़ते अैर दोस्ती ऐसी कि कभी बड़ी-छोटी का लिहाज नहीं, परदा नहीं.
दिन भर नोंक-झोंक चलती रहती. और हमेशा मैं ही शुरुआत करती और उसे दबाती. बड़ी थी लिहाजा मेरी दबंगई चलती थी. घर की हर अच्छी चीज मेरी थी और लड़ाई में मेरी जीत तय थी. शिप्रा की लड़ाई भी बड़ी मीठी हुआ करती थी. सचमुच वह बहुत मीठा बोलती थी. बचपन में उससे पापा पूछते कि तुम इतना मीठा कैसे बोलती हो, बड़े ही मधुर अंदाज में कहती ‘हम बहुत शक्कर (चीनी) खाते हैं ना पापा इसलिए.’ वह एकदम मुझसे उलट थी. बेहद कोमल और मधुर. ‘शर्मीली’ फिल्म की दो बहनों में से भली बहन की तरह.
हम साथ स्कूल जाते, साथ घूमते और सोते. साथ-साथ कम से कम पांच सौ फिल्मी गाने गा देते. उसकी आवाज में ही नहीं, पूरे व्यक्तित्व में गजब का सम्मोहन था और मुस्कान ऐसी मोहक कि हमारे डाक्टर मित्र ने उसका नाम ही ‘रहस्यमयी’ रख दिया था. शिप्रा रही नहीं इसलिए नहीं वह जीते जी भी मेरे लिए गुणों की खान थी और शायद यही वजह है कि कई बार उससे मैं बहुत ईर्ष्या करती थी. जैसे वह कभी दूसरे नंबर पर नहीं आती थी. हमेशा अव्वल. मुझे अच्छे से याद है कि वह नन्ही सी थी तो फाइनल एक्जाम के नतीजे से पहले सिल बट्टे पर घिसकर चाकू तेज किया करती थी. पापा ने पकड़ लिया तो बड़े ही सौम्य अंदाज में बोली- अगर फस्ट नहीं आई तो पेट में घोंप लूंगी और भगवान ने उसकी हर चाहत पूरी की.
अपनी मृत्यु तक वो मध्यप्रदेश उच्च न्यायिक सेवा की सीनियर मोस्ट जज थी और जल्द ही हाई कोर्ट की जज बनती. जाने से चंद घंटे पहले रात सवा बारह बजे उससे लंबी बात होती रही. मेरा मन दरअसल सुबह से उसके लिए फड़फड़ा रहा था और मैंने ही डरते-डरते मैसेज छोड़ा था. वजह यही कि वह बहुत व्यस्त रहती थी. शनिवार को अलसुबह सवा पांच बजे उसकी छोटी बेटी देवीना का फोन था कि मम्मी बहुत सीरियस हैं मौसी. असल में उसका देहांत हो गया था. कैसे भरोसा करती मैं. हम रात सवा बारह तक गपिया रहे थे. दुनिया जहान की बातें की थी उसने. कहा था कि शपथ ग्रहण के लिए तैयार रहना. उस दिन कितना मन चाहा था कि उसे बचपन के नाम से टप्पू कहकर पुकारुं पर पुकार नहीं पाई.
सवा तीन बजे तो वह स्टेशन से अपनी बेटी देवीना को लेकर लौटी थी. उसने चौबीस घंटे पहले पापा को भी फोनकर कहा था कि पापा मैं जब शपथ लूं तो आप सामने हों. स्वस्थ रहना उस समय तक. कितना अच्छा लगेगा जब पिता के सामने मैं हाई कोर्ट जज बनूंगी. हम सब उसके इलेवेशन के गौरवमयी पल का इंतजार कर रहे थे. हम सबका अरमान था उसे काला चोगा पहने हाईकोर्ट जज का शपथ ग्रहण करते देखना. वह हमारे परिवार, समाज और महिला जाति का ही नहीं, पूरी न्यायपालिका का गौरव होती. मध्यप्रदेश न्यायपालिका के कई जजों ने कहा कि हमें उसके इलेवेशन का इंतजार था. पिछले पंद्रह बरसों में पहली बार कोई ऐसा शख्स हाईकोर्ट जा रहा था जो ट्रू (वास्तव में ) जज था. पर शिप्रा ने सबकी मुरादों पर पानी फेर दिया इस तरह असमय दुनिया छोड़कर.
शिप्रा मौत के मंह से लौटी थी. यह किस्सा जगदलपुर में बहुत लोग जानते हैं. 18 माह की उम्र में वह चली गई थी और बड़े चमत्कारिक तरीके से लौट आई थी. तब डाक्टरों के लिए यह अजूबी घटना थी. शिप्रा बड़ी सौम्य थी. जैसे गुड़िया के वेश में कोई बुढिया. गुड़िया सी संदर और बुढिया सी समझदार. उसके पास हर समस्या का हल बचपन से ही होता था. वह किसी को भी टालती नहीं थी, चुटकियों में उसका हल बता देती. मुझे हैरत होती थी कि वो पढती कब है. क्योकि वो बहुत होशियार थी, इतनी कि टीचर भी उसकी होशियारी का लोहा मानते थे. वह तीसरी-चौथी में तो सातवीं तक के सवाल हल कर लेती थी. मुझसे हमेशा आगे रहती थी लिहाजा मैं उसे पढने भी नहीं देती थी. कभी उसका लैंप आफ कर देती कभी चिल्ला-चिल्ला के गाने लगती और मकसद यही कि इसे लोगों की नजर में चढने से कैसे रोका जाए.
वो जरा भी फैशन नहीं करती. इतनी सुंदर जो थी. कोर्ट में हमेशा सफेद साड़ी पहनती. शायद बीस बरस की उम्र में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीपी वाधवा की जूनियर रहने के दौरान उसने साड़ी पहनना शुरू किया था और मेरी जानकारी में कभी कोई दूसरी पोशाक नहीं पहनी. पैसा पावर क्या नहीं था उसके पास. जो चाहे कर सकती थी. बीएससी फाइनल में उसे जब मिस भोपाल चुना गया था तो मैं तो जल मरी थी. भला ये मुझसे अच्छी कैसे. उसकी लंबाई मुझसे कम थी और मैंने अपनी मां को उस दिन यह पूछ-पूछ कर हलकान कर डाला था कि ठिगनी लड़की कैसे भोपाल सुंदरी बन सकती है. हालांकि उस प्रतियोगिता से मेरा कुछ लेना-देना नहीं था.. गजब का कंपटीशन भी था और प्रेम भी था हम दोनों मे.
जब वह सिविल जज बनी तो मुझे बड़ा गर्व हुआ था अपनी बहन पर.. उसने जैसे पापा के सपनों को अंजाम देने का बीड़ा उठा लिया था. हमने काम भी लगभग साथ शुरू किया था. उसने मार्च 1983 में न्यायिक सेवा ज्वाइन की थी और मुझे मई में दिल्ली प्रेस में नौकरी मिल गई थी. उस बार भी अव्वल वही थी. हम दोनों ने साथ-साथ लॉ किया था. उसमें भी वह फर्स्ट डिवीजन आई थी. हम दोनों प्रोफेशन से परिवार तक बहुत सी बातें शेयर किया करते थे. दोनों जमकर निंदा रस का भी सुख लेते थे. मुंह बनाकर लोगों की नकल करते. तरह-तरह की ड्रेस डिजाइन में दिमाग खपाते.
पूरे दिन पुस्तक मेले में साथ-साथ घूमते. वह मुझे बहुत भेली कहती थी पर वह बहुत भली थी. आलराउंडर थी. मेरे प्रोफशन में भी उसका गहरा दखल था. हिंदी और अंग्रेजी की बढिया लेखक थी. बढिया नाटककार थी. कॉलेज के दिनों में वह ड्रामे किया करती थी. आप उसे जब कहें वह छलछलाते आंसू निकाल लेती और जब कहें ठठाकर हंस सकती थी. किसी ने बताया कि वह न्यायिक सेवा में भी ड्रामे के लिए ईनाम पा चुकी थी. मुझसे एकदम उलट थी वो. मैं बेहद नटखट तो वो अनुशासित रानी बिटिया. मैं महा नास्तिक टाइप तो वह बेहद स्पिरिचुअल. मैं फैशन की महा शौकीन तो एक उम्र के बाद वह साड़ी में सीमित रहने वाली अफसर.. मेरी छुट्टियों के माने थे देश विदेश और शॅपिंग वगैरह तो उसकी छुटट्यिां सावंरिया जी, सिद्धि विनायक, महाकाल में कटती.
इसी 15 अक्टूबर को अपने देहांत से तीन दिन पहले उसने अपनी बड़ी बेटी सौम्या के बीसवें जन्मदिन पर रूद्राभिषेक कराया था, यह कहकर कि अब हर सदस्य के जन्मदिन पर कराएंगे. मैं आर्थिक तौर पर उतनी समर्थ न होते हुए भी फिजूल खर्च हूं तो वह बेहद मितव्ययी थी.. वह बहुत मितभाषी और कम बोलने वाली तो मैं बेहद हड़बड़िया बड़बड़िया. शायद हमारे प्रोफशन का तकाजा भी था. वह फितरतन जज थी और मैं पत्रकार. अपनी शादी के लिए भी उसने बड़ा वक्त लगाया. पहले वह शादी नहीं करना चाहती और मन बनाया तो न जाने कितने युवक खारिज किए. उसके आदर्श पति की कसौटी पर खरा उतरना किसी के लिए आसान नहीं था. वह खास रूप और गुण तलाशती थी. हम मजाक करते मुस्कान, आंखों की लंबाई- चौड़ाई वगैरह की पैमाइश बता दो तो वैसे ही विज्ञापन दे देंगे.
बचपन से वह कृष्ण की अनन्य भक्त थी. मेरी मौसी अर्चना से कृष्ण की तस्वीर को लेकर अकसर उसका मनमुटाव हो जाता था. हमारा घर तो पूरी नौटंकी था. सुबह से ही शिप्रा कृष्ण बनकर तैयार रहती थी. पीतांबरी पहने मुकुट लगाए और हांथ में पीतल की बासुरी थामे कृष्ण बने घर में किसी कोने में बैठे रहना शिप्रा का प्रिय शगल था. मेरी एक और बहन शेफाली ढेर चूडियां पहने घर में राधा बनी गीत रचती फिरती रहती थी. बहुत हिम्मती थी शिप्रा.. उसे कभी किसी भी प्रकार का डर नहीं लगता था. वह अपनी सेहत का बड़ा खयाल रखती.
मुझे लगता है कि उसने कोई बीस पचीस साल से बदपरहेजी नहीं की होगी. वो रोजाना छह किलोमीटर चलती थी. उसने अपने बंगले में वॉकिंग ट्रेल बनवा रखी थी. दिन में दो बार देर तक शंख बजाती थी. ऐसे संपूर्ण इंसान को उसका भगवान असमय क्यों ले गया. माना उसे भी अच्छे दिन के वास्ते अच्छी शिप्रा चाहिए थी पर उसने ये भी नहीं सोचा कि अब मै किससे लडूंगी… किससे बतियाउंगी… किसे लाड करूंगी. हम पांच बरस से मिले नहीं थे पर हर दूसरे-तीसरे दिन बात होती थी. कभी लगा ही नहीं कि वह मुझसे दूर है. दूर तो अब भी नहीं है वह. उसकी यादें मेरी दौलत है. इरा शिप्रा एक ही नाम हैं. आपस में जुडे और समाहित. पर अफसोस इस बात का है कि शिप्रा ने फिर बाजी मार ली. मौत के मामले में अव्वल रहकर मुझसे अन्याय कर गई. न्यायमूर्ति मेरी प्यारी बहन शिप्रा.
इरा झा
लेखिका इरा झा दिल्ली में नवभारत छत्तीसगढ की ब्यूरो चीफ हैं. उनकी बहन शिप्रा शर्मा नीमच मध्यप्रदेश में डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन्स जज थीं. शिप्रा का 18 अक्तूबर को देहांत हो गया है. इरा झा से संपर्क उनके मोबाइल नंबर 09818566808 के जरिए किया जा सकता है.
पंकज झा
October 26, 2014 at 6:18 pm
उफ़ उफ़ उफ़ … प्रणाम.
प्रेम गुप्ता
October 26, 2014 at 7:45 pm
सादर श्रधान्जली शिप्रा जी को ,