Vinayak Vijeta : दिल्ली में आज दम तोड़ दिया बिहार के गया जिले के पत्रकार शिवशंकर ने… भले ही मशहूर अखबारों में काम करने से कोई पत्रकार अपने को गौरवान्वित महसूस करे पर अखबार में काम करने के वक्त उनके साथ होने वाली परेशानी में कोई अखबार मालिक खड़ा नहीं होता। इन पत्रकारों को असहाय छोड़ कर उन्हें कुत्ते की मौत मरने दिया जाता है। इसके उदाहरण हैं गया के सीनियर रिपोर्टर शिवशंकर, जिन्होंने आज दिल्ली के एक अस्पताल में अपनी एड़ियां रगड़-रगड़ अपनी मौत को स्वीकार कर लिया।
शिवशंकर
शिवशंकर अल्प दिनों के लिए हिन्दुस्तान अखबार के गया जिले के प्रभारी थे और वह अभी वहां वरीय संवाददाता के पद पर अपराध और अन्य विभाग की खबरों को देख रहे थे। किसी भी व्यसन से दूर रहने वाले शिवशंकर की बीते दिनों तबीयत खराब हो गई। उन्हें पहले पटना और बाद में दिल्ली ले जाया गया जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। शिवशंकर हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान को कई सालों से सेवा देते आ रहे हैं पर गंभीर स्थिति में उनके दिल्ली के अस्पताल में दाखिले की खबर के बाबजूद हिन्दुस्तान प्रबंधन द्वारा किसी तरह की आर्थिक मदद की बात तो दूर, कोई उन्हें देखने तक नहीं गया। आज भाई शिवशंकर की तड़प-तड़प कर मौत हो गई। यही है हम पत्रकारों के जीवन की वह तल्ख सच्चाई जहां हम जीते हैं दूसरों के लिए पर वक्त आने पर कोई हमारे साथ नहीं होता। भाई शिवशंकर अब कभी मानव जीवन में जन्म नहीं लेना, लेना भी तो भूलकर पत्रकार नहीं बनना! आपको मेरी श्रद्धाजंलि! अफसोस की आपके जीते जी कभी आपसे सशरीर मुलाकात नहीं हुई फोन पर जब भी बाते हुर्इं आपने सर कहकर पुकारा और मेरे द्वारा मांगी गई हर सूचना को आपने मुझे अपना बड़ा भाई समझ उपलब्ध कराया।
पटना के पत्रकार विनायक विजेता के फेसबुक वॉल से.
Comments on “तड़पकर मर गए पत्रकार शिवशंकर, देखने तक नहीं गया ‘हिन्दुस्तान’ प्रबंधन का कोई अधिकारी”
दुखद। शिवशंकर पहले जनसत्ता में थे और गया में बिहार सरकार के बनाए जनता फ्लैट में बहुत ही सामान्य और साधारण स्थितियों में रहते थे। मैं वर्षों पहले गया में उनके घर गया हूं और मुझे याद है कि वे बहुत ही मिलनसार, सीधे-सरल इंसान थे। बाद में वे जनसत्ता छोड़क हाजीपुर में रहने लगे थे और शायद कोई सरकारी नौकरी करते थे। काफी समय से उनसे संपर्क नहीं हुआ और अचानक उनके निधन की इस खबर ने विचलित कर दिया है।
दैनिक हिन्दुस्तान की बागडोर एक ऐसी औरत के हाथ में है जिसे अपने अलावा किसी और से कोई मतलब नहीं है… उसके लिए काम करने वाले लोगों को वो घास पत्ती के बराबर समझती है जिसकी मौत से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है… न जाने किसनी मौतों की जिम्मेदार है ये…
अब वो जमाने लद गये जब मालिक हाथ जोड़ता था और पत्रकार की सुनी जाती थी अब तो सबकुछ मालिक ही है, वह जो चाहे वही छपता है, उसी की सुनी जाती है। पत्रकार तो एक मजदूर के अलावा कुछ नहीं है जिसकी कहीं सुनवाई नहीं होती और ठीक उसी तरह निकाल कर फेंक दिया जाता है जैसे धोबी का कुत्ता। इसलिए किसी से भी कोई आशा नहीं करना चाहिए। हां एक आशा है जो हमारे संगठन हैं उससे पर पता नहीं वह कितनी मदद कर सकेगा। जैसे -एसोशिएशन आफ जर्नलिस्ट या यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट, पर मुझे नहीं मालूम इसने भी कुछ किया होगा।
Main jab jansatta mai hazaribagh sey stringer tha ab shiv shankar ji gaya sey jansatta sawandatta they..baat 1996 ki hai..aaj unkey itni kam umar mai nidhan ki khabar sey bahot hi dukh hua..Iswar unki aatma ko shanti de aur unkey pariwar ko is dukhh ki gaadi ki samana karney ki shakti de..dukhad khabar
bahut dukhad hai ek patrkaar ka is tarah se dunia se jaana.
Is this the duty of media house.