Yashwant Singh–
दो दिन दो रात इन्हीं के संगत में संगम तीरे आश्रम में पड़ा रहा। स्वामी जी बोले- “ये आध्यात्मिक लाभ लेने की बेला है, बीच बीच में ऐसा किया करिए।”
स्वामी जी के बारे में गुड्डू भाई कहते हैं- ‘बहुत शीतल हैं स्वामी जी। भीतर से ही शीतल हैं। संत मतलब शीतल ही होता है। कुछ भी दिखावट बनावट नहीं!’
स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती लंबे समय तक गुजरात में रहे हैं। ग़ाज़ीपुर से भी इनका कनेक्शन है। विंध्याचल और वृंदावन में आश्रम है। संगम के माघ मेले में सबसे आख़िरी तक टिके रहने वाले संत यहीं हैं।
इनके बारे में कई बातें ऑफ दी रिकॉर्ड कही बतलाई जाती है। कुछ बड़े और ताकतवर लोग इनके शिष्य हैं। लेकिन इनके आश्रम में किसी नेता की कोई तस्वीर नहीं और न ही ख़ुद स्वामी जी कभी किसी की चर्चा करते हैं। गायों के इर्द गिर्द इनका बहुत सारा वक्त गुजरता है। कहते हैं- “ये मुझसे बातें करती हैं, दूर रहता हूँ तो संदेश भेजती हैं, ईश्वर से कनेक्ट में एक माध्यम ये भी बनीं हैं, ये मेरे ख़ुद के होने का विस्तार हैं!”
किसिम किसिम लोगों से मिलने में मुझे बदलाव का एहसास होता है। कुछ लोग बातें तो बहुत बड़ी बड़ी करते हैं लेकिन उनका ओवरऑल व्यक्तित्व बहुत डिप्रेसिव और नकारात्मक ऊर्जा लिए होता है। ऐसे लोगों से दुबारा मिलने की इच्छा नहीं रहती। लेकिन स्वामी ज्ञानानंद का संग साथ सकारात्मक ऊर्जा से भरने वाला था। तड़क भड़क वाले बाबा का चित्र दिमाग़ में बना कर इनसे मिलने जाएँगे तो तुरंत निराश हो सकते हैं। इनका असर धीरे धीरे होता है और जब होता है तो देर तक रहता है।
ये चौंकाते नहीं, बस मंद मंद मुस्काते हैं।
नोएडा लौटने के बाद प्रयागराज यात्रा की आश्रम वाली स्मृतियाँ ही मन में शेष हैं। मतलब स्वामी जी से एक बार फिर मिलने का कार्यक्रम बनाया जा सकता है। अबकी वृंदावन में।
जै जै
यशवंत