भारतीय राजनीति के अमर सिंह और हाफिज सईद से मुलाकात करके चर्चा में आए वेद प्रताप वैदिक में भला क्या समानता हो सकती है। लेकिन मुलाकात पर मचे बवंडर पर वैदिक जिस तरह सफाई दे रहे हैं, उससे मुझे अनायास ही अमर सिंह की याद हो आई। तब भारतीय राजनीति में अमर सिंह का जलवा था। संजय दत्त, जया प्रदा व मनोज तिवारी के साथ एक के बाद एक नामी-गिरामी सितारे समाजवादी पार्टी की शोभा बढ़ाते जा रहे थे। इस पर एक पत्रकार के सवाल के जवाब में अमर सिंह ने कहा था….मेरे व्यक्तित्व में ऐसा आकर्षण है कि मुझसे मिलने वाला पानी बन जाता है, इसके बाद फिर मैं उसे अपने मर्तबान में डाल लेता हूं।
समय के साथ समाजवादी पार्टी में आए तमाम सितारे अपनी दुनिया में लौट गए, और अमर सिंह भी आज राजनीतिक बियावन में भटकने को मजबूर हैं। इसी तरह पाकिस्तान में मोस्ट वांटेंड हाफिज सईद से मुलाकात से उपजे विवाद पर तार्किक और संतोषजनक जवाब देने के बजाय वैदिक चैनलों पर कह रहे हैं कि उनकी फलां-फलां प्रधानमंत्री के साथ पारिवारिक संबंध रहे हैं। फलां-फलां उनका बड़ा सम्मान करते थे। स्व. नरसिंह राव के प्रधानमंत्री काल में तो उनक घर के सामने कैबिनेट मंत्रियों की लाइन लगा करती थी। अब सवाल उठता है कि एक पत्रकार में आखिर ऐसी क्या बात हो सकती है कि उसके घर पर मंत्रियों की लाइन लगे। प्रधानमंत्री उनके साथ ताश खेलें।
लेकिन पत्रकारिता की प्रकृति ही शायद ऐसी है कि राजनेताओं से थोड़ा सम्मान मिलने के बाद ही पत्रकार को शुगर- ब्लड प्रेशर की बीमारी की तरह आत्म-मुग्धता का रोग लग जाता है। जिसकी परिणित अक्सर दुखद ही होती है। पश्चिम बंगाल में 34 साल के कम्युनिस्ट राज के अवसान और ममता बनर्जी के उत्थान के दौर में कई पत्रकार उनके पीछे हो लिए। सत्ता बदली तो उन्हें भी आत्म-मुग्धता की बीमारी ने घेर लिया। हालांकि सत्ता की मेहरबानी से कुछ राज्यसभा तक पहुंचने में भले ही सफल हो गए। लेकिन उनमें से एक अब सारदा कांड में जेल में हैं, जबिक कुछ अन्य सफाई देते फिर रहे हैं।
वैदिक का मामला थोड़ा दूसरे तरीके का है। तमाम बड़े-बड़े सूरमाओं के साथ नजदीकियों का बखान करने के बाद भी शायद उनका अहं तुष्ट नहीं हुआ होगा। और अंतर्राष्ट्रीय बनने के चक्कर में वे पाकिस्तान जाकर हाफिज सईद से मुलाकात करने का दुस्साहस कर बैठे। जिसके परिणाम का शायद उन्हें भी भान नहीं रहा होगा। भैया सीधी सी बात है कि पत्रकार देश व समाज के प्रति प्रतिबद्ध होता है। वैदिक को बताना चाहिए कि सईद से उनकी मुलाकात किस तरह देश और समाज के हित में रही। जनता की यह जानने में कतई दिलचस्पी नहीं होती कि किस पत्रकार की किस-किस के साथ गाढ़ी छनती है या कि राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्ररिप्रेक्ष्य में उसका कितना सम्मान है। लेकिन क्या करें…ये आत्म-मुग्धता का रोग ही ऐसा है।
लेखक तारकेश कुमार ओझा दैनिक जागरण से जुड़े हैं। संपर्कः भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास वार्ड नंबरः09 खड़गपुर ( प शिचम बंगाल) पिनः 721301 जिला प. शिचम मेदिनीपुर। #09434453934
सिकंदर हयात
July 17, 2014 at 5:11 pm
सवाल ये भी उठता हे की वैदिक जी को क्यों इतना चीख चीख कर अपना बायोडेटा बताना पड़ रहा हे इसका कारण आतमुगदता के साथ साथ ये भी हो सकता हे की किस तरह से हमारे यहाँ अंग्रेजी मिडिया तो खेर हिंदी वालो को कुछ समझता ही नहीं हे साथ साथ खुद हिंदी वाले भी किसी हिंदी वाले ( जब तक वो उनके ऊपर कृपा न करे न कर चूका हो ) को कुछ समझते ही नहीं हे हिंदी वालो में भी अंग्रेजी वालो की बड़ाई करने का रोग बढ़ता ही जा रहा हे
सिकंदर हयात
July 17, 2014 at 5:42 pm
वैदिक साहब दुआरा बार बार अपना बाओडेटा बाचने पर उनके खिलाफ सबसे अधिक हल्ला हिंदी वाले ही कर रहे हे की वो आत्मुग्द हे बड़बोले हे ये हे वो हे चलिए हे सवाल ये हे की क्या हिंदी वालो ने तब इतना हल्ला किया था जब टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संपादक खुद को पी एम् के बाद दूसरी कुर्सी का आदमी बताते थे – ? तब तो चू भी नहीं की होगी