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उलटा पड़ा दांव: ट्राई संशोधन विधेयक में कांग्रेस ने करा ली अपनी ही फजीहत

कांग्रेस ने भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) के संशोधन विधेयक के मुद्दे पर मोदी सरकार को राजनीतिक संकट में डालने का दांव चला था। लेकिन, हड़बड़ी में बनाई गई रणनीति कांग्रेस के गले के लिए फांस बनकर रह गई। राजनीतिक रणनीति के अपने पहले दांव में ही कांग्रेस ने अपनी इतनी फजीहत करा ली कि उसका राज्यसभा का सबसे बड़ा हथियार भी भोंथरा साबित होने लगा है। सरकार के राजनीतिक प्रबंधकों ने उस्तादी की चाल चली, जिसके चलते कांग्रेस का पूरा खेल बिगड़ गया। यहां तक कि इस मुद्दे पर यूपीए में बिखराव हो गया। यह बात जग जाहिर हो गई कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व यूपीए के घटक दलों को एकजुट करने में कामयाब नहीं हो पा रहा है। इस पहले निर्णायक राजनीतिक ‘गोल’ से भाजपा रणनीतिकारों के हौसले बढ़ गए हैं। जबकि, राजनीतिक लामबंदी के खेल में कांग्रेस एक हद तक अलग-थलग पड़ती दिखाई पड़ रही है।

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कांग्रेस ने भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) के संशोधन विधेयक के मुद्दे पर मोदी सरकार को राजनीतिक संकट में डालने का दांव चला था। लेकिन, हड़बड़ी में बनाई गई रणनीति कांग्रेस के गले के लिए फांस बनकर रह गई। राजनीतिक रणनीति के अपने पहले दांव में ही कांग्रेस ने अपनी इतनी फजीहत करा ली कि उसका राज्यसभा का सबसे बड़ा हथियार भी भोंथरा साबित होने लगा है। सरकार के राजनीतिक प्रबंधकों ने उस्तादी की चाल चली, जिसके चलते कांग्रेस का पूरा खेल बिगड़ गया। यहां तक कि इस मुद्दे पर यूपीए में बिखराव हो गया। यह बात जग जाहिर हो गई कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व यूपीए के घटक दलों को एकजुट करने में कामयाब नहीं हो पा रहा है। इस पहले निर्णायक राजनीतिक ‘गोल’ से भाजपा रणनीतिकारों के हौसले बढ़ गए हैं। जबकि, राजनीतिक लामबंदी के खेल में कांग्रेस एक हद तक अलग-थलग पड़ती दिखाई पड़ रही है।

दरअसल, 28 मई को केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए ट्राई के पूर्व चेयरमैन नृपेंद्र मिश्रा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रधान सचिव नियुक्त करने का फैसला किया था। इसके लिए अध्यादेश इसलिए लाना पड़ा, क्योंकि, ट्राई के नियमों के तहत इसके चेयरमैन या सदस्यों को रिटायरमेंट के बाद दोबारा सरकारी नियुक्ति नहीं मिल सकती। अलबत्ता यह व्यवस्था जरूर है कि रिटायरमेंट के दो साल बाद ये लोग किसी निजी संस्थान में सेवारत हो सकते हैं। इस कानूनी प्रावधान के कारण ही नृपेंद्र मिश्रा की सीधी नियुक्ति में दिक्कतें आ रही थीं। सरकार ने ऐलान किया था कि जल्दी ही वह संसद में ट्राई संशोधन विधेयक पेश करेगी। शुक्रवार को लोकसभा में जब सरकार ने इस विधेयक को पेश करने की तैयारी की, तो कांग्रेस सहित विपक्ष के कई दलों ने इसके विरोध का ऐलान किया था।
 
सरकार के खिलाफ इस मुद्दे पर घेरेबंदी की अगुवाई कांग्रेस ने की। दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेसी दिग्गजों ने यही कहा कि सरकार ने मनमानी करते हुए ट्राई के पूर्व चेयरमैन को प्रधान सचिव के रूप में नियुक्त कर लिया है। इससे ट्राई की शुचिता को आंच आई है। दिग्विजय सिंह ने सवाल किया था कि क्या सरकार को नृपेंद्र मिश्रा के अलावा कोई और काबिल अधिकारी नहीं मिला? इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ शुरुआती दौर में तृणमूल कांग्रेस, सपा, जदयू, राजद व वाम मोर्चा ने भी विरोध के निशाने साधने शुरू किए थे। तृणमूल कांग्रेस के नेता सौगात राय ने सरकार के प्रस्ताव का विरोध करने की मंशा संसद में जाहिर भी की थी। सपा और बसपा ने भी इस समय तक अपने पत्ते साफ-साफ नहीं खोले थे। ऐसे में, यही समझा जा रहा था कि लोकसभा में बहुमत के चलते एनडीए के सामने कोई संकट तो नहीं आएगा। लेकिन, राज्यसभा में इस मुद्दे पर सरकार की गाड़ी फंस सकती है।
 
उल्लेखनीय है कि उच्च सदन की 243 सीटों में से एनडीए घटकों के पास सिर्फ 56 सीटें हैं। इनमें से भाजपा के पास 43 हैं, तो कांग्रेस के पास अकेले सीटों का आंकड़ा 68 का है। यूपीए के दूसरे सहयोगी दलों के पास इस सदन में 11 सीटें हैं। जिसमें कि शरद पवार के नेतृत्व वाली पार्टी एनसीपी के पास छह सीटें हैं। अन्ना द्रमुक के पास 11, तृणमूल कांग्रेस के पास 12 व बीजद के पास 7 सीटें हैं। ऐसे में, यदि कांग्रेस के साथ एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस, सपा व बीजद जैसे दलों की लामबंदी पक्की बनी रहती, तो सरकार के लिए खासी राजनीतिक दिक्कत खड़ी हो सकती थी।
 
इस राजनीतिक संकट को भांप कर शुक्रवार से ही भाजपा के रणनीतिकार सक्रिय हो गए थे। सूत्रों के अनुसार, संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू और केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस को छोड़कर बाकी दलों के क्षत्रपों से बातचीत का सिलसिला शुरू किया था। अन्ना द्रमुक सुप्रीमो जे. जयललिता और बीजद ने शुरुआती दौर से ही कह दिया था कि इस मुद्दे पर उनकी पार्टियां सरकार के विधेयक का समर्थन करेंगी। यह अलग बात है कि जयललिता की मनुहार करने के लिए रविशंकर को काफी मेहनत करनी पड़ी। इस विधेयक पर चर्चा शुरू होने के पहले ही तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जयललिता ने कह दिया कि कांग्रेस का नेतृत्व ट्राई के पूर्व अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा की नियुक्ति का विरोध कुछ खास कारणों से कर रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि 2जी घोटाले में नृपेंद्र मिश्रा ने बतौर ट्राई प्रमुख तत्कालीन केंद्रीय संचार मंत्री ए. राजा के बचाव का काम नहीं किया था। ऐसे में, कांग्रेसी नेतृत्व उनसे खफा था। इसी का बदला लेने के लिए कांग्रेस उनकी नई नियुक्ति को लेकर इतना बवाल कर रही है। ऐसे में, उनकी पार्टी इस मामले में पूरी तरह से सरकार का साथ देगी।
 
राजनीतिक हल्कों में बसपा सुप्रीमो मायावती को लेकर पहले ही चर्चा थी कि वे मोदी सरकार की खुलकर नाराजगी मोल नहीं लेना चाहेंगी। मायावती ने सोमवार को ही अपने पत्ते खोल दिए। यह कह दिया कि प्रधानमंत्री को यह अधिकार मिलना ही चाहिए कि वे अपने पसंद के किसी शख्स को अपना सचिव बना सकें। इसीलिए, वे इस मुद्दे पर सरकार का विरोध उचित नहीं मानतीं। इस तरह से उन्होंने सरकार के समर्थन की बात कर दी। सपा ने इस मामले में जरूर काफी देर तक संशय की स्थिति बनाए रखी। लेकिन, निर्णायक क्षणों में वो भी विधेयक के पक्ष में खड़ी हो गई। सबसे हैरान करने वाला फैसला तृणमूल कांग्रेस का रहा। शुक्रवार को इस पार्टी ने सरकार के प्रस्ताव का खुलकर विरोध किया था। लेकिन, सोमवार को इस पार्टी के नेता सुदीप बंद्धोपाध्याय ने इस मुद्दे पर एकदम यू-टर्न ले लिया। उन्होंने यही कहा कि प्रधानमंत्री को अपनी मर्जी के अधिकारी को प्रधान सचिव बनाने का अधिकार मिलना ही चाहिए। ऐसे में, उनकी पार्टी सरकार के संशोधन विधेयक का समर्थन करेगी।
 
तृणमूल कांग्रेस के यू-टर्न के बाद ही कांग्रेस रणनीतिकारों के हौसले टूटने लगे। ऐसे में, कांग्रेस ने निर्णायक क्षणों में सदन का बायकॉट कर दिया। यही रणनीति वाम मोर्चा, राजद व जदयू ने अपनाई। इस मामले में कांग्रेस का राजनीतिक खेल सबसे ज्यादा खराब किया शरद पवार ने। वे यूपीए के घटक एनसीपी के सुप्रीमो हैं। उन्होंने लोकसभा में यह विधेयक रखे जाने के पहले ही मुंबई में बयान दिया था कि उनकी पार्टी इस मुद्दे पर सरकार का विरोध नहीं करेगी। क्योंकि, वे विरोध का कोई ठोस औचित्य नहीं समझते। इस तरह से सोमवार को ही लोकसभा में यह विधेयक ध्वनिमत से पास हो गया।
 
तृणमूल कांग्रेस की बदली रणनीति और यूपीए घटकों में मतभेद के चलते कांग्रेस के हौसले पहले ही पस्त होने लगे। सपा-बसपा ने भी सरकार के पक्ष में हांका लगाना शुरू किया, तो मंगलवार को राज्यसभा में भी यह संशोधन विधेयक ध्वनिमत से पास हो गया। कांग्रेस जैसे दलों के पास लामबंदी टूटने के कारण सांकेतिक विरोध दर्ज कराने के अलावा कोई विकल्प बचा ही नहीं था। लोकसभा के चुनाव में एनडीए को भारी जीत मिली है। इससे कांग्रेस के हौसले वैसे ही पस्त चल रहे हैं। उसको उम्मीद की लौ राज्यसभा की रणनीति से ही थी। क्योंकि, इस सदन में एनडीए की सीटों का आंकड़ा कांग्रेस की कुल सीटों से भी काफी कम है। ऐसे में, कांग्रेस रणनीतिकारों को लगता रहा कि वे जब चाहेंगे, तो सरकार के विधेयक राज्यसभा में फंसवा देंगे। लेकिन, पहले दांव में ही कांग्रेस बुरी तरह से फेल हो गई।
 
यह अलग बात है कि अनौपचारिक बातचीत में कांग्रेस के रणनीतिकार यही कहते हैं कि कई दलों के दिग्गज इनकम टैक्स और सीबीआई जैसे ‘हथियारों’ के चलते दबाव में हैं। यूपीए सरकार के दौर में भी भाजपा के नेता खुलकर कहते थे कि सपा और बसपा का नेतृत्व सीबीआई के दबाव के चलते ही केंद्र सरकार का साथ देने को मजबूर हैं। अब इसी तरह की बातें कांग्रेसी, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस, बसपा व सपा के बारे में उछालने लगे हैं। यह जरूर है कि कांग्रेस के नेता इस तरह की बातें औपचारिक रूप से कहने से बच रहे हैं। इस तरह की सुगबुगाहट देखकर सपा और बसपा दोनों ने जमकर सफाई भी दी कि उनके दलों ने किसी दबाव में सरकार का समर्थन नहीं किया। हालांकि, इनकी सफाई को लेकर भी राजनीतिक हल्कों में कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। सबसे ज्यादा चर्चा ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस की बदली रणनीति को लेकर है। क्योंकि, आम तौर पर ममता बनर्जी किसी राजनीतिक दबाव में नहीं आतीं। यूपीए का संग छोड़ने के बाद तृणमूल कांग्रेस, मनमोहन सरकार के विरोध में जमकर रही थी। कहीं भी नहीं लगा कि इस पार्टी का नेतृत्व किसी भी स्तर पर केंद्र के दबाव में है।
 
सवाल है कि आखिर, क्या हुआ कि ममता बनर्जी की पार्टी ने अपना रुख एकदम बदल दिया? राजनीतिक हल्कों में सुगबुगाहट है कि बहुचर्चित सारदा चिट फंड घोटाले में शक की सुई तृणमूल के कई वरिष्ठ नेताओं की ओर घूम रही है। इस मामले की जांच सीबीआई के पास आ गई है। यह घोटाला अरबों रुपए का है। माना जा रहा है कि सारदा चिट फंड मामले के चलते ही तृणमूल नेतृत्व ने मोदी सरकार से सीधे पंगा न लेने की रणनीति तय की है। इस संदर्भ में पार्टी के सांसद सुदीप बंद्धोपाध्याय कहते हैं कि उनकी पार्टी सीबीआई के दबाव में नहीं है। इस तरह की बातें कुछ स्वार्थी तत्व महज बदनाम करने के लिए प्रचारित कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि पार्टी ने तय किया है कि वह केवल विरोध के लिए विरोध नहीं करेगी। जहां भी केंद्र सरकार के कदम सकारात्मक लगेंगे, वहां पार्टी का रुख एकदम सकारात्मक ही रहेगा। क्योंकि, तृणमूल कांग्रेस राजनीतिक सौदेबाजी में विश्वास नहीं करती। लेकिन, सीपीएम के नेता यह प्रचार करने लगे हैं कि सारदा चिटफंड घोटाले के चलते ही तृणमूल का समर्थन सरकार को मिला है। बहरहाल ममता, माया, मुलायम व शरद पवार की बदली रणनीति ने ही कांग्रेस का खेल खराब कर दिया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस के इस ‘फ्लॉप शो’ का असर राजनीतिक रूप से काफी दूरगामी हो सकता है।

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लेखक वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं। इनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।

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