चंद्रभूषण-
ईलॉन मस्क की नजर ट्विटर को अपनी झोली में लाने पर है, इसका अंदाजा इस साल की शुरुआत में ही होने लगा था। इस कंपनी के 5 फीसदी से ज्यादा शेयर उनके पास होने की बात 31 जनवरी 2022 को सार्वजनिक हो गई थी। ट्विटर के निदेशक मंडल में मस्क की हरकतों को लेकर चिंता पहली बार मार्च में दिखाई पड़ी, जब कंपनी में उनकी हिस्सेदारी 9 फीसदी का दायरा पार करती नजर आई। फिर ट्विटर के सीईओ पराग अग्रवाल का ट्वीट आया कि कंपनी की तरफ से ईलॉन मस्क को बोर्ड में आने का न्यौता भेजा गया है। इस न्यौते को मस्क ने जरा भी घास नहीं डाली और ऐसे ट्वीट्स की धार बहा दी, जिनमें ट्विटर की ले-दे की गई थी।
अप्रैल में ही किए गए इन हमलों के तुरंत बाद उनकी ओर से कंपनी खरीद लेने का प्रस्ताव चर्चा में आया और 25 अप्रैल को ट्विटर इंक उनके खाते में चली गई। पिछले कुछ सालों में कई अमेरिकी कंपनियों का नाम भारत में इतनी बुरी तरह लोगों की जुबान पर चढ़ गया है कि एकबारगी इनकी जड़ें अपने देश में ही जमी होने का भ्रम होने लगता है। सुबह होते ही मोबाइल फोन ऑन करना और फेसबुक स्टेटस चेक करना ठेठ देहातों में भी सामान्य दिनचर्या का अंग बन गया है।
अबोली कूक
रही बात ट्विटर की तो उसकी अबोली कूक किसी साइट पर गए बिना भी सुनाई देने लगती है। फोन ऑन होते ही ‘ऐट द रेट’ निशान के साथ किसी सिलेब्रिटी का नाम उसके एक वाहियात से बयान के आधे-अधूरे हिस्से के साथ स्क्रीन पर नमूदार हो जाता है। ज्यादातर लोगों की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं होती, लेकिन ट्विटर की नीली चिड़िया और उस शख्स के नाम की एक झलक दिमाग पर छप ही जाती है। कमोबेश यही हाल अमेरिकी धन्नासेठों का भी है। ईलॉन मस्क की निजी संपत्ति भारत के जीडीपी के दसवें हिस्से के पास पहुंच रही है, लेकिन चर्चा हम उन्हें पड़ोसी मानकर ही किया करते हैं।
मस्क ने 44 अरब डॉलर में ट्विटर कंपनी खरीदी है। रुपयों में लिखने पर यह रकम बहुत बड़ी नजर आने लगेगी- तीन लाख 37 हजार 153 करोड़ रुपये! लेकिन आश्चर्य करना ही है तो इस व्यर्थ की आंकड़ेबाजी के बजाय किसी और बात पर करें। मस्क के मैदान में कूदने तक, यानी मध्य मार्च तक ट्विटर इनकॉरपोरेटेड का मार्केट कैपिटलाइजेशन 28 अरब डॉलर बताया जा रहा था। जाहिर है, डेढ़ गुने से ज्यादा दाम देकर एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी का मालिकाना हासिल करना पहली नजर में कोई सेंस नहीं बनाता।
15 अप्रैल से ही पश्चिमी सोशल मीडिया में बहस चल रही है कि ईलॉन मस्क अगर वाकई ट्विटर खरीद लें तो वे इसमें किस-किस तरह के बदलाव ले आएंगे। कुछ बदलावों के संकेत उन्होंने अपने ट्वीट्स में दे भी रखे हैं। मसलन, एडिट बटन बनाना, ताकि कोई चाहे तो अपना बयान बदल सके। और ओपेन सोर्स कोड के जरिये पारदर्शिता लाना, ताकि किसी को संदेह हो तो वह अपने खाते के अपग्रेड या डाउनग्रेड होने की वजह भी जान सके।
लेकिन इन छोटे-मोटे ग्राहकोचित कामों के लिए दुनिया के सबसे बड़े कारोबारी ने 28 अरब डॉलर की एक कंपनी 44 अरब डॉलर में खरीद ली, ऐसा मानने में कोई समझदारी नहीं है। यह सही है कि ‘न्यू इकॉनमी’ के दो और महागुरुओं बिल गेट्स और स्टीव जॉब्स की ही तरह ईलॉन मस्क भी कोई टेक्नॉलजी फ्रीक, कोई सिद्ध वैज्ञानिक, इंजीनियर या गणितज्ञ नहीं हैं। उनके पास फिजिक्स और इकनॉमिक्स की ग्रैजुएशन डिग्री जरूर है, लेकिन जिन कारोबारों पर उनकी मोहर है, उसमें इन शास्त्रों की कोई खास भूमिका नहीं है।
कितने हैट
फेसबुक (फिलहाल मेटा) के प्रणेता मार्क जकरबर्ग इस मामले में अलग हैं। उन्होंने गणित में उच्च स्तर की पढ़ाई की है और कंपनियों का जुड़ाव सीधे अपने संभावित ग्राहकों से बनाने के लिए उनकी लैंग्वेज-बेस्ड प्रोफाइलिंग का अल्गॉरिथ्म विकसित करके बाकायदा उन्होंने तकनीक का एक नया क्षेत्र खोला था। उनके उलट ईलॉन मस्क की गति बिल्कुल अलग-अलग क्षेत्रों में दिखाई देती रही है, जिनके बीच कोई आपसी रिश्ता नहीं है।
स्पेसएक्स की तरफ से देखने पर वे हमें रॉकेट साइंटिस्ट लग सकते हैं, टेस्ला के पास से देखने पर बैट्री डिजाइनर या ऑटोमोबील इंजीनियर। क्या पता, कुछ समय बाद ट्विटर से जोड़कर उनका परिचय सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजिस्ट की तरह दिया जाने लगे। लेकिन ऐसा तभी हो पाएगा, जब ट्विटर के प्रोफाइल को वे अमेरिका की बड़ी सॉफ्टवेयर या इंटरनेट बेस्ड कंपनियों के आस-पास ले जा सकें।
ध्यान रहे, माइक्रोसॉफ्ट और अल्फाबेट (गूगल) अभी 2000 अरब डॉलर मार्केट कैप के आसपास मंडरा रही कंपनियां हैं, जबकि अमेजन की गति डेढ़ हजार और मेटा (फेसबुक) की एक हजार अरब डॉलर के आसपास मानी जाती है। इनके सामने डेढ़ गुनी कीमत हासिल करने के बावजूद 44 अरब डॉलर के मार्केट कैपिटलाइजेशन पर सिमटी ट्विटर कंपनी भला क्या मायने रखती है? इसमें कोई शक नहीं कि लोगों के दिमाग में गूगल, फेसबुक और ट्विटर का कद एक जैसा ही है। बल्कि ट्विटर का हल्ला बाकियों से भी ज्यादा है।
गंदा है, पर धंधा है
फिर इसकी माली हैसियत छोटी क्यों है, मस्क की नजर इस बात पर है। यहां दुनिया के आम नागरिक के रूप में हमारी चिंता कारोबार और मुनाफे से हटकर होनी चाहिए। एलन मस्क ने अपनी कंपनी स्पेस एक्स के जरिये जब स्पेस ट्रांसपोर्ट के कारोबार में कदम रखा तो मंगल पर बस्ती बसाने और धरती के ऊपर तारों भरे आकाश जैसा ही सैटेलाइटों का एक नया चंदोवा तान देने जैसे सपनों की झड़ी लगा दी। लेकिन हकीकत यह है कि पिछले पांच-सात वर्षों में जितना अंतरिक्ष कचरा स्पेस एक्स के जरिये जमा हुआ है, उतना उससे पहले का सारा समय मिलाकर भी नहीं दर्ज किया गया था।
टेस्ला की बैट्री चालित गाड़ियों को ग्लोबल वॉर्मिंग का जवाब बताया जा रहा है, लेकिन इनमें इस्तेमाल होने वाली निकिल धातु के गहरे समुद्रों से उत्खनन का जो रास्ता चोरी-छिपे यह कंपनी बना रही है, वह न केवल जैव विविधता के लिए खतरनाक है, बल्कि इसके चलते अगले कुछ सालों में मीथेन दुनिया के लिए कार्बन डायॉक्साइड से भी बड़ी समस्या हो सकती है। ईलॉन मस्क के लिए धंधे के सामने नैतिकता का कभी कोई मतलब नहीं रहा, लिहाजा सोशल मीडिया में उनकी एंट्री भी जल्द ही कुछ बड़े कारनामों का सबब बन सकती है।
अमित चतुर्वेदी-
इंडिया से एक आदमी अमेरिका जाता है और वो माइक्रसॉफ़्ट का चीफ़ बन जाता है, एक आदमी गूगल का CEO बन जाता है, एक आदमी अडोबी का CEO बन जाता है और एक आदमी IBM का CEO बन जाता है।
Forbes की फ़ॉर्चून 500 कंपनीज में 30% CEOs इंडिया से हैं…
ऐसे ही साउथ अफ़्रीका से एक आदमी अमेरिका जाता है और वो अमेरिका जाकर न केवल अमेरिका का सबसे बड़ा आदमी बनता है बल्कि वो दुनिया का सबसे बड़ा आदमी बन जाता है, अमेरिका सरकार का सबसे बड़ा क्रिटिक होकर भी वो दुनिया में फ़्री स्पीच का सबसे बड़ा प्लेटफ़ॉर्म ख़रीदता है, ऐसा कर पाता है, वो ऐसा कर पाता है क्यूँकि अमेरिका दुनिया भर से आयी प्रतिभाओं का सम्मान करता है, वो सब नागरिकों को और यहाँ तक कि विदेशों से वीज़ा लेकर काम करने आए लोगों को भी अपने देश की तरक़्क़ी का भागीदार मानता है, उन्हें आगे बढ़ने का मौक़ा देता है।
और ऐसे समय में हम क्या कर रहे हैं? हम यानि दुनिया के सबसे यंग पॉप्युलेशन वाले देश अपने युवाओं को रोज़गार तो दे नहीं रहे बल्कि उन्हें एक दूसरे के कान में अज़ान और हनुमान चालीसा चिल्लाने के काम पर लगाए हुए हैं…
जब इस दौर का इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें ये भी लिखा जाएगा कि जब दुनिया के लोग तरक़्क़ी कर रहे थे तब भारत के 90 करोड़ लोग खाने के लिए मुफ़्त सरकारी 5 किलो अनाज पर पल कर धर्म बचा रहे थे।