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उपेंद्र राय की सहारा समूह में वापसी, पढ़ें सर्कुलर

उपेंद्र राय की सहारा समूह के मीडिया वेंचर में वापसी हो गई है. उपेंद्र राय का पद सीनियर एडवाइजर का बताया गया है लेकिन उनकी प्रोफाइल सीईओ और एडिटर इन चीफ वाली ही है. उन्हें प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों मीडिया के संपादकीय, वित्तीय, एचआर आदि समस्त विभागों का अधिकार दिया गया है.

सर्कुलर में कहा गया है कि गौतम सरकार अपने पद पर बने रहेंगे और वे अब उपेंद्र राय को रिपोर्ट करेंगे. सुमित राय मीडिया बिजनेस के गार्जियन बने रहेंगे और उन्हें उपेंद्र राय रिपोर्ट करेंगे. नीचे दिए गए सर्कुलर में आप अन्य सारी जानकारियां भी पढ़ सकते हैं.

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3 Comments

3 Comments

  1. Anupama Singh

    September 28, 2019 at 11:51 pm

    घर वापसी के लिए बहुत- बहुत बधाई सर

  2. Tarkeshwar rai

    October 3, 2019 at 6:16 am

    सत्य की जीत तो होनी ही थी। बड़े भाई को मुबारकबाद।

  3. Ajazur Rahman

    October 3, 2019 at 9:20 pm

    मैं गवाह रहा हूं… सबसे पहले तो माननीय सुब्रत राय सहारा श्री जी को उनके वैचारिक श्रेष्ठता के लिए धन्यवाद कहना चाहूंगा और उस भावना को सलाम करूंगा जिसके तहत उन्होंने एक निजी कॉर्पोरेट हाउस होने के बावजूद भारतीय संविधान के एक-एक मूल्य और आदर्शों को समूचे सहारा कैंपस का मूल आदर्श और मुल्य सखती से लागू करते हुए सभी ‘कर्मयोगियों’ से उसका पान भी करवाया है। कई बार लिख चुका हूं और एक बार फिर लिख रहा हूं कि हम अपने एक छोटे से कमरे में भी अपनी पसंद की तस्वीरें, पेंटिंग और दूसरी सामान सजाते हैं। लेकिन सहारा के कैबिन में भी आप अपनी स्वेच्छा से अपनी पसंद की कोई भी पेंटिंग लगाने के लिए स्वतंत्र हैं, नमाज़ पढ़ने के लिए ‘जा-ए-नमाज़ और बधना (खास लोटा)’ रख कर सामूहिक तौर पर रोज़ा-नमाज़, इफ्तार तरावीह सबकुछ कर सकते हैं। हालांकि, नोएडा सहारा के मेन गेट पर ही बने मंदिर से धूप की ख़ूशबू दिन भर आती रहती है। किसी व्यक्तित्व, उसकी सोच और विचारों का अंदाज़ा लगाने के लिए इतना ही काफी है।
    मैं गवाह रहा हूं, आदर्णीय श्री उपेन्द्र राय की सोच, उनके विचार और कार्यशैली का भी…श्री उपेन्द्र राय जितने युवा दिखते हैं उससे कहीं ज़्यादा युवा हैं उनके विचार… ईमानदारी तो जैसे उनकी प्रकृति है।
    एक बार का वाक़्या है, आलमी सहारा उर्दू की ज़िम्मेदारी मेरे पास थी और नेशनल कॉउन्सिल फॉर प्रोमोशन ऑफ उर्दू लैग्विज ने अपने क्रमचारियों के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया था जिसमें टीवी चैनल्स के स्टूडियो, न्यूज़रूम और पीसीआर का भ्रमण भी शामिल था। इसके लिए एक्सपर्ट के रूप में एक नाम मेरा भी था। लिहाज़ा, एनसीपीयूएल की टीम जब सहारा कैंपस आई तो उसने मुझे एक लिफाफा मेरे नाम का मुझे थमाया। फुर्सत मिलने पर जब मैंने उसे खोल कर देखा तो उसमें कुछ कैश पैसे थे। मैं डर गया और फौरन उसकी जानकारी अपने मीडिया हेड श्री उपेन्द्र राय को फोन पर दी। मैं जितना घबराया हुआ था उससे भी कहीं अधिक तिव्रता से एक मीडिया हेड के तौर पर श्री उपेन्द्र राय ने मुझे सुझाव दिया कि ‘आप तुरन्त उसे सहारा सहायता कोष में आज ही तारीख़ में जमा कराकर रसीद प्राप्त कर लें’ मैं सब काम छोड़ कर सबसे पहले ठीक वैसे ही किया।
    इसके अलावा अनगिनत नाम ऐसे सिर्फ मैं जानता हूं जिनको जब कहीं कोई मदद नहीं मिली तो श्री उपेन्द्र राय ने उनके इलाज, नौकरी और परिवार के जीविकोपार्जन की व्यवस्था कराई है।
    मैं श्री उपेन्द्र राय को उनकी 35-36 साल की उम्र से जानता हूं। आश्चर्य होता है कि इतना सौम्य, शालीन, शांत और मानवीय श्रेष्ठता के मुल्यों और आदर्शों के सभी नीति और व्यवहार का तलीनता से उपयोग करने वाले एक भारतीय युवा से आज के संसार में कोई समाज और उसकी व्यवस्था और कितनी उम्मीदें कर सकता है। ऐसे में जब वह युवा ना तो किसी बड़े रानीतिक या उद्योगपति घराने का राजकुमार है ना ही किसी राजतंत्र का प्रतिनिधि।
    मैं सबसे बड़ा प्रशंसक उनके पत्रकारिता की समझ का भी हूं। 2009 में पहली और दूसरी मीटींग में ही मैंने अपनी सोच के उस ढर्रे को त्याग दिया, जिसे बरसों की शैक्षणिक तपस्या और उसके अनुभवों से अपनाया था। खासकर उर्दू पत्रकारिता की बात करें तो भारतीय संदर्भ में किसी निजी उर्दू दैनिक की लोकप्रियता का मानदंड यह है कि जुमा के ख़ुतबे में ईमाम मिमबर पर खड़ा होकर उसका संपादकीय पढ़कर सुनाए।
    लेकिन, जब यही विचार यूं ही श्री उपेन्द्र राय से साझा कीं तो उनका त्वरित सवाल था कि फिर तो उसमें परोसी जाने वाली सूचना ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। क्या इतने लोकप्रिय उर्दू दैनिक में परोसी जाने वाली सूचाओं को क्रॉस चेक करने का कोई तरीका है।
    श्री उपेन्द्र राय के निर्देश ने भारत में उर्दू पत्रकारिता का मेरा नज़रिया ही बदल डाला और अब मैं राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय खबरें, कला, विज्ञान, संस्कृति, समाज से लेकर ह्यूमनइंट्रेस्ट की ख़बरों के साथ-साथ संपाकीय और संपादक को लिखे गए प्रकाशित पत्रों तक की स्कैनिंग को अपना फर्ज़ समझ लिया। इससे पैदा हुए हर सवाल को जब देशज आधुनिकता की कसौटी पर आंकने की कोशिश की तो जो अनुभव हुआ अद्भुत है।

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