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हिंदी को हृदय और पेट की भाषा बनाना उसके बहुआयामी विकास की कुंजी है: मृदुला सिन्हा

Vaishwik Hindi Sammelan-2014-2

वर्तमान समय में जो देश का माहौल है उसमें हिंदी के विकास के लिए निराशा की कोई बात नहीं है। राजभाषा हिंदी को प्रतिष्ठा अवश्य मिलेगी। बस जरुरत है कि सभी लोग अपने-अपने स्तर पर प्रयास करें। हिंदी भाषा मां के दूध की तरह है जो पालन पोषण करने के साथ-साथ संस्कार भी डालती है। यह बातें वरिष्ठ साहित्यकार व गोवा की नवनियुक्त राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने कहीं। वे मुंबई के सर सोराबजी पोचखानावाला बैंकर प्रशिक्षण महाविद्यालय, विलेपार्ले में आयोजित वैश्विक हिंदी सम्मेलन-2014 के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहीं थीं। राज्यपाल महोदया ने कहा कि इस समय हिंदी को हृदय और पेट की भाषा बनाने की जरुरत है और यही हिंदी के बहुआयामी विकास की कुंजी है।

Vaishwik Hindi Sammelan-2014-2

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वर्तमान समय में जो देश का माहौल है उसमें हिंदी के विकास के लिए निराशा की कोई बात नहीं है। राजभाषा हिंदी को प्रतिष्ठा अवश्य मिलेगी। बस जरुरत है कि सभी लोग अपने-अपने स्तर पर प्रयास करें। हिंदी भाषा मां के दूध की तरह है जो पालन पोषण करने के साथ-साथ संस्कार भी डालती है। यह बातें वरिष्ठ साहित्यकार व गोवा की नवनियुक्त राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने कहीं। वे मुंबई के सर सोराबजी पोचखानावाला बैंकर प्रशिक्षण महाविद्यालय, विलेपार्ले में आयोजित वैश्विक हिंदी सम्मेलन-2014 के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहीं थीं। राज्यपाल महोदया ने कहा कि इस समय हिंदी को हृदय और पेट की भाषा बनाने की जरुरत है और यही हिंदी के बहुआयामी विकास की कुंजी है।

गोवा की मुख्य सूचना आयुक्त लीना मेहेंदले ने कहा कि अंग्रेजी, हिंदी, चीनी, अरबी व स्पैनिश दुनिया की पांच सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाएं हैं। जब हिंदी पांच भाषाओं में शामिल है तो उसे संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनवाना समय की मांग है। उन्होंने कहा कि हिंदी का किसी अन्य भाषा से कोई कटुता, कोई विरोध नहीं है क्योंकि सभी भारतीय भाषाएं हाथ में हाथ डालकर चलने वाली सहेलियों की तरह हैं।

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वैश्विक हिंदी सम्मेलन संस्था, हिंदुस्तानी प्रचार सभा तथा सैंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस एक दिवसीय सम्मेलन का प्रारंभ मंचासीन अतिथियों के दीप प्रज्जवलन से हुआ। तत्पश्चात् सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के महाप्रबंधक पी.जे. कुमार ने अपना स्वागत भाषण दिया। वैश्विक हिंदी सम्मेलन संस्था के अध्यक्ष डॉ. एमएल गुप्ता ने सम्मेलन का प्रस्ताव रखते हुए कहा कि हिंदी व भारतीय भाषाओं का प्रयोग व प्रसार बढ़ाने के लिए भाषा–टैक्नोलोजी को अपनाते हुए शिक्षा, साहित्य, मीडिया, मनोरंजन, व्यवसाय व उद्योग जगत सहित सभी देशवासियों को साथ आना होगा। सभी के सहयोग से ही हिंदी की गाड़ी आगे बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि सम्मेलन का उद्देश्य हिंदी तथा भारतीय भाषाओं के प्रयोग व प्रसार के कार्य को आगे बढ़ाने के उपायों पर विचार-विमर्श करना है। इस अवसर पर सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के फील्ड महाप्रबंधक राजकिरण राय, हिंदी शिक्षा संघ (दक्षिण अफ्रीका) की अध्यक्ष मालती रामबली, हिंदुस्तानी प्रचार सभा के सचिव फिरोज पैच आदि ने भी अपने विचार रखे। सम्मेलन में महाराष्ट्र के अपर पुलिस महानिदेशक एस.पी.गुप्ता तथा भारत संचार निगम लि. (महाराष्ट्र व गोवा) के मुख्य महाप्रबंधक एमके जैन भी उपस्थित थे। उद्घाटन सत्र का संचालन आकाशवाणी मुंबई के उद्घोषक आनंद सिंह ने किया।

सम्मेलन के प्रथम सत्र में प्रभा साक्षी समाचार पोर्टल के संपादक व प्रौद्योगिविद बालेंदु शर्मा दाधीच, प्रौद्योगिकीविद् नरेन्द्र नायक तथा हिंदी सेवी प्रवीण जैन ने “भाषा-प्रौद्योगिकी एवं जन-सूचना” पर अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए। द्वितीय सत्र में “शिक्षा व रोजगार में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाएं” पर बाल विश्वविद्यालय, गांधी नगर (गुजरात) के कुलपति हर्षद शाह ने कहा कि हिंदी देश को जोड़ने वाली भाषा है। हिंदी सेवी एवं पूर्व उपजिलाधीश विजय लक्ष्मी जैन ने मातृभाषा को बढ़ावा देने की मांग करते हुए कहा कि अंग्रेजी को एक विषय के रूप में पढ़ना चाहिए, माध्यम के रूप में नहीं। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव अतुल कोठारी ने कहा कि हिंदी व अन्य भारतीय भाषाएं शिक्षा व रोजगार में अभूतपूर्व काम कर रही हैं।

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सम्मेलन के मुख्य समन्वयक संजीव निगम के संचालन में “मीडिया व मनोरंजन में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाएं” पर आयोजित तृतीय सत्र में दोपहर का सामना के कार्यकारी संपादक प्रेम शुक्ल ने कहा कि मीडिया में आज सूचना, अपराध व मनोरंजन का बोलबाला है उसका प्रमुख कारक श्रोता व दर्शक है। उन्होने कहा कि हिंदी टीवी धारावाहिकों के कारण हिंदी का विकास काफी हुआ है। दरअसल मनोरंजन ने हिंदी के प्रचार, प्रसार, विकास की स्वीकार्यता में अदभुत कार्य किया है। हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव ने हलके फुलके अंदाज में लोगों को हिंदी का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि हिंदी को जितना सरल और सुगम बनाया जाएगा उतना ही उसका विकास होगा और आम आदमी उसका प्रयोग करना पसंद करेंगे। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि इन दिनों मीडिया में जो हिंदी छायी हुई है वो अत्यंत प्रभावी तरीके से लोगों को प्रभावित कर रही है और अपनी ओर खींच रही है। मीडिया और इंटरटेनमेंट की वजह इस हिंदी का स्वरूप अब पूरी तरह से वैश्विक हो गया है।

“विश्व में हिंदी का प्रयोग व प्रसार” पर आयोजित चतुर्थ सत्र में दक्षिण अफ्रीका से पधारी हिंदी शिक्षा संघ की अध्यक्षा मालती रामबली, उपाध्यक्ष प्रो. उषा शुक्ला, समन्वयक डॉ. वीना लक्ष्मण तथा एसएनडीटी विश्वविद्यालय की पूर्व निदेशक व साहित्यकार डॉ. माधुरी छेड़ा ने अपने विचार रखे। सत्र का संचालन करते हुए “प्रवासी संसार” पत्रिका के संपादक राकेश पांडे ने कहा कि विदेशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार बड़ी तेजी से हो रहा है। इस संदर्भ में हमें दो बातों का ध्यान रखना होगा-पहला हिंदी का विकास कैसे हो और दूसरा विकास की हिंदी कैसी हो। चर्चा के मंच पर भारतीय रिजर्व बैंक के महाप्रबंधक (राजभाषा) डॉ. रमाकांत गुप्ता, हिंदी शिक्षण मंडल के अध्यक्ष डॉ. एसपी दुबे भी उपस्थित थे।

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इस अवसर पर मुख्य अतिथि के हाथों हिंदी शिक्षा संघ (दक्षिण अफ्रीका) की अध्यक्षा मालती रामबली को वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान दिया गया जबकि भारतीय भाषा प्रौद्योगिकी सम्मान प्रभा साक्षी समाचार पोर्टल के संपादक बालेंदु शर्मा दाधीच को दिया गया। इसी प्रकार भारतीय भाषा सक्रिय-सेवा सम्मान प्रवीण जैन तथा आजीवन हिंदी साहित्य सेवा सम्मान वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुधाकर मिश्र को प्रदान किया गया।

इस अवसर पर अतुल अग्रवाल लिखित पुस्तक “बैल का दूध” तथा महावीर प्रसाद शर्मा द्वारा संपादित मासिक पत्रिका “मानव निर्माण” का विमोचन किया गया। साथ ही, संस्थाओं तथा कार्यालयों की गृह पत्रिकाओं की ई-प्रदर्शनी भी प्रस्तुत की गई।

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कार्यक्रम हेतु सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के मुख्य प्रबंधक (राजभाषा) सुधीर पाठक, वैश्विक हिंदी सम्मेलन के सचिव व हिंदी मीडिया पोर्टल के संपादक चंद्रकांत जोशी, संयुक्त सचिव कृष्णमोहन मिश्र तथा विधि जैन, उप सचिव सुस्मिता भट्टाचार्य, मनोरंजन जगत के संयोजक प्रदीप गुप्ता, समन्वयक राजू ठक्कर, पत्रकारिता कोश के संपादक व सम्मेलन के मीडिया समन्वयक आफताब आलम, डॉ. कामिनी गुप्ता, दोपहर का सामना के पत्रकार राजेश विक्रांत, दैनिक यशोभूमि के पत्रकार अजीत राय आदि ने प्रमुख रूप से अपना सक्रिय योगदान दिया।

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