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जब इस तस्वीर और खबर से नाराज डाक्टरों ने संपादक विनोद शुक्ल की गाड़ी में तोड़फोड़ शुरू कर दी

Daya Sagar : करीब पन्द्रह साल हो गए। लखनऊ में वह रिपोर्टिंग के शुरूआती दिन थे। तब वह किंग जार्ज मेडिकल कालेज हुआ करता था। हम गांधी वार्ड को नर्क का द्वार कहते थे। वार्ड के मुख्य द्वार से निकले से पहले आपको अक्सर थोड़ा ठहरना पड़ता था क्योंकि वहां से हर दस मिनट में किसी मरीज की लाश बाहर निकलती दिखती थी। मुझे गांधी वार्ड पर एक लाइव रिपोर्ट तैयार करनी थी। हमारे फोटोग्राफर संदीप रस्तोगी ने भी तब पत्रकारिता की शुरूआत ही की थी। हम दोनों अंदर पहुंचे। रेजिडेंट डाक्टर मरीजों को देख रहे थे। और तभी हमसे बात करते-करते एक रेजिटेंट ने मरीज के बेड पर अपना एक पांव रख दिया। संदीप से तब मेरी सिर्फ आंखों आंखों में बात हुई थी। सीधे फोटो हो नहीं सकती थी। सो वह आगे बढ़ गया और दूसरी तरफ पड़े मरीजों की फोटो खींचने लगा। और वही से घूम कर पीछे से उसने यह तस्वीर ‌क्लिक की।

Daya Sagar : करीब पन्द्रह साल हो गए। लखनऊ में वह रिपोर्टिंग के शुरूआती दिन थे। तब वह किंग जार्ज मेडिकल कालेज हुआ करता था। हम गांधी वार्ड को नर्क का द्वार कहते थे। वार्ड के मुख्य द्वार से निकले से पहले आपको अक्सर थोड़ा ठहरना पड़ता था क्योंकि वहां से हर दस मिनट में किसी मरीज की लाश बाहर निकलती दिखती थी। मुझे गांधी वार्ड पर एक लाइव रिपोर्ट तैयार करनी थी। हमारे फोटोग्राफर संदीप रस्तोगी ने भी तब पत्रकारिता की शुरूआत ही की थी। हम दोनों अंदर पहुंचे। रेजिडेंट डाक्टर मरीजों को देख रहे थे। और तभी हमसे बात करते-करते एक रेजिटेंट ने मरीज के बेड पर अपना एक पांव रख दिया। संदीप से तब मेरी सिर्फ आंखों आंखों में बात हुई थी। सीधे फोटो हो नहीं सकती थी। सो वह आगे बढ़ गया और दूसरी तरफ पड़े मरीजों की फोटो खींचने लगा। और वही से घूम कर पीछे से उसने यह तस्वीर ‌क्लिक की।

‘डॉक्टरी पढाई का पहला कदम मरीज के बिस्तर पर’, दैनिक जगरण में इस हैडिंग से खबर छपी तो अगले दिन हंगामा मच गया। किंग जार्ज के रेजिडेंट डाक्टरों ने तो जागरण पर हल्ला बोलने की तैयारी कर ली थी। इत्तेफाक से हमारे तेजतर्रार संपादक विनोद शुक्ल को किंग जार्ज मेडिकल कालेज जाना था। उनकी कार पर कहीं जागरण का स्टीकर लगा था। डाक्टरों ने गाड़ी में तोड़फोड़ शुरू कर दी। किसी तरह वह बच कर वापस आए। हमे लगा कि अब गए काम से।

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विनोद जी के गुस्से से हम सब वाकिफ थे। संदीप तो बेतरह डर गया था। मुझे अपने कमरे में बुलाया। बोले-तुम लोग सुधरोगे नहीं। फिर खूब जोर से हंसे। बोले- मुझे ऐसे ही लड़के चाहिए। अपने जैसे दो तीन लड़के और ले आओ। संदीप ने १९९९ की ये फोटो आज फेसबुक पर शेयर की तो पुरानी कई यादें ताजा हो गई। संदीप इस फोटो के लिए १५ साल बाद एक बार फिर बधाई।

अमर उजाला, शिमला के संपादक दयाशंकर शुक्ल ‘सागर’ के फेसबुक वॉल से.

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