Vishnu Nagar : मुनव्वर राणा साहब, आपने तो पूरी लेखक बिरादरी को शर्मिंदा कर दिया। किसी ने आपका गला नहीं पकड़ा था कि आप साहित्य अकादमी सम्मान जाइए और लौटाइए। आपने लौटाने से मना करते-करते आखिर बड़े नाटकीय ढँग से एक टीवी चैनल पर आकर उसे लौटा दिया। फिर आपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का समय माँगा और प्रधानमंत्री कार्यालय से कहा कि पुरस्कार लौटानेवाले और लेखकों को भी मिलने के लिए बुलाया जाए। चलो यहाँ तक भी ठीक था। हालांकि प्रधानमंत्री से मिलना ही था आपको तो नाटक रचने से पहले मिल लेते। चलो यहाँ तक भी मान लेते हैं कि कोई बात नहीं, चलता है।
अब आप कह रहे हैं ‘मोदी मेरे बड़े भाई जैसे हैं, मैं उनका बहुत सम्मान करता हूँ। इस हैसियत से यदि वह कहेंगे तौ मैं उनका जूता भी उठा लूँगा। मोदी कहेंगे तो अवार्ड भी वापिस ले लूँगा।’
राणा साहब एक तो मोदीजी कब से और किस वजह से आपके बड़े भाई जैसे हो गए। जबसे गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तबसे ही बड़े भैया हैं या कि प्रधानमंत्री बनने के बाद हो गए हैं। इससे पहले तो मेरा ख्याल है कि आपको उनका नाम तक न सुनाई पड़ा होगा।
तो राणा साहब अगर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बनने वाले आपके भाई जैसे हो जाते हैं तो बंधु बड़े भैया से पहले ही पूछ लेते कि भैया घर की बात है, जरा यह बताना कि अवार्ड वापिस करूँ या नहीं करूँ। जाहिर है, बड़े भैया नेक सलाह ही देते और वापिस करने से मना कर देते और आप वापिस न करते। मामला वहीं खत्म हो जाता। घर की बात घर में ही रह जाती। आपने उनसे पूछा नहीं और आपने अवार्ड वापिस कर दिया।
इस तरह पहले तो बड़े भैया का आपने अपमान किया। अब आपको उन्हीं भैया की याद आ गई है। वाह मुनव्वर भाई वाह। और, ये मोदी कहेंगे तो उनका जूता भी उठा लूँगा, यह कौन-सी और कहाँ की भाषा है? राणाजी, यह मध्य युग नहीं है, यह आधुनिक, लोकतांत्रिक जमाना है। इसमें कोई शायर-कवि इस तरह की बात करे तो आपको तो खैर नहीं आएगी, मगर हम छोटे-मोटे लेखकों को शर्म आ जाती है कि हमारे जमाने में भी कैसी-कैसी मानसिकत के लोग शायर बने हैं, लेखक बने हैं। शर्मनाक, भाई शर्मनाक।
जाने-माने कवि और पत्रकार विष्णु नागर के फेसबुक वॉल से.