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सुख-दुख

बगैर संस्था बने या बिना किसी संस्था के सहयोग के, किसी घटना के जटिल पक्षों को रिपोर्ट कर पाना मुश्किल : रवीश कुमार

रवीश कुमार-

क्या किसी भी शहर या गाँव की, कंपनी या कारोबार की रिपोर्ट मैं कर सकता हूँ? कई लोग हमें अपनी व्यक्तिगत परेशानी के बारे में लिखते हैं। वे मानसिक रुप से टूट चुके होते हैं। आर्थिक तंगी से भी घिरे होते हैं। अकेला महसूस करते हैं। सामाजिक रिश्तों में तनाव होता है। मैं समझता हूं। कई बार लोग लिखते हैं कि आत्महत्या करने का मन करता है। आप हमसे बात करें।

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हम लोग हज़ारों मैसेज से गुज़रते हैं। कई बार दिख कर भी नहीं दिखता है। इस तरह से लिखना सही नहीं है। अच्छी बात है कि आप हमसे उम्मीद करते हैं लेकिन ऐसे वक्त में हम आपके काम नहीं आ सकते हैं। यह उम्मीद करना भी ज़्यादा है। लेकिन आपने सही किया या ग़लत किया इसे लेकर जज भी नहीं करेंगे। मैसेज कर दिया तो कर दिया। मानसिक परेशानी के वक्त किसी न किसी से संपर्क करना चाहिए। लेकिन उनसे करना चाहिए जो इस विषय के ज्ञाता है तो फिर फायदा भी है।

हम लोग कामचलाऊ बातें ही बोलना जानते हैं। घबराना नहीं है। चीज़ें ठीक हो जाएंगी। लेकिन आप जिस हालात में हैं वैसे में किसी विशेषज्ञ की ज़रूरत है। और आपको बिना किसी संकोच के ऐसे डॉक्टर के पास जाना चाहिए। बहुत से लोग ठीक होते हैं। वापस शानदार ज़िंदगी जीते हैं। हाल ही में मैंसे कई केस से गुज़रा हूं। पता चला है कि लोग मनोचिकित्सक तक पहुंचने में काफी देर कर देते हैं। परिवार समाज की चिन्ता न करें। जैसे बुखार होने पर आप डाक्टर के पास जाते हैं वैसे ही मानसिक रुप से परेशान होने पर जाना चाहिए।

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भारत सरकार ने किरण नाम से एक हेल्पलाइन लांच की है. इसका नंबर है 1800-599-0019. दिल्ली में एक और संस्था है संजीवनी। इसका नंबर है 011-40769002, इंटरनेट पर ऐसी कई संस्थाओं की जानकारी मिल जाएगी। बेझिझक मनोचिकित्सक की सेवाएं लें। आप पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं। सामने आई मुसीबत का सामना कर सकते हैं। अच्छा होगा।

एक और बात।कई लोग ज़मीन के विवाद को लेकर लिखते हैं। किसी की भी ज़मीन पर दूसरा दखल कर ले उसे बुरा लगेगा ही। उसकी मानसिक परेशानी की कल्पना नहीं की जा सकती है। वह व्यक्ति कितना अपमानित और अकेला महसूस करता होगा। इसमें भी बुरी बात नहीं है कि आप हमसे संपर्क करते हैं। आपकी जगह मैं होता तो मैं भी यही करता। भारत में सिस्टम संपर्क से चलता है। अपने नियम कायदे से नहीं चलता है। जनता ने कभी सबके लिए न्यायपूर्ण व्यवस्था की मांग नहीं की। ऐसे में जो इस तरह की समस्या की चपेट में आता है उसे लगता है कि सारे दरवाज़े बंद हो गए हैं। हो भी जाते हैं।

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आप मुझसे उम्मीद करते हैं कि मैं यह रिपोर्ट करूं। मैं नहीं कर सकता। एक बात समझनी होगी। हर तरह की स्टोरी को कवर करने में न तो सक्षम है और न संसाधन है। संसाधन के कई मतलब होते हैं। सब पहले उस विषय को समझने वाला अनुभवी संवाददाता ही आता है। अब चैनलों में ऐसे लोग नहीं हैं औऱ जो हैं संख्या में कम होने के कारण कई तरह के काम करते हैं। किसी शहर की दो से पांच रिपोर्ट करने के लिए भी दस लोगों की टीम चाहिए होती है जब अब नहीं है।

इसके अलावा संसाधन के नहीं होने का मतलब बजट भी होता है, रिपोर्टर तैयार करने की टीम का भी होता है और टीम को दिए जाने वाले समय के लिए भी होता है। जो कई दिन लगाकर आपके दिए गए दस्तावेज़ की जांच करें, दूसरे पक्ष से बात करे, अधिकारियों से मिले और रिपोर्ट करें। यह एक बेहद लंबी और जटिल प्रक्रिया है। इसे रिपोर्ट करने के लिए मेरे पास न तो संसाधन है और न समय। कई बार लगता होगा कि हम लोगों के पास रैपिड एक्शन फोर्स की तरह हर ज़िले में रिपोर्टरों का जत्था तैयार है जो आपके फोन करते ही पुलिस से पहले पहुंच जाएगा। ऐसा नहीं है।

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पहले भी लिख चुका हूं कि सिर्फ उम्मीद से अच्छी पत्रकारिता नहीं हो सकती और सिर्फ एक आदमी के दम पर तो हो ही नहीं सकती। यह एक पेशेवर काम है. अभी आप यू ट्यूब पर कुछ पत्रकारों को अच्छा काम करते देखते होंगे। आगे चल कर उनके साथ भी यही दिक्कत आएगी। बगैर संस्था बने या संस्था की मदद के वे किसी घटना के जटिल पक्षों की रिपोर्ट नहीं कर पाएंगे। केवल घटना स्थल का ही अलग अलग विवरण आप देख पाएंगे। इसलिए आप देखते होंगे कि आपके बार बार मैसेज करने पर भी हम जवाब नहीं दे पाते हैं। क्या जवाब दें।

कई लोग बोरे में फाइल लेकर आ जाते हैं। कंपनी के दस्तावेज़ को खोलना, पढ़ना और उसे क़ानूनी रुप से पेश करने लायक़ बनाना सबके बस की बात नहीं होती है। यह सब काम जल्दी जल्दी में और अकेले तो बिल्कुल नहीं कर सकते हैं। इसके लिए दक्ष लोग चाहिए होते हैं। इसलिए आप देखेंगे कि किसी भी अख़बार या चैनल में ऐसी स्टोरी नहीं होती। जो भी हो रही है उनमें से 99.9 प्रतिशत स्टोरी आसान स्टोरी है। कम खर्च और कम लोग के सहारे की जाने वाली। तभी तो कहता हूँ कि अगर आप अख़बार और टीवी नहीं देखेंगे तो कोई नुक़सान नहीं होगा क्योंकि जो जानना चाहिए उसे सामने लाने के लिए किसी के पास न तो संसाधन है और न पत्रकारिता का सिस्टम।

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जो यह बात अभी आप पढ़ रहे हैं, साल में कम से कम दो तीन बार यही बात लिखता हूं और अपने कार्यक्रम में भी कई बार बोलता हूं कि संसाधन की कमी है। यह जो ख़राबी आई है उसमें सब भागीदार हैं इसलिए सबको सज़ा मिलेगी। सबको भुगतना है। उम्मीद है इस बात को पढ़ने के बाद कुछ देर तक सोचेंगे।

तो ऐसी स्थिति में आप क्या करें? मेरे पास इसका ठोस जवाब नहीं है। ईश्वर का नाम लीजिेए और मंदिर निर्माण में खुलकर चंदा दीजिए। अगर उसी से खुशी मिलती है तो वही कीजिए।मुझे ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि आप सबके लिए सुलभ और न्यायपूर्ण सिस्टम बनाने का दबाव बनाएँगे।जब इस देश में लोग अपराधी और नेता को उसका मज़हब और जाति देखकर सपोर्ट करते हैं तब उससे ऐसी माँग कर अपना वीकेंड ख़राब नहीं करना चाहिए। हाँ, आप ऐसे संकट के वक़्त ग्रह नक्षत्र को दोष देकर मन्नत ज़रुर माँगे। ताकि कम से कम जिसका इसमें कोई रोल नहीं है उसकी तो कमाई होती रहे।

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काश आपके साथ या किसी के साथ ऐसा न होता। समाज और राजनीति में अनैतिकता और अधर्म की स्थापना आपने की है। आप अपनी भूमिका को ऐसे वक़्त में याद करें और मुझे समस्या का ब्यौरा भेजने के बजाए एक स्माइली भेज दें। ख़ुद पर हंसे भी। आपकी तकलीफ़ वाक़ई नहीं देखी जाती है। मुझे यह लिखते हुए भी अच्छा नहीं लगता।

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