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सियासत

क्या यशवंत सेकुलर नहीं रहे, कम्यूनल हो गए?

-यशवंत सिंह-

मैं अब भी नहीं समझ पा रहा कि फैसल खान को मंदिर में घुसकर सिर पटक नमाज पढ़ने जैसी महान गतिविधि को अंजाम देकर सामाजिक समरसता की कल कल नदी प्रवाहित करने की जगह अपने किसी हिन्दू मित्र को घर के पास वाली मस्जिद में ले जाकर देवी जागरण के गीत या हनुमान चालीसा के महाकीर्तन कराकर कमरलचक आध्यात्मिक नृत्यों के माध्यम से महानतम धार्मिक सदभाव का महासमुद्र क्यों नहीं बहवा देना चाहिए था?

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कोई मुझे समझाए, कोई मुझे कनविंस करे!

शायद मैं कम्यूनल हो रहा हूँ क्या?

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शायद मैं अब सेकुलर नहीं रहा क्या?

भड़ास एडिटर यशवंत की उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आईं ढेरों प्रतिक्रियाओं में से कुछ ये खास देखें-

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