जो है नाम वाला, वही तो बदनाम है!
एक ऐसा सम्मान जो मीडिया इंडस्ट्री के करीब दस लोगों को दिया गया। एक ऐसा सम्मान जो कमोवेश हर प्रमुख चैनल के किसी ना किसी प्रतिनिधि को दिया गया। उस सम्मान को स्वीकार करने के लिए किसी एक चैनल और एक व्यक्ति पर भगवाकरण का आरोप लगाया जाए, तो कानाफूसी तो होगी ही।
दरअसल पिछले ही हफ़्ते विश्व संवाद केंद्र नोएडा ने नारद पुरुस्कार की घोषणा की। पुरस्कार संध्या को जब सम्मान बांटने की प्रक्रिया शुरू हुई तो सबसे पहले आईबीएन7 के डिप्टी मैनेजिंग एडिटर सुमित अवस्थी का नाम पुकारा गया। इसके बाद नंबर आया अमर उजाला के संपादक का। इसी क्रम में आजतक की एग्जेकेटिव एडिटर श्वेता सिंह भी शामिल थीं।
पर सुनने में आया है कि आजतक के कुछ “शुभचिंतकों” को ये अवॉर्ड चुभ गया। वो कुछ इस कदर बौखलाए कि इसे चैनल को दिया संघी सम्मान तक कह दिया। और बाकी किसी भी अवॉर्डी का ज़िक्र तक करना भूल गए। वो इस बात को भी नज़रअंदाज़ कर गए कि ये सम्मान आईबीएन7, ज़ी न्यूज़, अमर उजाला, हिंदुस्तान, टाइम्स ऑफ़ इंडिया सबके किसी ना किसी पत्रकार को दिया गया।
कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी निजी ईर्ष्या की वजह से केवल आजतक का नाम लिया गया? क्योंकि यहां तक कहा गया कि आजतक के दो पत्रकारों को पुरस्कार दिए गए। जबकि दूसरा पुरस्कार ऐनिमेशन के लिए था, ना कि पत्रकारिता के लिए। और वो मिला सो सॉरी को, जिसके अगुवा नौकरी छोड़ चुके हैं। उनके लिए केवल इस अवॉर्ड को कलेक्ट किया गया था।
इसके अलावा ये जानना भी दिलचस्प है कि दो अन्य जगहों पर दिए गए नारद सम्मान का उल्लेख तक नहीं किया गया। जहां आईबीएन को पहले भी अवॉर्ड मिल चुके थे। अब बात पत्रकारों की हो रही है तो ऐसा तो हो नहीं सकता कि ये डीटेल लोगों को पता ना हों। हां, ज़रूरत के हिसाब से खबर का केवल एक हिस्सा दिखाना जिन पत्रकारों की फ़ितरत रही है, वही सम्मान का ऐसा विशलेषण कर सकते हैं।
भड़ास के पास आई एक चिट्ठी पर आधारित.