ये ट्वीट देखें वरिष्ठ खोजी पत्रकार दीपक शर्मा का-
अब इसका जवाब देखें जिसे फ़ेसबुक पर पोस्ट किया है एनडीटीवी में लम्बे समय तक कार्यरत रहे वरिष्ठ पत्रकार समरेंद्र सिंह ने-
“ये फर्क है पंत और बिष्ट में”
ये कहना है शर्मा जी के लौंडे का। ट्वीटर और फेसबुक ने अनगिनत क्रांतिकारी पैदा किए हैं। उनमें से एक शर्मा जी का लौंडा है। इसका नाम है दीपक शर्मा। इसे क्रांतिकारी बनाने का कसूर “आजतक” वालों का है। न वो इसे दर-बदर करते – ना ये आग उगलता। अब ये “ब्राह्मणवादी आग” उगल रहा है। “ब्राह्मणवादी आग” कमाल की होती है। असाधारण और कलात्मक होती है। इसमें ताप के साथ राग होता है। ये आग पाप और पुण्य देख कर भस्म करती है। ब्राह्मण-गैर ब्राह्मण अलग-बगल खड़े हों तो ब्राह्मण बच जाएगा। गैर ब्राह्मण भस्म हो जाएगा। इसलिए कि ब्राह्मण पाप करता नहीं और जो गैर ब्राह्मण है – वो जन्मजात पापी होता है।
ट्वीटर पर शर्मा जी के लौंडे ने क्रांतिकारी तेवर अपनाते हुए आगे लिखा है कि “पंत असली योगी हैं और बिष्ट भोगी हैं।”
पंत योगी इसलिए हैं क्योंकि पंत पंडित हैं। बिष्ट भोगी इसलिए हैं क्योंकि बिष्ट ठाकुर हैं। योगी और संन्यासी – कोई पंडित ही हो सकता है!
आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं कि आखिर पंत कौन हैं? पंडित गोविंद बल्लभ पंत स्वतंत्रता सेनानी थे। आजादी से पहले संयुक्त प्रांत के मुख्यमंत्री थे। आजादी के बाद उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। 1954 में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें दिल्ली बुला लिया और गृहमंत्री बना दिया। पंडित नेहरू प्रधानमंत्री रहते 1955 में “भारत रत्न” बने तो पंडित पंत को गृहमंत्री रहते 1957 में “भारत रत्न” की उपाधि मिली।
पंडित पंत के बेटे पंडित कृष्ण चंद्र पंत भी 70 के दशक में सांसद बने। सांसद बनने के साथ ही पंडिताइन इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री बने। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पंडित केसी पंत पंडित राजीव गांधी की सरकार में रक्षा मंत्री बने। फिर पंडित नरसिम्ह राव की सरकार में वित्त आयोग के चेयरमैन बने।
पंडित केसी पंत अपने पिता से बड़े “त्यागी” थे। बड़े “योगी” थे। जब केंद्र में पंडित अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो पंडित केसी पंत ने कांग्रेस का त्याग कर दिया। बीजेपी में शामिल हुए और योजना आयोग के उपाध्यक्ष बने। पंडित केसी पंत की पत्नी पंडिताइन ईला पंत भी सांसद रह चुकी हैं। बाप, बेटा और बहू – सभी त्यागी, तपस्वी और योगी हैं। इन योगियों ने अपना सबकुछ समर्पित कर दिया। इतना त्याग, इतनी तपस्या तो कोई पंडित ही कर सकता है! इतना महात्म्य किसी पंडित का ही हो सकता है! बाकी जो हैं वो भोगी हैं!
दरअसल इसमें शर्मा जी के लौंडे की कोई गलती नहीं है। शर्मा जी के लौंडे ने मनुस्मृति की जगह ढंग की किताबें पढ़ी होती तो सोच का विस्तार होता। गांव-देस और समाज का अध्ययन किया होता, लोगों की संवेदनाओं को समझने की कोशिश की होती तो दिल और दिमाग का दायरा थोड़ा बढ़ता। लेकिन शर्मा जी के लौंडे ने अपना जीवन मनुस्मृति, अपराध और अपराधियों को समर्पित कर दिया। ये “आजतक” पर आतंकवादी दाऊद इब्राहिम को दाऊदजी-दाऊदजी कहता रहा। सैकड़ों लोगों का हत्यारा, ड्रग्स और हथियारों का धंधा करने वाला, भारत में आतंकवाद फैलाने वाला इसके लिए जी हुजूर है और जनता द्वारा चुना गया प्रतिनिधि भोगी है – और भोगी इसलिए है क्योंकि उसकी जाति इसकी जाति से अलग है। बड़ा ही चमत्कारी पत्रकार है! इतना चमत्कारी कि एक बार लालकृष्ण आडवाणी का ये पैर छू रहा था और वो वीडियो प्रसारित हो गया।
वैसे ऐसी घटिया सोच रखने वाला ये पहला पंडित पत्रकार नहीं हैं। ये तो छुटभैया है। बीमार सोच वाले कई बड़े पंडित पत्रकार हुए हैं। हिंदी पत्रकारिता के युग पुरुष पंडित प्रभाष जोशी भी श्रेष्ठता के इसी सेंड्रोम से ग्रसित थे। एक बार जनसत्ता में उन्होंने अपनी बीमार सोच का प्रदर्शन किया था। उन्होंने लिखा था कि सचिन तेंदुलकर महान बल्लेबाज इसलिए बना क्योंकि वो उच्चकोटि का ब्राह्मण है। टिक कर खेलना जानता है। विनोद कांबली महान इसलिए नहीं बन सका क्योंकि उसे टिक कर खेलना नहीं आता है।
इसी सदी के एक दूसरे महान पंडित पत्रकार हैं राजदीप सरदेसाई। नरेंद्र मोदी कैबिनेट में दो सारस्वत ब्राह्मण – मनोहर पर्रिकर और सुरेश प्रभु – शामिल हुए तो राजदीप के भीतर का पंडित चहक उठा और उनकी खुशी ट्वीटर पर छलक उठी।
“Big day for my Goa. Two GBSs (Goan Saraswat Ministers), both talented politicians become full cabinet ministers. Saraswat pride!”
लेकिन पंडित राजदीप और पंडित दीपक शर्मा में एक बुनियादी अंतर है। पंडित राजदीप अपने प्रेम का प्रदर्शन करते हैं। जबकि पंडित दीपक शर्मा ने प्रेम के साथ नफरत का भी नग्न प्रदर्शन किया है। अपने भीतर इतनी नफरत समेट कर चलने वाला ये व्यक्ति दूसरी जातियों के लोगों के साथ कैसे मिलता-बतियाया होगा? श्रेष्ठता के विकृत अहंकार से बजबजाता ये शख्स कहीं उनके खिलाफ साजिशें तो नहीं रचता होगा? और वो लोग इसे बर्दाश्त कैसे करते होंगे? ये कुछ जरूरी और बड़े सवाल हैं। मैं इन सवालों के साथ आपको यहीं छोड़ जा रहा हूं।
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Dprakash
May 20, 2021 at 8:33 pm
योगी जी के शासनकाल में एक जाति पर सरकारी जाति होने का आरोप तो शुरू से लग रहा है, इसमें नया क्या है ? और इस तरह के पक्षपाती व्यवहार से दूसरे भी पूर्वाग्रह ग्रसित होने लगे हैं तब आपको दुख और जातिवाद की बू आने लगी है ।
दरअसल ‘ सिर्फ मैं ही सही ‘ वाली भावना इतनी घर कर चुकी है कि आपको अपने कई पुराने आलेख टटोलने का मौका भी नहीं मिला जिसमें आपकी जातिवादी पूर्वाग्रह स्पष्ट तौर पर दिखती है ।
यू पी में राज्यसभा वोटिंग के दौरान पत्र पत्रिकाओं में बड़े आराम से चुस्की ली जाती थी कि क्षत्रिय धर्म का प्रभाव वोटिंग पर पड़ेगा । क्या यह जातिवादी बात नहीं थी । आपके लेख भी कई उदाहरणों जातिवादी उदाहरणों को काट छांट कर परोसते हैं ये भी पक्षपात है।
बात यह है कि दो पक्षपाती आपस में लड़ के यह साबित करने में जुटे हैं कि सबसे बड़ा पक्षपाती कौन है और उनके बीच जातिवाद और समाज जैसे शब्द पिस रहे हैं।