श्याम मीरा सिंह-
मोदी-शाह सांप्रदायिकता के जिस घोड़े पर चढ़कर आगे पहुँचे हैं, योगी उसी सांप्रदायिकता का और अधिक ओपन और डेंजरस वैरियंट हैं. प्रवीण तोगड़िया और योगी में अंतर है. जितना मैंने सुना है मोदी और RSS पहले भी नहीं चाहते थे कि योगी का उबार हो. लेकिन जनता के दबाव में मजबूरन CM बनाना पड़ा.
योगी की हिंदू युवा वाहिनी, RSS के लिए खुली चुनौती थी, RSS कभी नहीं चाहता था कि उसके समानांतर कोई दूसरा हिंदू संगठन हो, इसलिए RSS कभी भी हिंदू युवा वाहिनी को अपने सहयोगी की तरह नहीं देखता, RSS चाहता है कि उसके “हिंदू डोमेन” में कोई और प्रतिस्पर्धा न हो, इसलिए युवा वाहिनी पसंद नहीं.
चूँकि योगी ने RSS के समानांतर दूसरा हिंदू संगठन। “हिंदू युवा वाहिनी” खड़ा कर लिया था, इसलिए RSS के शीर्ष नेतृत्व को योगी कभी पसंद नहीं रहे थे, लेकिन योगी जानते थे, अगर संघ के आगे ताक़त बनानी है तो हिंदू युवा वाहिनी को ज़िंदा रखने के फ़ैसले से पीछे नहीं हटना था.
RSS के संगठन जैसे “विश्व हिंदू परिषद,विद्या भारती, बजरंग दल” में आपस में तालमेल है, वहाँ किसी भी तरह का टकराव कभी नहीं आता, क्योंकि वहाँ नेतृत्व संघ द्वारा भेजे प्रचारकों के हाथ होता है. लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि इन संगठनों का “हिंदू युवा वाहिनी” से कोई तालमेल नहीं है.
योगी का उदय उनकी खुद के भड़काऊ भाषणों, कट्टरपंथियों में उनकी लोकप्रियता है. RSS और भाजपा की मजबूरी रही कि उन्हें CM बनाया जाए. CM रहते योगी मीडिया की भूमिका को पहचान गए, जिस तरह योगी ने मीडिया में विज्ञापनों पर पैसा खर्च किया है, उस तरह भाजपा के किसी भी CM ने नहीं किया.
जिस तरह की ब्रांडिंग योगी ने की है, उस तरह हिंदुत्व के विराट अंब्रेला के अंदर ही योगी को कड़क और सपाट फ़ैसले वाले नेता के रूप में खड़ा किया है, हिंदू झुकाव वाले ग्रामीणों में योगी की लोकप्रियता मोदी शाह से बहुतों आगे है. इसलिए मोदी शाह, योगी को लेकर शंकित हैं.
इसलिए मोदी और शाह “योगी विहीन” संभावनाएँ तलाश रहे हैं, मगर मैंने पहले ही कहा है सांप्रदायिकता के जिस घोड़े पर चढ़कर मोदी-शाह आए हैं, योगी उसका ओपन और ख़तरनाक वैरियंट हैं, धर्मांध जनता को जब अच्छी क्वालिटी का नशा मिल रहा हो, वो क्यों सस्ता वाला ज़हर लेगी.