”अयोग्य लोग ही इस पेशे में आते हैं, वे ही पत्रकार बनते हैं जो और कुछ बनने के योग्य नहीं होते..” आज स्थापित हो चुके एक बड़े पत्रकार से कभी किसी योग्य अधिकारी ने ऐसा ही कहा था… कहां से शुरू करूं… मुझे नहीं आता रोटी मांगने का सलीका… मुझे नहीं आता रोटी छीनने का सलीका… हां मैं अयोग्य हूं… योग्य तो वो हैं जो जिले में दाग लेकर आये थे और दाग लेकर चले गए… वो दूध, आटा, दाल और आलू का भाव नहीं बता सकते क्योंकि अपनी मोटी तनख्वाह से उन्होंने जिले में रहते कभी रोटी खरीदी ही नहीं… हां योग्य तो वो हैं जो जिले से जाते जाते जिले में अपना एक फ़ार्म हाउस बना गये और अपने लखनऊ वाले घर के लिए मुफ्त में शीशम की लकड़ी भी ले गए,आखिर हक़ बनता था उनका क्योंकि वृक्षारोपण में काफी बढ़चढ़ के हिस्सा लेते थे वो…
हां योग्य तो वो भी हैं जिनका तबादला गैरजनपद हो गया फिर भी वो जिले में बंद गाड़ी में कई बार भटकते देखे गए…. हां योग्य तो वो हैं जो झंडे के नीचे कसम ले के आये थे लिहाजा जिले में आते ही निभा दी अपने कसम की रस्म… अरे योग्य तो वो भी हैं जिनकी कभी प्रतियोगिता परीक्षाओं की पुस्तकों पर फ्रंट पेज पर फ़ोटो छपी थी और वो अपनी अति योग्यता की बदौलत जेल में हैं… हाँ वो योग्य हैं क्योंकि उनके नाक के नीचे जिले में गौकशी और नशे का कारोबार बिना किसी अड़चन के चल रहा है…
हां वो योग्य हैं क्योंकि नहर में सिल्ट की सफाई कब हो जाती है और कब पानी आ जाता है उन्हें पता ही नहीं लगता…. हाँ वो योग्य हैं क्योंकि उन्हें पता ही नहीं होता कि सार्वजानिक वितरण प्रणाली में बंटने वाला राशन गरीब की थाली तक पहुंचा या नहीं…. हां वो योग्य हैं क्योंकि उन्हें पता ही नहीं होता कि इलाज के अभाव में वो महिला तड़प तड़पकर कर मर गई… हाँ वो योग्य हैं क्योंकि उन्हें पता ही नहीं होता कि स्वास्थ्य केंद्र पर तैनात डाक्टर अपनी क्लीनिक पर देश सेवा में लगा है…. हां वो योग्य हैं क्योंकि वो कार्रवाई करते हैं और हम छापते हैं उनकी तारीफ़… हां वो योग्य हैं तभी तो हम नहीं जान पाते कि जिन पर कार्रवाई हुई थी वो कब और कैसे बहाल हो गये?
….और हम अयोग्य हैं, क्या हुआ जो वो बूढी माँ आज भी दुआएं देती है जिसकी पेंशन सिर्फ इस वजह से बंद थी कि उसका नाम विधवा और वृद्धावस्था दोनों में चढ़ गया था और वो महीनों से चक्कर काट रही थी इन योग्य लोगों के…. हाँ हम अयोग्य हैं, क्या हुआ जो उसके एक फोन पर जान हथेली पर ले के उस गाँव चले गए थे खबर बनाने जहां दबंगों ने पूरी दलित बस्ती का जीना हराम कर रखा था… बहु बेटियाँ तक सुरक्षित न थीं, जो आज हैं….
हां हम अयोग्य हैं, क्या हुआ जो उस गरीब दलित को उसका नौ बिस्वा पट्टा वापस मिल गया जिस पर दबंगों का कब्ज़ा था…. हां हम अयोग्य हैं जो हमने पूछ लिया था कि आनन फानन में ये सड़क किस मद से बनाई जा रही है मुख्यमंत्री के आगमन पर…. हां हम अयोग्य हैं जो हमने पूछ लिया था कि कार्य समाप्ति का बोर्ड लगने के बावजूद ये चौदह किलोमीटर की सड़क केवल तीन किलोमीटर ही क्यों बनी है?… हां हम अयोग्य हैं जो देखने चले गए वो गांव जहां मुख्यमंत्री के आने का अंदेशा था और सारे योग्य काम पर यूं लग गए थे मानो बंद नालियाँ और खड़ंजे एक ही दिन में बन जायेंगे… हां हम अयोग्य हैं जो हमने पूछ लिया था कि आपने राष्ट्रगान का अपमान क्यों किया ?
…….जैसे इनकी योग्यता के किस्से कभी खत्म नहीं हो सकते वैसे हमारी अयोग्यता भी कभी न खत्म होने वाली है…. ये पल पल अपनी योग्यता दिखाएँगे और हम अपनी अयोग्यता… ये हमारी अयोग्यता ही है जिसकी बदौलत कई योग्य वहां हैं जहाँ रोटी भी मुफ्त में मिलती है…
हम अपनी अयोग्यता सिद्ध करते रहेंगे आप अपनी योग्यता सिद्ध करते रहिये… आप हमसे कत्तई डरिये नहीं क्योकि आप योग्य हैं और हम अयोग्य….. ऐसे ही किसी मोड़ पर अपनी अयोग्यता सिद्ध करते फिर मुलाक़ात होगी, तब तक के लिए अंतराल भरा नमस्कार…
लेखक दिनकर श्रीवास्तव यूपी के अमेठी जिले के टीवी जर्नलिस्ट हैं. उनसे संपर्क 09919122033 के जरिए किया जा सकता है.
Comments on “हां हम अयोग्य हैं, इसीलिए पत्रकार हैं क्योंकि….”
good bhai karale k ras se bhari dava k khatir…..vivek vikram singh
काश कुछ पत्रकार???? भी अति योग्य नहीं होते तो आज पत्रकारिता औऱ पत्रकारों की इतनी दुर्गति नहीं हुई होती …..
yoggyo ki bhir mai ayogyo ki kami hai, har neta. noukarshah, udhyogpati. sampadak, malik sab yogy hain, ayogy to ham jaise kalamghissu hain,jo hamesha rahaige bhi.
बढ़िया सर✍
थैंक्स..
वाह दिनकर भाई आप नहीं योग्य लोगों पर गहरा तमाचा जड़ा है
वाह दिनकर भाई आप ने योग्य लोगों के गाल पर गहरा तमाचा जड़ा है
अच्छा जी..धन्यवाद
V good dinkar g mahesh kaushik 9671404172
Thanks