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पत्रकार जैगम ने अपनी फिल्म ‘दोजख’ सेंसर बोर्ड में बैठे काठ के उल्लुओं के पीछे पड़कर पास करवा ही ली

Zaighaam Imam : भारतीय सेंसर बोर्ड की दो मुस्लिम महिला सदस्यों का शिगूफ़ा आख़िरकार काम नहीं आया। उनकी ज़िद थी की “दोज़ख़” को मौलवियों को दिखाया जाए और उनकी सहमति के बाद क्लीयर किया जाए। लेकिन मेरा साफ़ मानना था कि फिल्म जैसे कलात्मक माध्यम में मुल्ले मौलवियों का कोई काम नहीं। लड़ाई लंबी चली लेकिन नतीजा हमारे हक़ में गया। सेंसर बोर्ड चेयरपर्सन श्रीमती लीला सैमसन ने अपना वीटो पावर इस्तेमाल करते हुए बिना किसी कट के यू सर्टिफिकेट के साथ फिल्म पास कर दी। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान एक बात फिर शीशे की तरह साफ़ हो गई।

Zaighaam Imam : भारतीय सेंसर बोर्ड की दो मुस्लिम महिला सदस्यों का शिगूफ़ा आख़िरकार काम नहीं आया। उनकी ज़िद थी की “दोज़ख़” को मौलवियों को दिखाया जाए और उनकी सहमति के बाद क्लीयर किया जाए। लेकिन मेरा साफ़ मानना था कि फिल्म जैसे कलात्मक माध्यम में मुल्ले मौलवियों का कोई काम नहीं। लड़ाई लंबी चली लेकिन नतीजा हमारे हक़ में गया। सेंसर बोर्ड चेयरपर्सन श्रीमती लीला सैमसन ने अपना वीटो पावर इस्तेमाल करते हुए बिना किसी कट के यू सर्टिफिकेट के साथ फिल्म पास कर दी। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान एक बात फिर शीशे की तरह साफ़ हो गई।

धर्म के नाम पर कठमुल्लई करने वाले असल में एक दूसरे के सगे भाई बहन की तरह होते हैं, उन्हें आपके मज़हब हिंदू या मुसलिम से नहीं विचार से मतलब होता है। विचार उनसे मिलते हैं तो ठीक नहीं तो दुश्मनी तय। मेरी फिल्म पर सेंसर की कैंची चलाने की पुरजोर कोशिश करने वाले मुसलमान थे और वो सब लोग जिनकी जात मुझसे अलग थी यही चाहते थे कि फिल्म को सेंसर दे दिया जाए। दिल्ली, कलकत्ता, बैंगलुरू, चेन्नई, त्रिवेंद्रम, मुंबई, लद्दाख़, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया समेत देश विदेश में कई जगहों पर पुरस्कार जीत चुकी दोज़ख़ की कहानी को मुस्लिमों ने भी काफी पसंद किया, फिल्म पंडित का किरदार निभाने वाले अभिनेता खुद भी मुसलमान हैं। लेकिन जिनकी सोच इतनी तंग है कि वो यथार्थ से परे की कहानियों में भी हिंदू मुस्लिम तलाशते हैं उनका क्या इलाज हो सकता है? मुंबई के प्रमुख अखबार मिड डे ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया है।

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पत्रकार जैगम इमाम के फेसबुक वॉल से. इस स्टेटस पर वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला की टिप्पणी और फिर जैगम इमाम का जवाब यूं है…

Shambhu Nath Shukla : बहादुर है जैगम। उन दिनों जब मैं अमर उजाला में दिल्ली संस्करण का स्थानीय संपादक था अकेले जैगम ही ऐसा एक संवाददाता था जो हर जोखिम वाली स्टोरी कवर करता था और जिस पर कभी कोई अंगुली नहीं उठी। उसे नोएडा अथारिटी की बीट दी गई और उसने कोई खबर मिस नहीं होने दी तथा हर खबर के पीछे पड़कर उसका फालोअप किया। अच्छा लगा कि जैगम की वह आदत गई नहीं और उसने अपनी फिल्म दोजख सेंसर बोर्ड में बैठे काठ के उल्लुओं के पीछे पड़कर पास करवा ही ली। बधाई हो जैगम तुमको।

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Zaighaam Imam : सर Shambhu Nath Shukla, सेंसर दिलवाने में राजदीप सरदेसाई की मां श्रीमती नंदिनी सरदेसाई की बड़ी भूमिका रही। वो सेंसर बोर्ड की बोर्ड मेंबर हैं उन्होंने काफी स्टैंड लिया फिल्म की कहानी को लेकर। मैंने तो पहले ही कह दिया था सेंसर वालों से एक भी सीन काटूंगा नहीं जितना दौड़ाना हो दौड़ा लो। चौथी स्क्रीनिंग के बाद फिल्म क्लीयर हुई। 12 घंटे के अल्टीमेटम पर चेन्नई बुलाया गया मुझे। चेन्नई में मैंने श्रीमती लीला सैमसन के लिए फिल्म स्क्रीन की।

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