संजय कुमार सिंह-
आरएसएस के किये किस नुकसान की बात कर रहे हैं राहुल गांधी
राहुल गांधी साफ कहते हैं, टेलीग्राफ वैसे ही छापता है
नरेन्द्र मोदी नेता चाहे जितने बड़े और जितने लोकप्रिय हों, ‘मन की बात’ ही करते हैं। प्रेस कांफ्रेंस नहीं कर सकते। कई मौकों पर महीनों चुप रहे हैं। वैसे, ये सारे दोष मनमोहन सिंह में गिनाते-बताते थे। 2014 के चुनावों की नरेन्द्र मोदी की तैयारियों और उसके मीडिया कवरेज को याद कीजिए और दूसरी भारत यात्राओं को मिली सुर्खियां अगर याद हों तो देखिए कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को अखबारों में कितनी और कहां जगह मिल रही है। कारण कुछ लोग कहते हैं कि मीडिया विज्ञापनों के बदले (या के लिए) सरकार की सेवा में बिछा हुआ है। पर भारत यात्रा से संबंधित आज की खबर द टेलीग्राफ के अनुसार, बहुत स्पष्ट है।
राहुल गांधी ने इसे इतने ही साफ तरीके से कहा है और वह है, आरएसएस द्वारा किए गए नुकसान की भरपाई के लिए कर रहा हूं। अखबारों को राहुल गांधी का यह दावा पसंद नहीं था तो उनसे पूछते कि कौन सा नुकसान, कैसा नुकसान और बताते कि आरएसएस ने तो कोई नुकसान किया ही नहीं है। राहुल गांधी झूठ बोल रहे हैं आदि आदि। अगर आरएसएस ने वाकई नुकसान किया है तो उस पर बात क्यों नहीं होनी चाहिए। क्या उसपर चुप्पी साध लेना सही है या यही 56 ईंची राजनीति है? हालांकि, राजनीति मुद्दा नहीं है। मुद्दा मीडिया का रवैया है। मीडिया को देखिए, खबर छापने से जैसे डर लग रहा है। वे राहुल गांधी की बातों में पड़ना ही नहीं चाहते हैं और बताने की जरूरत नहीं है कि क्यों?
किसी देश का मीडिया इतना गिर या डर जाए तो निश्चित रूप से यह लालच भर नहीं है। दूसरे कारनामे भी हैं जो वे ईडी और सीबीआई से डरते हैं। छापे तो इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी में इंडियन एक्सप्रेस पर भी डलवाए थे। नुकसान किसका हुआ? पर अब ज्यादातर की रीढ़ कहां चली गई है? पहले संस्थान अपने यहां काम करने वालों को मजबूती देते थे अब अकेले काम करने वाले ज्यादा मजबूत दिख रहे हैं और ज्यादातर संस्थान झुकने के लिए कहने पर रेंग रहे हैं।
ऐसे ही अगर-मगर वालों को राहुल गांधी पप्पू लगते हैं और 42 हजार का टी शर्ट पहनने पर पीएम केयर्स नाम का कटोरा लिये बैठे पीएम वाली दुनिया की सबसे अमीर पाटी को तकलीफ हो जाती है। पार्टी अपने फकीर के फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता वाले परिधानों को भूल जाती है। हालांकि, इसके लिए जो गालियां पड़ीं उससे शायद कोई शिक्षा मिले। पता नहीं खबर कहीं छपी या नहीं।
इंडियन एक्सप्रेस ने खबर तो पहले पन्ने पर छापी है लेकिन शीर्षक, कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव पर है। राहुल गांधी का जवाब इसपर भी साफ है, “मेरा दिमाग साफ है …. चुनाव के बाद मुझसे पूछिएगा।” हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस ने खबर का जो हिस्सा पहले पन्ने पर रखा है वह इस सवाल के बहाने राहुल गांधी की यात्रा में भागीदारी पर सवाल-जवाब ज्यादा है, यात्रा की खबर कम। दूसरी ओर, हिन्दुस्तान टाइम्स में राहुल गांधी की इस यात्रा की खबर पहले पन्ने या उससे पहले के अधपन्ने पर नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने अपने पाठकों को नए दिखने वाले सेंट्रल विस्टा परियोजना की तस्वीर दिखाना ज्यादा जरूरी समझा है। लगभग ऐसी ही ‘खबर’ द हिन्दू में है। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर पहले पन्ने या अधपन्ने पर नहीं है।
मुझे यह दिलचस्प लग रहा है कि राहुल गांधी के टी शर्ट की कीमत को ट्वीट का विषय बनाने वाली भाजपा आरएसएस पर राहुल गांधी के आरोप को लेकर चुप है। (पहले पन्ने पर) खबर ही नहीं है। जुबान फिसलने और संपादित वीडियो पर हंगामा मचाने वाले लोग इस सीधे आरोप पर चुप क्यों हैं? वैसे भी भाजपा ने जिस ढंग से समाज का विभाजन किया है उसमें आरएसएस पर निशाना साधना साधारण नहीं है। लेकिन आरएसएस से संबंधित राहुल गांधी के आरोप पर शांति क्यों है?
केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को जमानत मिली – यह खबर आज अखबारों में प्रमुखता से है। मुझे लगता है कि यह सरकारी प्रचार से ज्यादा नहीं है। दो साल बाद जमानत मिलना खबर नहीं है। जमानत तो देर-सबेर मिलनी ही थी। खबर ये होती कि ऐसा हुआ क्यों और कैसे। सुप्रीम कोर्ट किसी के दो साल जेल में रहने के बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करे तो यह रूटीन खबर नहीं है। उसे हाईलाइट किया जाना चाहिए जैसा द टेलीग्राफ ने किया है। लेकिन यह बात दूसरे अखबारों के शीर्षक में नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसे हाइलाइट किया है पर अंदाज रूटीन खबर वाला ही है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने शीर्षक में लिखा है कि हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। पर यहां यह नहीं बताया गया है कि इस अधिकार की बात उस व्यक्ति के बारे में कही जा रही है जो 700 से ज्यादा दिन जेल में रह चुका है। द हिन्दू में भी यह खबर चार कॉलम में प्रचार की ही तरह छपी है।