संजय कुमार सिंह-
रिकार्ड तोड़ आंय-बांय-सांय… अच्छा बोलने वाले का हश्र या यही अच्छा है – दोनों तरह से लिखा जा सकता है और दोनों पढ़ रहा हूं।
सवाल था – मणिपुर में हिंसा क्यों हुई? नियंत्रित क्यों नहीं हो रही है, आप जायजा लेने क्यों नहीं गये, मुख्यमंत्री को क्यों नहीं हटाया, आपने शांति कायम करने की अपील भी नहीं की, मिलने आये विधायकों को समय नहीं दिया आदि आदि और मणिपुर को जलता छोड़कर अमेरिका चले गये। बाद में वायरल हुए वीडियो से पता चला कि एफआईआर पर कार्रवाई भी नहीं हो रही थी और अब जांच इस बात की चल रही है कि वीडियो लीक कैसे हुआ। ऐसे में बोलते क्या और बोलना क्या था। कौन नहीं समझ रहा था।
इसी सब को जनता को बताने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। मजबूरी में बोलने आना पड़ा। और जो बोले उसपर टेलीग्राफ का शीर्षक हिन्दी में यही होता, रिकार्ड तोड़ आंय-बांय-सांय। इसपर ‘द हिन्दू’ का यह कैप्शन देखिये।
इसे अटैक मोड कहा गया और हमला यह है कि पहले की सरकारों के खराब शासन के कारण मणिपुर में हादसा हुआ (चल रहा है)। अब पहले की सरकार इनको अभी भी काम नहीं करने दे रही है तो ये कितने मजबूत हैं आप समझ सकते हैं।
अपने ईडी के बाद अब अपने चुनाव आयुक्त की व्यवस्था कर ली है (या करनी पड़ रही है) अब यही नियम बनना बाकी है कि किस पद पर नियुक्ति के लिए कितने दिन संघ का कार्यकर्ता होना जरूरी है। यही अटैक मोड है। यही पत्रकारिता है और यही खबर है।
महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाया गया। दो महीने तक खबर नहीं बनी। जब खबर हुई तो बलात्कार का सबूत मांगा गया, वीडियो लीक होने की जांच हुई और कार्रवाई के नाम पर वीडियो हटवाये गये। वीडियो बनाने वाला गिरफ्तार हुआ। अब फ्लाइंग किस पर एतराज। और इसकी खबर मिनटों में। गजब भयो रामा जुलुम भयो रे ….
मणिपुर जल रहा था प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर चले गये।
संसद में हंगामा था, जवाब मांगा गया, कई दिन लापता रहे।
दावा 18 घंटे और बिना छुट्टी काम करने का।
सरकारी दौरों पर प्रचार करते रहे सो अलग।
56 ईंची सीना, घुस कर मारूंगा, लाल आंखें, भ्रष्टाचार दूर कर दूंगा, बहुमत, हिन्दू सरकार, हिन्दुत्व की रक्षा – जो मार दिये गए उनके काम नहीं आया। जिन्हें नंगा घुमाया गया उनकी तो खबर भी दबा दी गई और अब चिन्ता है कि वीडियो उस समय क्यों लीक हुआ। मणिपुर के विधायक मिलने की कोशिश करते रहे पर समय नहीं मिला। महंगाई और डॉलर की कीमत तो अब मुद्दा ही नहीं है। ना अन्ना हजारे याद आते हैं। जवाब नहीं देते मन की बात करते हैं। फिर भी प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में कमी नहीं है तो सवाल उन्हें लोकप्रिय बनाने वालों और लोकप्रियता मापने के पैमाने पर है। अखबारों की खबरों से लोकप्रियता मापने का भी असर हो सकता है।
शालीन वर्मा
August 13, 2023 at 11:45 am
लोगों के पास समय हो तो इसको पूरा पढ़ें क्योंकि जब आप बर्बाद हो ही रहे तो यह बात भी जान लीजिए कि आपकी खामोशी ने आपको बर्बाद किया है सरकार ने नहीं