संजय कुमार सिंह-
“घड़ियाली आंसू” के बारे में कुछ ज्ञान की बातें… द टेलीग्राफ की एक खबर के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी के चिकित्सकों को वर्चुअली संबोधित किया उसके बाद से ट्वीटर पर क्रोकोडाइल टीयर्स (घड़ियाली आंसू) टॉप ट्रेंड कर रहा था।
अखबार ने बताया है कि घड़ियालों (मगरमच्छ) पर आरोप लगाना ठीक नहीं है। वे भोजन कर रहे होते हैं तब आंसू निकलता है न कि दुखी होने पर।
इसके लिए अखबार ने 2006 के प्रयोग का हवाला दिया है और बताया है कि दो अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इस बारे में ‘बायोसाइंस’ में लिखा भी था।
अखबार ने पाठकों से कहा है कि वे “क्रोकोडाइल टीयर्स” ट्रेन्ड करने का कारण जानना चाहें तो पेज चार देखें।
द टेलीग्राफ में घड़ियाल से संबंधित जिस प्रयोग का जिक्र है उसकी जानकारी मुझे नहीं थी और अंग्रेजी से अनुवाद करने का अपना संकट है। तभी व्हाट्सऐप्प की यह मेहरबानी हुई। वैसे तो मैं व्हाट्सऐप्प ज्ञान फॉर्वार्ड नहीं करता और ना उसपर यकीन करता हूं लेकिन इसपर यकीन नहीं करने का कोई कारण नहीं है। खासकर द टेलीग्राफ को अंग्रेजी में पढ़ने के बाद टेलीग्राफ में जो छपा है उसका यह हिन्दी अनुवाद तो नहीं है लेकिन मोटा-मोटी वही बात है। मगरमच्छ जब किसी जीव को अपना ग्रास बनाता है…
तो वो इतना उतावला होता है कि उस जीव के साथ वायुमंडल की ढेर सारी हवा भी अंदर खींच लेता है। यह हवा उसकी अश्रुग्रंथियो पर दबाव बनाती हैं तो उसकी आँखों से पानी बह निकलता है… लेकिन वो शिकार को छोड़ता नहीं है। शिकार को निगलते ही ये आंसूं बहना भी रुक जाते हैं…..उसे शिकार के वक्त देखने वालों को भ्रम होता है कि घड़ियाल दयालु है… जिसे भी यह भ्रम होता है …उसके प्राण संकट में पड़ते हैं… तथ्य वैज्ञानिक भी है साथ ही समसामयिक और व्यवहारिक भी…
तो मतलब ये हद से ज्यादा निगलने से मगरमच्छ की आंखों में पानी आया है न कि करुणा से….वो फिर शिकार करेगा और आँखों से दरिया बहायेगा…. हर घड़ियाल सरीसृप नहीं होता ….
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