Amitaabh Srivastava : सोशल मीडिया नाम के बेकाबू भस्मासुर को फलने फूलने का आशीर्वाद देने वाले तमाम देवता अब घुटनों में सर दिए चिंता में डूबे हुए हैं. कहाँ जाएँ इससे बच के. मनमोहन सिंह की खिल्ली उड़ाने में सबको बड़ा आनंद आ रहा था और समर्थकों को उकसा उकसा कर ऊल-जलूल किस्म का हंसी ठट्ठा खूब चला, अब भी चल रहा है. लेकिन अब पृथ्वीराज चौहान के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले हिन्दू ह्रदय सम्राट (स्वर्गीय अशोक सिंघल साहब का बयान याद करें) नरेंद्र मोदी जी को भी लोग कायर और डरपोक कह रहे हैं.
लोगों को लग रहा है कि मोदी भी बस लव लेटर वाली पालिसी को गिफ्ट देकर आगे बढ़ा रहे हैं. काहे नहीं एक के बदले सौ सर ला रहे हैं फटाफट. डीजीएमओ साहब ने एकदम ग़दर वाले सनी देओल की तरह बयान दिया कि जगह और वक्त अपने हिसाब से चुन कर कार्रवाई होगी -चुन चुन कर. फिर भी लोग संतुष्ट नहीं है, उन्हें तो ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर में सिर चाहिए, खेलने के लिए सिर चाहिए, गणित सीखने, पहाड़े पढ़ने के लिए सिर चाहिए, गंगा का रुख लाहौर तक मोड़ना है, पाकिस्तान को परमाणु बम से उड़ाना है, बलूचिस्तान को हिंदुस्तान में मिलाना है. और ये सब फटाफट चाहिए बिलकुल फ्लिपकार्ट और अमेज़न के सामान की होम डिलीवरी की तरह. नहीं करोगे या ऐसा करने के बारे में नहीं कहोगे तो गाली खाने के लिए तैयार रहो.
ये जो ऑन डिमांड सप्लाई वाली परंपरा शुरू हुई है राजनीति से लेकर तमाम क्षेत्रो में, बिलकुल फरमाइशी फ़िल्मी गानो के विविध भारती वाले प्रोग्राम की तरह और जिसका चौबीसों घंटे मीडिया के ज़रिये प्रसारण होता रहता है, इसके चलते किसी भी सरकार, विचार, व्यक्ति और समूह के सामने तुरंत प्रिय और अप्रिय होने का संकट खड़ा हो गया है. ये दबाव लोगों के लिए, संस्थाओं और समाज के लिए प्राणघातक है. बचना है तो इससे बचिए.
आजतक समेत कई चैनलों-अखबारों में काम कर चुके पत्रकार अमिताभ श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.