Ajay Brahmatmaj-
कुछ खुशियां ऐसी होती हैं, जिन्हें शेयर करते हुए भी गर्वीला स्पंदन होता है। शास्त्री विरुद्ध शास्त्री फिल्म के फर्स्ट लुक के साथ ऐसी ही खुशी का अनुभव हो रहा है। इस फिल्म के निर्माण से मेरे प्रिय Raghuvendra Singh जुड़े हुए हैं। सबसे पहले मैं उन्हें बधाई और भविष्य के लिए शुभकामनाएं देना चाहता हूं।
मुझे अच्छी तरह याद है। रघुवेंद्र सिंह मुझे फन रिपब्लिक के प्रीव्यू थिएटर में पहली बार मिले थे। मुझे याद नहीं कौन सी फिल्म का प्रीव्यू था। इंटरवल या फिल्म खत्म होने के बाद वे मुझसे मिलने आए और उन्होंने साथ में काम करने की इच्छा प्रकट की। तब वे मुंबई के सीमित प्रसार के एक हिंदीअखबार में काम कर रहे थे। मुझे दैनिक जागरण में नए सहयोगियों की जरूरत थी। मैंने उनसे मिलने और सीवी भेजने के लिए कहा। चंद औपचारिकताओं के बाद उनकी बहाली हो गई। उन दिनों सौम्या अपराजिता भी मेरे साथ काम कर रही थी। रघुवेंद्र सिंह और सौम्या अपराजिता की जोड़ी ने दैनिक जागरण के फिल्म पृष्ठों को अपनी मेहनत और लगन से पठनीय और महत्वपूर्ण बना दिया। दोनों आगे बढ़कर काम करना चाहते थे।
दोनों की खूबियां एक-दूसरे के लिए पूरक थीं। उनके बीच काम को लेकर गजब का तालमेल था। शायद इसलिए कि दोनों एक दूसरे का बहुत आदर और सम्मान करते थे। दोनों ने मेरी समझ के साथ पत्रकारिता की और एक मुकाम हासिल किया। सौम्या ने निजी और पारिवारिक कारणों से नौकरी छोड़ दी, जिसका मुझे बहुत अफसोस रहा। चूंकि वह उसका फैसला था, इसलिए मैंने स्वीकार किया। उधर रघुवेंद्र ने कुछ समय के बाद बताया कि वह फिल्मफेयर में जाना चाहते हैं। उनका चुनाव हो चुका था। वे चाहते तो चुपचाप त्यागपत्र देकर दूसरों की तरह निकल सकते थे।
उन्होंने मेरी सहमति लेकर नौकरी बदली। फिल्मफेयर में जाने के बाद भी उन्होंने मुझसे संपर्क बनाए रखा। ज्यादातर साथी अखबार या नौकरी बदलने के बाद कभी मजबूरी तो कभी स्वेच्छा से दूरी बना लेते हैं। रघुवेंद्र ने ऐसा नहीं किया। वे लगातार संपर्क में रहे। जीवन पथ में जब भी राह बदली, उबड़-खाबड़ रास्ते से गुजरे या हाईवे पर पहुंचे… उन्होंने हमेशा सब कुछ बताया और शेयर किया। मुझे नहीं मालूम कैसे और क्यों उनका भरोसा मुझ पर बढ़ता गया। उनसे नजदीकी का यह रिश्ता अब उनके परिवार के दूसरे सदस्यों को भी अपनी हद में ले आ चुका है। सच क्यों ना बोलूं कि मुझे अच्छा लगता है। अच्छा लगता है जब कोई साथी आगे बढ़ने के साथ और बाद भी याद रखता है, बातें करता है और मिलता है।
हां तो रघुवेंद्र सिंह ने एक समय के बाद फिल्मफेयर की नौकरी भी छोड़ दी। लगभग 2 साल पहले यह फैसला लेते हुए उन्होंने एक छलांग भरी और फिल्म पत्रकारिता से निकलकर फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा बन गए। उनका इरादा धीरे-धीरे उसे सामर्थ्य तक पहुंचना है, जहां वे अपनी पसंद की फिल्मों का निर्माण कर सकें। मुझे कभी-कभी हैरत होती है कि आजमगढ़ से वाया इलाहाबाद और दिल्ली मुंबई पहुंचे रघुवेंद्र सिंह ने कितनी तेजी से फिल्म इंडस्ट्री के कारोबार की बारीकियां को सीखा। वह एक कुशल फिल्म रणनीतिज्ञ भी है। मौका मिले तो वह बड़ी जिम्मेदारियां के लिए तैयार है। रघुवेंद्र सिंह की इस बढ़त और अनुभव से मैं खुद को अधिक मजबूत और संपन्न पाता हूं। मेरे जन्ममाह में यह समाचार एक खूबसूरत तोहफे के तौर पर आया है।
अभी और ऊंचाइयां हासिल करनी हैं। अभी और खाइयां पाटनी हैं।