नमस्कार
यह व्हाट्सएप ग्रुप एक सकारात्मक और संयुक्त पहल पर बनाया गया था। सौभाग्य से उस पहल का सूत्रधार था। उद्देश्य ज़िला पुलिस और पत्रकारों के बीच स्वस्थ संवाद रखना था। साथ ही विचारों का विकेंद्रीकरण था। इसी कारण इसका नाम ‘संवाद’ रखा गया।
अब यह ग्रुप संवाद लायक़ नहीं बचा है। ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे हम ग़ुलाम भारत में हैं और आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। मानो हम क्रांतिकारी हैं, हमें किसी भी क़ीमत पर चुप रखने की कोशिश की जा रही है। इसके लिए अफ़वाहों का सहारा लिया जा रहा है। हमारे बीच के कुछ साथी व्यक्तिगत मतभेदों को तुष्ट करने के लिए उन अफ़वाहों को आगे बढ़ा रहे हैं। कुछ फ़्रस्टेशन के शिकार हैं।
मेरी उच्च शिक्षा का विषय महात्मा गांधी रहे हैं। मैंने उन्हें केवल पढ़ा नहीं है। झूठ और भय के आगे नहीं झुकना सीखा है। सच बोलने पर जब मेरी आजीविका पर संकट आया, मैं तब नहीं झुका। ज़िले के हर गैंगस्टर के ख़िलाफ़ बिना भय खबर लिखी है। गैंगस्टर को प्रश्रय देने वाले सफ़ेदपोशों के ख़िलाफ़ लिखी है। ज़िले की संपदा और गरीब किसानों को लूटने वालों के ख़िलाफ़ लिखा है। पीड़ित की बात नहीं सुनने वाले अफ़सर के ख़िलाफ़ लिखी है। ईश्वर की कृपा जब तक है, लिखते रहेंगे।
अब एक, दो कोड़ी के गैंगस्टर के नाम पर बदनाम और ब्लैकमेल किया जा रहा है। जिसे कैसे, क्यों और किन लोगों ने पैदा किया, यह पूरा ज़िला जानता है।
ज़िला पुलिस के शीर्ष से संवाद शून्य है। संवाद स्थापित करने का अपनी ओर से भरसक प्रयास किया। पंचतंत्र की कहानी ‘बैल और शेर की मित्रता’ में लालची, चापलूस और षड्यंत्रकारियों का शिकार राजा अपने सबसे भला चाहने वाले मित्र की हत्या कर देता है। यही हाल हमारी और पुलिस की मित्रता का है।
संवाद विहीनता में इस ग्रुप में रहने का क्या औचित्य? एक तरफा जानकारी के लिए दूसरा ग्रुप है। उसमें बना रहूँगा।
सभी बड़ों, अनुजों और पुलिस विभाग के साथियों का यहां असीम प्रेम और सहयोग मिला, उसके लिए कोटिशः आभार है।
सादर
पंकज पाराशार
वरिष्ठ पत्रकार
गौतम बुद्ध नगर