विनय मौर्या-
पत्रकारिता के पायजामा टाईप पत्रकारों ने गन्द मचा रखी है। यह बारहो मासी चौबीसों घण्टा किसी ‘चूड़ी एक्सप्रेस’ ‘बिंदी टाईम्स’ नाम के किसी यूट्यूब चैनल-पोर्टल का आईकार्ड लटकाये दिख जाते हैं। और पत्रकार होने का स्वांग करते हैं। यह लेखन कौशल के सिवाय सब दिखाते हैं। यह तनिक से फायदे के लिए सरेराह अपना लाआगा***खोलकर बैठ जाते हैं।
एकदिन की बात है एक अधेड़ सा शख्स एक ऑटो चालक से उलझे हुये था। वजह यह थी कि उसे ऑटो चालक से किराये में छूट चाहिए, वजह यह कि वो महाशय पत्रकार हैं। वो भी छूट कितने की मात्र दस रुपये की। जब वो ऑटो चालक को अर्दब में लेने के लिए पत्रकारिता का रौब गांठने लगें तो हमने टोका की भईया जाने दीजिए दे दीजिए पैसा वह अपनी मेहनत का ही तो मांग रहा है। वैसे भी यह पत्रकार के नाम पर छूट देने लगा तो ऑटो से सवारी के लिए “इच्छाधारी” पत्रकारों की लाईन लग जायेगी। इसपर वो मेरे ऊपर भड़क गयें।
खुद को “तीन वर्षीय” वरिष्ठ पत्रकार प्रस्तुत करते हुये मेरा परिचय पूछने लगें। मैंने कहा भईया परिचय दे दूंगा फिलहाल आप ऑटो वाले को उसका किराया देकर मुक्त कर दें।
उन्होंने मेरी बात को नजरअंदाज करना चाहा तो मैंने कहा मैं दे दूं,पता नहीं क्या सोचकर उन्होंने दस का एक मुड़ा-तुड़ा नोट ऑटो चालक को थमा दिया। फिर मुझसे मुखातिब होते हुए…हां तो बताईये ?
हमने कहा भईया मैं भी एक पत्रकार हूं… और आप लोग ऐसे ही गन्द मचाये रखेंगे तो मुझे पत्रकारिता से सन्यास लेना पड़ जायेगा। वह पुनः भड़क गयें पत्रकारिता में नये हो का…तनिक लिहाज करो “बड़ों” यह गन्द क्या होता है। मेरी उनकी उम्र में लगभग दस साल का फर्क लग रहा था।
मैंने कहा भईया आपकी वरिष्ठता का सम्मान है। मगर मेरे एक प्रश्न को हल कर दीजिए…” मुलज़िम,मुजरिम,मुलाजिम” में फर्क समेत अर्थ बता दीजिए। अब वो झेंप रहें थें। मगर ढिठाई इतनी की बोल पड़े आप ही बता दीजिए। मैंने कहा कि मुझे तो फर्क पता है आप वरिष्ठता का दम्भ दिखा रहे थें। इसलिए पूछा…मुलजिम यानी आरोपी…मुजरिम यानी अपराधी… मुलाजिम मतलब कर्मचारी, सेवक, नौकर।
सुनिये आँखों पर ऐनक बालों की सफेदी और चेहरे पर झुर्रियां पत्रकारिता के पेशे में वरिष्ठता का पैमाना नही है।
उम्र नहीं बल्कि अनुभव, सोच, तार्किकता, शब्दकोश प्रस्तुतिकरण और व्यवहार ही उसे वरिष्ठ बनाती है। औऱ आप 3 वर्षों में खुद को वरिष्ठ मानने लगें मैं इस पेशे में 18 वर्षों से हूं मगर अभी खुद को प्रशिक्षु ही मानता हूं। वैसे भी मेरी वरिष्ठता दूसरे तय करेंगे मैं नहीं। और एक बौद्धिक पेशे में रहते हुये दम्भ..! इससे मुक्त हो जाइये खुद के लिए बेहतर होगा।
विनय मौर्या
बनारस।