निराला बिदेसिया-
समीर खांडेकर नहीं रहे. मंच पर बोलते- बोलते दुनिया से विदा हो गये. हार्ट अटैक की वजह से. खांडेकर आइआइटी, कानपुर में थे. जीनियस प्राध्यापक और साइंटिस्ट . आठ पेटेंट उनके नाम पर थे. उर्जा से भरे रहते थे. सरात्मकता से भी. उम्र के 52वें साल में थे.
आइआइटी कैंपस में ही गुजरे. हार्ट अटैक के समय मंच से विद्यार्थियों को यही सलाह दे रहे थे कि सेहत ही असली धन है. इसका ख्याल रखें. उसी वक्त उन्हें हार्ट अटैक आया.
खांडेकर का विज्ञान की दुनिया के अलावा समाज से गहरा सरोकार था. फिजिक्स के प्रख्यात प्रोफेसर एचसी वर्मा के सोपान अभियान से वह जुड़े हुए थे. सोपान, अनूठा अभियान है, शिक्षा के क्षेत्र में. खांडेकरजी से एक बार संवाद है. बहुत प्रभावित करते थे.
वह कहते, देखो, जीवन एक ही बार मिला है. इसे गणित नहीं बनाओ. जिस समय जो भी काम कर रहे हो या जो जिम्मेवारी स्वीकारे हो या मिली है, सबसे पहले उसके प्रति पूरा ईमानदार रहो. ऐसा नहीं कि जो काम मिला है, वही ईमानदारी और कमिटमेंट से नहीं कर रहे हो और बैठकर उपदेश देते रहो कि बदलाव नहीं हो रहा.
इस दुनिया को सुंदर बनाने का तरीका यही है कि हर कोई अपना काम ईमानदारी से करे. दुनिया के हर काम और रोजगार का एक सरोकार होता है. जब हर कोई अपना काम करेगा तो उसके सरोकार का लाभ समाज को मिलेगा ही मिलेगा. हां, अपने काम के बाद, जब समय मिले, तो अपनी रुचि के अनुसार जरूर समाज निर्माण का काम करो.