सुभाष चंद्र दुबे तो लगता है जैसे अपनी किस्मत में लिखाकर आए हैं कि वे सस्पेंड ज्यादा रहेंगे, पोस्टेड कम. सुल्तानपुर के एक साधारण किसान परिवार के तेजस्वीय युवक सुभाष चंद्र दुबे जब आईपीएस अफसर बने तो उनने समाज और जनता के हित में काम करने की कसम ली. समझदार किस्म के आईपीएस तो कसमें वादे प्यार वफा को हवा में उड़ाकर बस सत्ता संरक्षण का पाठ पढ़ लेते हैं और दनादन तरक्की प्रमोशन पोस्टिंग पाते रहते हैं. पर सुभाष दुबे ने कसम दिल से खाई थी और इसे निभाने के लिए अड़े रहे तो नतीजा उनके सामने है. वह अखिलेश राज में बेईमान अफसरों और भ्रष्ट सत्ताधारी नेताओं की साजिशों के शिकार होते रहे, बिना गल्ती सस्पेंड होते रहे.
चुनाव के वक्त चुनाव आयोग ने सुभाष चंद्र दुबे को गाजीपुर का एसएसपी बनाकर भेजा और वहां से वह सहारनपुर सीएम योगी के कार्यकाल के शुरुआती दिनों में तब भेजे गए जब जातीय हिंसा चरम पर थी. भाजपा के लोगों ने सहारनपुर के तत्कालीन एसएसपी लव कुमार के घर पर धावा बोल दिया था. लव कुमार की पत्नी बच्चों को जान बचाने के लिए छिपना पड़ा था. ऐसी किरकिरी से ध्यान हटाने और लव कुमार को खुश करने के लिए राज्य सरकार ने उनको नोएडा जैसे प्राइम जिले की पोस्टिंग दे डाली और सहारनपुर का जिम्मा तेजतर्रार अधिकारी सुभाष चंद्र दुबे को सौंप दिया.
उधर, नोएडा के डीएम एनपी सिंह को सहारनपुर का जिलाधिकारी बना दिया गया. एनपी सिंह की पूरे सूबे में एक अलग छवि है. वह अपनी ईमानदारी, कठिन मेहनत, जन सरोकार के लिए जाने जाते हैं. माना गया कि एनपी और सुभाष दुबे की जोड़ी सहारनपुर में सब कुछ सामान्य कर देगी. ऐसा हुआ भी. लेकिन सीएम योगी और इन दो अफसरों के बीच संवादहीनता ने बीच के दलाल अफसरों को मौका दे दिया. इन दलाल अफसरों ने सीएम योगी के कान में अपने हिसाब से फीडबैक दे दिया.
एनपी और सुभाष दुबे ने अठारह अठारह घंटे तक साथ रहकर सहारनपुर में शांति लाने की कोशिश की लेकिन इन दोनों को यह आरोप लगाकर सस्पेंड कर दिया गया कि इनमें तालमेल नहीं था और इन लोगों ने मायावती को सहारनपुर में घुसने की अनुमति दे दी थी. खासकर मायावती वाले प्वाइंट को योगी ने गंभीरता से ले लिया. जबकि हकीकत यह है कि एसपीजी कवर प्राप्त मायावती दिल्ली से जब गाजियाबाद में घुसीं और मेरठ समेत कई जिलों को पार करती हुईं सहारनपुर पहुंचीं तो इसके लिए कोई एनपी सिंह और सुभाष चंद्र दुबे दोषी नहीं ठहराया जा सकता.
एसपीजी के लोग अपने वीवीआईपी के रूट पर कई दिन पहले से काम करने लगते हैं. मतलब यह कि यह सारा कुछ बड़े अफसरों के इशारे और सहमति से हुआ था लेकिन दोष मढ़ दिया गया सहारनपुर के तत्कालीन एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे और डीएम एनपी सिंह पर. कहा जाता है कि सहारनपुर की सीमा पर अगर मायावती को उस समय रोक दिया जाता तो सहारनपुर में उग्र हुए दलित समुदाय के लोग अपनी नेता को रोके जाने से नाराज होकर लंबा और बड़ा बवाल कर सकते थे जिसे फिर रोक पाना मुश्किल होता.
अपने छोटे से कार्यकाल में एनपी सिंह और सुभाष चंद्र दुबे ने सहारनपुर में ग्राउंड लेवल पर जो जो काम किए (कुछ दस्तावेज संलग्न हैं यहां), उसी का नतीजा है कि जो नए लोग वहां डीएम एसएसपी बनाकर भेजे गए, उन्हें बहुत खास कुछ नहीं करना पड़ा और नियंत्रित हालात का श्रेय खुद लेने का मौका मिल गया. वो कहते हैं न जो नींव के पत्थर होते हैं, उनका जिक्र कम होता है, उस मजबूत नींव पर खड़े महल को सब देखते सराहते हैं.
ये हैं सहारनपुर बवाल के असल कारण.. पर दोषियों पर कार्रवाई की जगह ईमानदार और मेहनती अफसरों को ही सस्पेंड कर दिया गया…
ये वह दस्तावेज है जिससे जाहिर होता है कि सहारनपुर के तत्कालीन डीएम एनपी सिंह और एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे ने ग्राउंड लेवल पर खूब सारा होमवर्क काम करने और डाक्यूमेंटेशन के बाद पब्लिक-प्रशासन-पुलिस के बीच तालमेल का एक फुलप्रूफ और जनपक्षधर तानाबाना बुना. आज इसी का नतीजा है कि सहारनपुर में सब कुछ पुलिस प्रशासन के नियंत्रण में है लेकिन इसका श्रेय एनपी-सुभाष को मिलने की जगह इन्हें निलंबन झेलना पड़ा और वाहवाही उनको मिल रही जिनका काम सिर्फ लगाना बुझाना और गाल बजाना है और अपने सियासी आकाओं का चरण चापन करना है.
आईएएस एनपी सिंह और आईपीएस सुभाष चंद्र दुबे के खिलाफ जिस कदर जहर सीएम योगी के दिमाग में बोया गया है, उसका नतीजा यह है कि इन दोनों अफसरों को आजतक अपना पक्ष रखने के वास्ते सीएम से मिलने तक का समय नहीं दिया गया. जो बिचौलिए अफसर हैं, इस स्थिति का फायदा उठाकर अपने खास चंपू अफसरों को प्राइम तैनाती दिलाने में सफल हो जा रहे हैं और जो ईमानदार हैं, वह खुद को सपा राज जैसा ही प्रताड़ित पीड़ित महसूस कर रहे हैं. चाल चेहरा चरित्र को लेकर खुद को अलग होने का दावा करने वाली भाजपा के नेताओं को यह देखना चाहिए कि भले सौ बेईमान माफ कर दिए जाएं, लेकिन किसी एक ईमानदार के खिलाफ गलत कार्रवाई न हो जाए.
चर्चा तो यहां तक होने लगी है कि पूरा सिस्टम अब इस कदर चापलूसों और चोरों से भरा हुआ हो गया है कि अब ईमानदार, तेवरदार और जन सरोकार वाला होना अपराध हो गया है. ऐसे लोगों को न तो काम करने दिया जाता है और न ही कोई ठीकठाक पोस्टिंग देर तक दी जाती है. इनके पीछे सारे बेईमान एकजुट होकर हाथ धोकर पड़ जाते हैं. सबको उम्मीद थी कि यूपी में भाजपा शासन आ जाने से लंबे समय से चल रहे सपा और बसपा के जंगलराज से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन हुआ ठीक उलटा. लग रहा है जैसे जंगलराज कांटीन्यू कर रहा है. वही भ्रष्ट और दागी अफसर मजबूत बड़े पदों पर जमे हैं जिन्होंने पिछले शासनकालों में जमकर मलाई खाई और अपनों को खिलाया. जिन्हें जेलों में होना चाहिए, वह योगी सरकार के गुड बुक में हैं और जिन्हें बड़ा पद कद मिलना चाहिए वे सस्पेंड बड़े हैं या कहीं कोने में फेंक दिए गए हैं.
सीएम योगी को अफसरों द्वारा दिए जाने वाले फीडबैक को परखने जांचने के लिए भी एक सिस्टम खड़ा करना चाहिए अन्यथा बेईमान और चापलूस अफसरों की झूठी बातों में आकर उनके हाथों बहुत सारा अनर्थ होता रहेगा, जैसे एनपी सिंह और सुभाष चंद्र दुबे के मामले में हुआ है. इन दो अफसरों का निलंबन लगातार जारी रहने और इनकी बात तक न सुने जाने से ईमानदार किस्म के अफसरों में बेचैनी है. यूपी में कानून व्यवस्था से लेकर ढेर सारे क्षेत्रों में हालात न सुधरने का बड़ा कारण यही है कि अब भी प्रदेश का दो तिहाई हिस्सा भ्रष्ट अफसरों के शिकंजे में है जो भाजपा नेताओं को पर्दे के पीछे से ओबलाइज कर अपनी मनमानी कर रहे हैं.
उम्मीद करना चाहिए कि सीएम योगी के जो खास लोग हैं, वह आईपीएस सुभाष चंद्र दुबे और आईएएस एनपी सिंह मामले में योगी को सच्चाई बताएंगे और इनका निलंबन खत्म कराने की दिशा में काम करेंगे. अभी अगर कोई भ्रष्ट अफसर सस्पेंड हुआ होता तो वह तगड़ी लाबिंग करके हफ्ते-दो हफ्ते में ही बहाल हो गया होता. लेकिन एनपी और सुभाष लाबिंग जैसे खेल तमाशों से दूर रहने वाले लोग हैं और अपने लिए राजनीतिक आका नहीं बनाए इसलिए अलग-थलग पड़कर भोगने के लिए मजबूर हैं. उनके पक्ष में कोई भी अफसर सीएम के सामने एक शब्द बोलने के लिए तैयार नहीं है क्योंकि टाप लेवल पर बैठे अफसरों को अपनी नौकरी बचाने और कुर्सी हथियाए रहने की कला खूब आती है.
आईएएस और आईपीएस एसोसिएशन भी लगभग रीढ़ विहीन मुद्रा में ही रहते हैं. इनके पदाधिकारी भी कानों में तेल डाले चुप्पी साधे पड़े हुए हैं. यहां तक कि डीजीपी सुलखान सिंह से लेकर मुख्य सचिव राहुल भटनागर तक में अपने ईमानदार अफसरों को प्रोटेक्ट करने, उनका पक्ष रख उन्हें बिना वजह दंडित किए जाने से बचाने का दम नहीं दिख रहा अन्यथा आज एनपी सिंह और सुभाष चंद्र दुबे यूं निलंबित होकर बनवास नहीं काट रहे होते. ये उत्तर प्रदेश का दुर्भाग्य है कि यहां बदलाव के पक्ष में वोट तो पड़ते हैं लेकिन भारी भरकम नोटों के तले जनभावना कुचली जाती है, सत्ता सिस्टम का करप्टर चरित्र पहले जैसा ही बना रहता है. जो ईमानदारी से ग्राउंड लेवल पर जनसरोकार के साथ काम करता है, उसकी नियति एनपी सिंह और सुभाष चंद्र दुबे बन जाना होता है.
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह की रिपोर्ट.
एनपी सिंह और सुभाष चंद्र दुबे के व्यक्तित्व को लेकर यशवंत द्वारा लिखी गई इस पुरानी पोस्ट को भी पढ़ें…
आईएएस एनपी सिंह और आईपीएस सुभाष चंद्र दुबे, ये दो अफसर क्यों हैं तारीफ के काबिल, बता रहे यशवंत
ये भी पढ़ें, योगी राज में अफसरशाही का हाल….
योगी सरकार में चोर उच्चके, जुगाड़ू और ढीलेढाले अफसरों की बल्लेबल्ले!
एक नज़र इधर भी….
madhukar tiwari
June 24, 2017 at 5:07 pm
सुभाष दुबे और एन पी सिंह को सरकार को तत्काल बहाल कर अच्छी पोस्टिंग देनी चाहिए।
Vikas Kapil
June 25, 2017 at 5:41 am
समय रहते रावण को ठूस देते तो इतना बड़ा बवाल न होता.
Harsh
July 3, 2017 at 8:30 am
भाई साहेब, अगर ये बुबवा टाईप आईपीएस सुभाश दूबे दलितों पर अत्याचार के समय उचित कदम उठा लेते तो ये निलम्बित नहीं होते। इन्होंने आरोपियों के स्थान पर निर्दोषों की गिरतारी कर ली और पूर्व मंत्री राजेन्द्र राणा के पुत्र को खुला घूमता रहा और माहौल खराब करता रहा। मौके पर डीएम एनपी सिंह सख्त रूख अपनाने का आदेश देते रहे ये आईपीएस बबुआ सिर्फ फोन से चिपका रहा। हाॅ यहां एनपीसिंह के साथ वो स्थिति हुई कि गेहूं के साथ घुन पिस गया।