अजय कुमार, लखनऊ
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जनहित के तमाम फैसले तो धड़ाधड़ ले रहे हैं, लेकिन जमीन पर यह फैसले उम्मीद के अनुसार फलीभूत होते नहीं दिख रहे हैं, जिसका गलत मैसेज जनता के बीच जा रहा है, तो विपक्ष को सरकार पर हमलावर होने का मौका मिल रहा है। सवाल यह उठ रहा है कि चूक कहां हो रही है? क्या सरकारी मशीनरी योगी सरकार के मंसूबों पर पानी नहीं फेर रही है ? योगी की बार-बार की डांट-डपट के बाद भी नौकरशाही के कानों पर जूं क्यों नहीं रेंग रही है ? चर्चा यह भी है कि ब्यूरोक्रेसी के दिलो-दिमाग में यह बात घर कर गई है कि यूपी की सरकार पीएमओ से चल रही है ? सरकार के गठन के समय प्रमुख और मुख्य सचिव से लेकर अब पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति तक में जिस तरह की फजीहत योगी सरकार की हो रही है, उससे ब्यूरोक्रेसी के बीच यही मैसेज गया है कि यूपी में सभी प्रमुख पदों पर नौकरशाही की नियुक्ति में योगी नहीं, केन्द्र की मोदी सरकार की चल रही है. वह महत्वपूर्ण पदों पर अपने हिसाब से अपने पसंद के अधिकारियों का बैठा रहा है, ताकि केन्द्रीय योजनाओं को पीएम की इच्छा के अनुरूप लागू किया जा सके. 2019 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए ऐसा आवश्यक भी बताया जा रहा है.